सम्पादकीय

यूपी में 39 सवर्ण जातियों को पिछड़ा बनाकर खुश करने की तैयारी, पर कायस्थों को मंजूर नहीं

Gulabi
12 Aug 2021 5:02 PM GMT
यूपी में 39 सवर्ण जातियों को पिछड़ा बनाकर खुश करने की तैयारी, पर कायस्थों को मंजूर नहीं
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कायस्थों को मंजूर नहीं

संयम श्रीवास्तव।

यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) के लिए शह मात का जबरदस्त खेल चल रहा है. ब्राह्मण वोटों के लिए सबसे बड़ी मारा-मारी इस बार हो रही है. ब्राह्मणों को पटाने का अभियान छोड़कर बीएसपी (BSP) और एसपी (SP) ने बीजेपी (BJP) के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. यूपी में बीजेपी के पिछले 2 लोकसभा चुनावों और एक विधानसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर जीत का सबसे बड़ा कारण ब्राह्मण और पिछड़ा वोट का समर्थन ही रहा है. पिछड़ा वर्ग के वोट के लिए इस बीच बीजेपी ने बहुत कुछ किया है, पर ब्राह्मण वोट पर पार्टी को अभी भी संशय लग रहा है. केवल 2 से 3 परसेंट भी वोट छिटकते हैं तो बीजेपी के लिए बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा. शायद इसलिए बीजेपी ने एक और ब्रह्मास्त्र फेंका है.


मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो पिछड़ा वर्ग आयोग ने 39 सवर्ण जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के लिए यूपी सरकार को जल्द प्रस्ताव भेजने वाला है. हाल ही में केंद्र सरकार ने राज्यों के उस अधिकार को बहाल करने का कानून लेकर आया है जिससे राज्यों को किसी भी जाति को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने का अधिकार मिल जाता है. उत्तर प्रदेश पिछड़ा आयोग जिन 39 जातियों का प्रस्ताव भेजने वाला है उनमें से कई जातियां ऐसी हैं जो आर्थिक-सामाजिक और शैक्षणिक रूप से बहुत संपन्न हैं. बिना किसी मांग और धरना-प्रदर्शन के खैरात में मिला ये आरक्षण बहुत से लोगों को पच नहीं रहा है. पिछड़ा वर्ग से प्रस्तावित इन जातियों की मांग अगर यूपी सरकार स्वीकार कर लेती है तो इन जातियों को भी ओबीसी का आरक्षण मिलना शुरू हो जाएगा. इस बीच यूपी के कई शहरों में कायस्थ लोगों ने खुलकर सरकार से सामाजिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण का विरोध किया है.


क्या छिटक रहे ब्राह्णण वोटों की कमी पूरी हो सकेगी
दरअसल बीएसपी ने जबसे सतीश मिश्रा के नेतृत्व में ब्राह्मण सम्मेलन शुरू किया है तबसे बीजेपी सतर्क हो गई है. यूपी में ये बात आग की तरह फैल गई है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती यूपी में सतीश मिश्रा को सीएम कैंडिडेट या डिप्टी सीएम कैंडिडेट घोषित कर सकती हैं. इसके साथ ही बीएसपी भारी संख्या में ब्राह्मण कैंडिडेट भी खड़ा करने की तैयारी कर रही है. इसी तरह समाजवादी पार्टी भी परशुराम की मूर्ति लगवाने की बात कर रही है. कांग्रेस पहले से ही ब्राह्मण वोट के फिर से वापसी की आस लगाए बैठी है. बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि अगर ब्राह्मण वोट 2 से तीन प्रतिशत भी कम हो गया तो पार्टी की सरकार में वापसी फंस सकती है. शायद इसलिए ही भारतीय जनता पार्टी शासित यूपी में पिछड़ा वर्ग आयोग ने 39 जातियों को ओबीसी कैटेगरी में शामिल करने का मुद्दा ट्रंप कार्ड की तरह फेंका है.

