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अगर राजनीतिक गणित को परे रखकर आकलन किया जाए तो राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल तथा दिग्गज आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को प्रत्याशी बनाकर सराहनीय काम किया
By लोकमत समाचार सम्पादकीय |
Presidential Election 2022: अगर राजनीतिक गणित को परे रखकर आकलन किया जाए तो राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल तथा दिग्गज आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को प्रत्याशी बनाकर सराहनीय काम किया.
मुर्मू की उम्मीदवारी से भाजपा ने निश्चित तौर पर अनेक राजनीतिक लक्ष्य साधे हैं लेकिन एक बेहद साधारण पृष्ठभूमि से आई आदिवासी महिला का देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का दावेदार बनना भारत में लोकतंत्र की सफलता एवं मजबूती को दर्शाता है.
मुर्मू का चयन लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को भी साकार करता है जिनके तहत अपनी योग्यता, प्रतिभा तथा क्षमता के बल पर सामान्य व्यक्ति भी देश के सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है. विपक्ष ने भी पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा कभी भाजपा के दिग्गज नेता रहे यशवंत सिन्हा को मैदान में उतारा है. सिन्हा भी कुशल प्रशासक रहे हैं और विद्वान हैं.
दो शालीन हस्तियों के बीच मुकाबले से राष्ट्रपति चुनाव की गरिमा बढ़ जाएगी. मुर्मू ने गरीबी को खुद भोगा है. इसीलिए वे आम आदमी की पीड़ा एवं संघर्ष को अच्छी तरह समझती हैं. राजनीतिक तथा सार्वजनिक जीवन में उन्होंने जो ऊंचाइयां हासिल की हैं, वह उनकी योग्यता एवं कठोर संघर्ष का नतीजा है.
अगर वह राष्ट्रपति बन जाती हैं तो निश्चित रूप से देश का हर सामान्य व्यक्ति उनमें अपनी छवि देखेगा. अगर कुछ हैरान कर देने वाला घटनाक्रम नहीं हुआ तो मुर्मू का राष्ट्रपति बनना तय है. भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को जीत के लिए कुछ वोट कम पड़ रहे हैं लेकिन बीजूू जनता दल, अन्ना द्रमुक जैसी पार्टियां उसे निराश नहीं करेंगी.
मुर्मू ओडिशा से हैं, अत: अपने राज्य को गौरवान्वित करने के लिए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक अपनी पार्टी का समर्थन इस आदिवासी नेत्री को ही दे रहे हैं. अन्ना द्रमुक का झुकाव हमेशा से भाजपा के प्रति रहा है. नीतीश कुमार की जद (यू) भी मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा कर चुकी है. छोटे-छोटे दलों ने भी मुर्मू को समर्थन देने की घोषणा करना शुरू कर दिया है. चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति और जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस भी मुर्मू का समर्थन कर दें तो आश्चर्य नहीं. रेड्डी का रुख हमेशा से भाजपा से दोस्ती बनाए रखने का रहा है.
चंद्रशेखर राव हाल के महीनों में भाजपा के मुखर विरोधी हो गए हैं लेकिन आदिवासी नेता का विरोध करने के पहले वे सौ बार सोचेंगे. वैसे टीआरएस के वोट न भी मिलें तो मुर्मू की जीत का समीकरण नहीं बदलेगा क्योंकि महिला तथा आदिवासी के नाम पर बसपा की मायावती का भाजपा प्रत्याशी को समर्थन मिलने की प्रबल संभावना है. मुर्मू के चयन के पीछे भाजपा के राजनीतिक लक्ष्यों को समझना बेहद जरूरी है. निकट भविष्य में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों में आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभा सकता है.
गुजरात में इस वर्ष के अंत में तथा राजस्थान और कर्नाटक, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन सभी राज्यों में आदिवासी किसी भी पार्टी की किस्मत बिगाड़ या चमका सकते हैं. मोदी इस लक्ष्य को समझते हैं इसीलिए मुर्मू की उम्मीदवारी से भाजपा ने चुनाव वाले राज्यों में आदिवासियों के बीच अपनी पैठ मजबूत बनाने की कवायद की है और यह कदम चुनाव में उसके लिए तुरुप का पत्ता साबित हो जाए तो आश्चर्य नहीं.
राजनीतिक हानि-लभ से परे हटकर सभी को द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाने के भाजपा के फैसले का स्वागत करना चाहिए. वे राष्ट्रपति के रूप में आम आदमी के संघर्ष तथा आशा-आकांक्षाओं की प्रतीक साबित होंगी.

Rani Sahu
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