सम्पादकीय

अंतरिक्ष में खेती की तैयारी

Subhi
2 Aug 2022 4:45 AM GMT
अंतरिक्ष में खेती की तैयारी
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एक समस्या यह भी है कि लंबी अंतरिक्ष यात्राओं में यात्री एक या कुछ ही चीजों को लंबे समय तक नहीं खा सकते। इसके लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के और ज्यादा भोजन की आवश्यकता होगी।

विजन कुमार पांडेय: अगर चंद्रमा पर यात्रियों को लंबे समय तक रहना हो या मंगल ग्रह की यात्रा करनी हो, तो खाद्य सामान की समस्या का हल खोजना ही होगा। इसके लिए उन्हें बड़ी मात्रा में भोजन ले जाना होगा जो व्यावहारिक दृष्टि से संभव नहीं है। ऐसे में भोजन के खराब होने की संभावना भी बढ़ जाएगी। इसलिए अंतरिक्ष में ही भोजन की व्यवस्था करने के विकल्पों पर तेजी से काम चल रहा है। अंतरिक्ष में खेती इन्हीं से एक विकल्प है।

पिछली सदी से ही अंतरिक्ष में इंसानी बस्तियां बसाने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। लेकिन इन्हें बसाने में सबसे बड़ी समस्या भोजन और स्वास्थ्य को लेकर आ रही है। इसलिए अंतरिक्ष में खेती को लेकर भी प्रयोगों का दौर खूब चल रहा है। अंतरिक्ष में जहां इंसान जिंदा नहीं रह सकता, वहां मूली और गेहूं की खेती जैसे महाप्रयोगों पर विचार चल रहा है।

नासा के अलावा चीन ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। उसने अतंरिक्ष में गेहूं की एक किस्म लुयुआन-502 को उगा कर साबित कर दिया है कि एक न एक दिन इंसान इस काम में भी कामयाबी हासिल कर ही लेगा। हालांकि इससे पहले नासा भी इस तरह के सफल प्रयोग कर चुका है। नासा के वैज्ञानिकों ने भी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में मूली उगाने में कामयाबी हासिल की थी।

दरअसल, आज नासा के अलावा दूसरे देशों की अंतरिक्ष एजंसियां भी ब्रह्मांड की लंबी यात्रा की तैयारी में लगी हैं। इसके साथ ही ऐसे शोध भी चल रहे हैं जिसके तहत अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक चंद्रमा या अन्य ग्रहों पर रह सकें। पर इसमें सबसे बड़ी बाधा अंतरिक्ष यात्रियों के भोजन की व्यवस्था है। अभी तक अंतरिक्ष यात्रियों को केवल थोड़े से समय के लिए ही अंतरिक्ष में भेजा जाता है, जो अपने लिए खाद्य सामग्री भी पृथ्वी से ही लेकर जाते हैं। लेकिन अगर चंद्रमा पर यात्रियों को लंबे समय तक रहना हो या मंगल की यात्रा करनी हो, तो खाद्य सामान की समस्या का हल खोजना ही होगा। इसके लिए उन्हें बड़ी मात्रा में भोजन ले जाना होगा, जो कि व्यावहारिक दृष्टि से संभव नहीं है। इसलिए अंतरिक्ष में ही भोजन की व्यवस्था करने के विकल्पों पर तेजी से काम चल रहा है। अंतरिक्ष में खेती इन्हीं से एक विकल्प है।

एक समस्या यह भी है कि लंबी अंतरिक्ष यात्राओं में यात्री एक या कुछ ही चीजों को लंबे समय तक नहीं खा सकते। इसके लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के और ज्यादा भोजन की आवश्यकता होगी। उदाहरण के तौर पर, मंगल ग्रह पर पहुंचने में ही कई महीने लग जाएंगे। इसीलिए नासा ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में ही कई तरह की खाद्य सामग्री तैयार करने के प्रयोग शुरू किए हैं। हाल में मूली उगाने में सफलता मिली है। नासा चाहता है कि अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के बाहर भी बेहद कम गुरुत्व में पौधे उगा सकें।

नासा की अंतरिक्ष यात्री केट रूबिंस ने पिछले साल 30 नवंबर को पहली बार अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर मूली की फसल काटी थी। इस प्रयोग का नाम प्लांट हेबिटेट-02 रखा गया था। मूली को एक विशेष कक्ष (एडवांस्ड प्लांट हैबिटेट चैंबर) में उगाया गया था। इस कक्ष में एलईडी रोशनी और नियंत्रित खाद के साथ पानी, पोषण और आक्सीजन पौधे की जड़ों तक आसानी से पहुंच जाती है।