पार्टी को लगता है कि अगर इन जातियों के लोग इस फैसले से खुश हुए तो इनका सौ फीसदी वोट बीजेपी को मिल सकता है. इस तरह जो ब्राह्मण वोट छिटक रहे हैं उनकी कमी पूरी की जा सकेगी. इस सूची में वैश्य, जैसवार राजपूत, रुहेला, भूटिया, अग्रहरि, दोसार, मुस्लिम शाह, मुस्लिम कायस्थ, हिंदू कायस्थ, कोरी राजपूत, दोहार, अयोध्यावासी वैश्य, बर्नवाल, कमलापुरी वैश्य, केसरवानी वैश्य, बागवां, भट्ट, ऊमर बनिया, माहोर वैश्य, हिंदू भाट, गोरिया, बोट, पनवरिया, उमरिया, नोवाना और मुस्लिम भाट शामिल हैं.

लिस्ट में कई जातियां संपन्न और ताकतवर
इस सूची में कई जातियां ऐसी हैं जिनके लंबे चौड़े व्यापार हैं . इसमें कई समुदाय तो सामाजिक रूप से माने जाते हैं. इन जातियों के अलावा विश्नोई, खर राजपूत, पोरवाल, पुरुवार, कुंदर खरादी, बिनौदिया वैश्य, गुल्हरे वैश्य, गढ़ैया राधेड़ी, पिठबाजस आदि जातियों के लिए सर्वे कराने की बात आयोग ने की है. इन जातियों के लिए भी एक उम्मीद छोड़ दी गई है. हालांकि इन जातियों में अधिकतर ऐसी जातियां जो बीजेपी की कोर वोटर रही हैं. कायस्थ, वैश्य और राजपूतों की सभी जातियां आम तौर पर बीजेपी को वोट देती रही हैं. अगर पार्टी इन लोगों को आरक्षण नहीं देती तो भी ये जातियां अपना वोट बीजेपी को ही देती रही हैं. ये भी हो सकता है कि उनको पिछड़ा वर्ग में शामिल करके शायद बीजेपी उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रही हो. पर इसका कितना फायदा होगा ये कहना बहुत कठिन है.

यह सही है कि देश में बहुत सी जातियां पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित वर्ग में शामिल होने के लिए संघर्ष कर रही हैं. जो जातिया संघर्ष कर रही हैं, आंदोलन कर रही हैं अगर उनकी बात मानी जाती है तो वे लोग मांग पूरी करने वाली पार्टी का सपोर्ट करते हैं. पर जब मुंह मांगे कुछ मिलता है तो उसकी कीमत नहीं समझी जाती है. कुछ ऐसा ही इन जातियों के साथ भी हो रहा है. दरअसल इस सूची में शामिल बहुत सी जातियों को आरक्षण की जरूरत ही नहीं है और न ही कभी उन लोगों ने आरक्षण की मांग ही की है.

कायस्थ सामाजिक और शैक्षणिक रूप से मजबूत
39 जातियों में कुछ ऐसी जातियां हैं, जिनमें अगर ठीक तरह से सर्वे हो तो 50 प्रतिशत से ऊपर ऐसे लोग मिल जाएंगे जो किसी तरह के आरक्षण का विरोध करते मिल जाएंगे. और कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी जाति आरक्षण लेने वाले तबके में शामिल हो. कायस्थ जाति को ही लीजिए. ये समुदाय पढ़ाई लिखाई में आगे रहा है. यूपी के गोरखपुर, लखनऊ, इलाहाबाद में बहुतायत में लोग बसे हुए हैं. इन शहरों में सबसे बड़े वकील, सबसे बड़े डॉक्टर दर्जनों की संख्या में इस जाति के मिल जाएंगे. किस आधार पर इन्हें आरक्षण देने के बात हो रही है यह समझ में नहीं आता है. यह सही है कि यह जाति राजनीति में पिछड़ गई पर लोकतंत्र में ब्राह्मण और राजपूतों की भी राजनीतिक हिस्सेदारी में गिरावट आई है. इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें भी आरक्षण दिया जाए.

