- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- राष्ट्रपति पद की...
x
बिहार की राजनीति पल-पल बदल रही है. कभी राज्यसभा चुनावों को लेकर बिहार की राजनीति गर्म रही तो कभी विधान परिषद चुनाव को लेकर. अब नया मामला राष्ट्रपति चुनाव का है
Anand Singh
by Lagatar News
बिहार की राजनीति पल-पल बदल रही है. कभी राज्यसभा चुनावों को लेकर बिहार की राजनीति गर्म रही तो कभी विधान परिषद चुनाव को लेकर. अब नया मामला राष्ट्रपति चुनाव का है. राष्ट्रपति चुनाव में कौन उम्मीदवार होगा, नहीं होगा, कौन पार्टी किसे उतारेगी, नहीं उतारेगी, यह सब कुछ अभी भविष्य के गर्भ में है. पर, बात जब बिहार की आती है तो नयी खबरें सामने आती हैं. कुछ मिले, न मिले, सियासी शोशेबाजी करते रहिए.
…तो राजद नीतीश का समर्थन करेगा
अब नया मामला बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर सामने आया है. राज्य का मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने दो टूक कह दिया है कि अगर भाजपा नीतीश कुमार का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाती है तो राजद नीतीश का समर्थन करेगा. जब बात राजनीति की हो ही रही है तो फिर कांग्रेस और जदयू भला क्यों पीछे रहते! कांग्रेस के प्रवक्ता ने भी कह दिया कि अगर भाजपा नीतीश कुमार के नाम पर आगे बढ़ती है तो वह समर्थन देगी क्योंकि मामला यहां "बिहारी प्राइड" का है.
जदयू ने इस पर संयत प्रतिक्रिया दी है. पार्टी का कहना है कि नीतीश कुमार में प्रेजीडेंशियल मैटेरियल तो है ही. अगर उनका नाम आगे बढ़ता है तो यह पार्टी के लिए बड़ी बात तो होगी ही, बिहार के लिए भी बड़ी बात होगी.
नीतीश के चेहरे पर एकाएक मुस्कुराहट जरूर दिख गयी है
आपको बता दें कि बिहार के सत्ता के गलियारे में नीतीश कुमार का नाम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए एकाएक सामने आया. इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं पर नीतीश कुमार के चेहरे पर एकाएक मुस्कुराहट जरूर दिख गयी है. सत्ता को समझने वाले जानते हैं कि अपना नाम इस तरह से आगे बढ़ाने के पीछे नीतीश एक मैसेज भी कन्वे करना चाहते हैं. इसी तरह का एक मैसेज नीतीश कुमार ने पखवाड़ा भर पहले तब दिया था, जब बिहार में जातीय जनगणना की मांग हो रही थी.
तेजस्वी बाहर आये तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी, संतोष था
राजद के प्रमुख नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जब जातीय जनगणना की मांग नीतीश कुमार से की थी तो उसे गंभीरता से लिया था नीतीश कुमार ने. तेजस्वी ने 72 घंटे के भीतर उनसे मिलने का वक्त मांगा था, जबकि नीतीश कुमार ने उन्हें 24 घंटे के भीतर ही इस मुद्दे पर बात करने के लिए बुला लिया था. 45 मिनट की बातचीत में अन्य किन मुद्दों पर हुई, यह तो पता नहीं पर जब तेजस्वी बाहर आये तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी, संतोष था.
इसके कुछ ही दिनों बाद नीतीश ने ऐलान कर दिया कि 1 जून को जातीय जनगणना के मुद्दे पर आल पार्टी मीटिंग होगी. यह मीटिंग हुई भी. तय हुआ कि जातीय जनगणना कराने के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च होंगे और यह भी कि 2023 तक जनगणना पूरी हो जाएगी.
भाजपा जातीय जनगणना के पक्ष में कभी नहीं रही
आपको बताते चलें कि भाजपा जातीय जनगणना के पक्ष में कभी नहीं रही. न केंद्र में, न राज्य में. भाजपा का तर्क शुरू से यह रहा है कि जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसमें समाज में विसंगतियां फैलने का डर है. लेकिन, आल पार्टी मीटिंग बुला कर नीतीश कुमार ने भाजपा को एक तरीके से विवश कर दिया. बिहार की जितनी भी पार्टियां हैं, सभी उस मीटिंग में गईं. अगर भाजपा उस मीटिंग में नहीं शामिल होती तो यह कहने का मौका जदयू को मिल सकता था कि देखिए, राज्य के कल्याण के लिए जरूरी जातीय जनगणना के लिए हम लोग तन-मन-धन से तैयार हैं लेकिन भाजपा इसमें इंट्रेस्ट नहीं ले रही है.
सत्ता के जाकार इस बात को रेखांकित करते हैं कि नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने की है. खुद से तो वह यह बात कह नहीं सकते. लिहाजा, उन्होंने पुछल्लों से इस बात को कहलवा दिया. इतना ही नहीं, प्रदेश की प्रायः सभी पार्टियों ने "बिहार" और "बिहारी प्राइड" के नाम पर उन्हें अपना समर्थन भी दे दिया.
नीतीश के लंबे सयासी करियर और सियासी सूझबूझ की हर कोई दाद देता है
नीतीश कुमार के लंबे सियासी करियर और सियासी सूझबूझ की हर कोई दाद देता है. सियासी पंडित मानते हैं कि वह कब क्या कर दें, कोई नहीं जानता. वे रामचंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी सिंह का हवाला देते हैं कि कैसे उन्हें एक झटके में जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया था नीतीश कुमार ने और कैसे दो-दो बार राज्यसभा का सदस्य भी बनवाया था. तो, लोग ये मानते हैं कि नीतीश के फैसले चौंकाने वाले होते हैं. बहुत संभव है कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम का जिक्र उनकी ही कोटरी से किया गया हो.
Rani Sahu
Next Story