यूपी में मुख्यमंत्री (डॉक्टर सम्पूर्णानंद) और प्रधानमंत्री (लाल बहादुर शास्त्री) तक कायस्थ जाति से हुए हैं इसका मतलब है कि ये कम से कम ये जाति सामाजिक रूप से इस स्तर पर नहीं है कि इसे आरक्षण दिया जाए. अपनी जनसंख्या के हिसाब से ये राजनीतिक रूप से भी पिछड़े नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज हों या वकील आज के डेट में भी बहुतायत इस जाति के लोग हैं. लखनऊ, कानपुर, आगरा में भी बड़ी संख्या में डॉक्टर, वकील और नौकरशाह इस जाति के मिलेंगे. गोरखपुर में पत्रकार संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि किसी तरह के आरक्षण से सिर्फ नुकसान होता है. पहले भी लेखपाल के बेटा लेखपाल बनता था जिससे कायस्थों का बहुत नुकसान हुआ. चौधरी चरण सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कायस्थों का यह विशेषाधिकार खत्म कर दिया. जिसका फायदा हुआ कि कायस्थ उससे आगे की भी सोचने लगे. बहुत से लोगों ने दूसरी फील्ड में हाथ आजमाया और आगे भी बढ़ें नहीं तो पटवारी का बच्चा पटवारी ही बनता था. इसके आगे उनकी सोच ही कुंद हो जाती थी.

आरक्षण से कमजोर होता है समुदाय
संजय श्रीवास्तव बोलते हैं कि किसी भी तरह के आरक्षण से हमारे बच्चे कमजोर ही होंगे. कायस्थों के पास खेती है नहीं और संख्या बल कम होने के चलते वो राजनीति कर नहीं सकते, इसलिए एकमात्र पढ़ाई और नौकरियों में भी आरक्षण से वे और कमजोर हीं होंगे. मुट्ठी भर सरकारी नौकरियों के चलते हम बहुत बड़े संसार को पाने से वंचित रह जाएंगे. गोरखपुर में ही चित्रगुप्त मंदिर के पूर्व कर्ता धर्ता अतुल श्रीवास्तव कहते हैं कि हम किसी भी तरह के आरक्षण का विरोध करते हैं. कायस्थों को आरक्षण की कोई जरूरत नहीं. जरूरत है कि हर तरह का आरक्षण खत्म किया जाए.

कायस्थों का गढ़ समझे जाने वाले प्रयागराज में मशहूर केपी (कायस्थ पाठशाला) ट्रस्ट के प्रेसिडेंट का चुनाव लड़ चुके डॉक्टर विवेक श्रीवास्तव इस फैसले से काफी दुखी दिखे. उनका स्पष्ट कहना है कि कायस्थ कभी सामाजिक रूप से पिछड़े नहीं रहे, इसलिए सामाजिक आरक्षण की तो जरूरत ही नहीं है. रही बात आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए जरूर आरक्षण होना चाहिए और यह सभी समुदायों के गरीब लोगों के लिए होना चाहिए. आरक्षण की व्यवस्था संविधान में भी स्थाई नहीं थी, अगर सही तरह रिव्यू हुआ होता तो अब तक आरक्षण समाप्त हो गया होता.

नोएडा में कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़े राजेश सिन्हा कहते हैं कि कायस्थों में गरीबी बहुत बढ़ी है, अगर सरकार इस तरह का फैसला करती है तो उसकी तारीफ होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि कई गरीब बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज का एंट्रेंस नहीं दे पाते, क्योंकि उनके पास पैसा नहीं होता. ओबीसी वर्ग में शामिल होने पर कम से कम इतनी मदद तो मिल ही जाएगी कि वे प्रवेश फार्म भर सकें.


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