अंतरिक्ष में खेती के लिए मूली को इसलिए चुना गया क्योंकि वैज्ञानिकों को भरोसा था कि यह सत्ताईस दिन में पूरी तरह तैयार हो जाएगी। इसके अलावा, मूली पत्तेदार सब्जियों में एक अलग तरह की फसल होती है। हालांकि 2014 से 2016 के बीच वैज्ञानिक अंतरिक्ष में पत्ता गोभी भी उगा चुके हैं। पत्ता गोभी की फसल वहां पैंतीस से छप्पन दिनों में तैयार हुई थी। अंतरिक्ष में सामान ले जाना बड़ी समस्या है। इसलिए वैज्ञानिक यह कोशिश कर रहे हैं कि कैसे कम से कम मिट्टी में पौधे उगाए जा सकें।

अगर अंतरिक्ष में खेती के प्रयोग कामयाब हो गए और जरूरत के हिसाब से खाद्य सामान और फल-सब्जियों का बंदोबस्त होने लगा तो अंतरिक्ष में बसने का सपना साकार होने में एक बड़ी अड़चन दूर हो जाएगी। अपने जीवन के पांच सौ घंटे अंतरिक्ष में बिता चुकीं जापान की एक अंतरिक्ष महिला यात्री और वैज्ञानिक चियाकी मुकाई का दावा है कि 2030 तक चंद्रमा पर बस्तियां बसाने का काम शुरू हो सकता है।

मुकाई अपनी तीस सदस्यों वाली शोध टीम के साथ जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी आफ साइंस की प्रयोगशाला में अंतरिक्ष कालोनी की परियोजना पर जी-जान से लगी हैं। उनकी टीम इस बात का अध्ययन कर रही है कि भविष्य में चंद्रमा और मंगल पर इंसान को जिंदा कैसे रखा जाएगा। चंद्रमा पर बस्ती बसाने के सिलसिले में मुकाई की टीम ने अंतरिक्ष में भोजन पैदा करने का तरीका खोजा है। इस कोशिश में एक खारे द्रव में हाई वोल्टेज बिजली सप्लाई कर तरल प्लाज्मा तैयार किया जाएगा। इसका इस्तेमाल भोजन के उत्पादन में किया जाएगा। इस नई तकनीक से आलू भी जल्द पैदा किए जा सकेंगे। यदि यह प्रयोग कामयाब हो जाता है तो किसी बड़े चमत्कार से कम नहीं होगा।

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और दूसरी वजहों से कृषि पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जाहिर है, बढ़ती आबादी के लिए भविष्य में खाद्यान्न का संकट खड़ा होना ही है। इसके स्पष्ट संकेत दिखने भी लगे हैं। ऐसे में इस चुनौती को देखते हुए अंतरिक्ष में फसलों का महत्त्व और बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि अंतरिक्ष में खेती के सफल प्रयोग खाद्य संकट जैसी चुनौतियों से छुटकारा दिला सकते हैं। चीन 1987 से ऐसे प्रयोगों में जुटा है। स्पेस म्यूटेजेनेसिस तकनीक का लगातार उपयोग करने वाला वह दुनिया का अकेला देश है।

चीन ने फसल के बीजों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए दर्जनों अभियान चलाए हैं। चीनी वैज्ञानिकों ने 1990 के दशक में पहली अंतरिक्ष-नस्ल की फसल- 'यूजीओ 1' नामक मीठी मिर्च की एक किस्म उगाई थी। हाल के दशकों में चीन एक वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरा है। 2006 में उसने अपनी अब तक की सबसे बड़ी खेप ढाई सौ किलो से ज्यादा बीज और सूक्ष्मजीवों की एक सौ बावन प्रजातियों को शिजियान-8 उपग्रह के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा था।

इसके अलावा पिछले कुछ सालों में घास, जौ, अल्फाल्फा और कवक की कई किस्मों सहित बारह हजार बीज भी अंतरिक्ष में भेजे थे, जो चीन के तियानहे अंतरिक्ष स्टेशन पर छह महीने बिताने के बाद वापस लाए गए। अंतरिक्ष में भेजे गए बीज सूक्ष्म गुरुत्व में रहते हैं जहां उन्हें बड़े पैमाने पर अंतरिक्ष के विकिरणों का सामना करना पड़ता है। यह पौधों के विकास की क्रिया को बहुत तेजी से गतिशील कर देते हैं जिसे हम अंतरिक्ष उत्परिवर्तन (स्पेस म्यूटेजेनेसिस) कहते हैं। हालांकि यह प्रयोग कुछ पौधों के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया, जबकि कुछ के लिए काफी लाभदायक रहा। इसका कारण यह है कि कुछ विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम हो जाते हैं।

ऐसे पौधे अधिक फल देते हैं और तेजी से बढ़ते हैं। इन्हें कम पानी की भी जÞरुरत होती है। जब उन्हें पृथ्वी पर वापस लाया जाता है, तो इन अंतरिक्ष-नस्ल वाले पौधों के बीजों का सावधानीपूर्वक परीक्षण किया जाता है और फिर फसलों की नई किस्मों पर काम शुरू होता है। लुयुआन-502 गेहूं इस सफलता को बताता है। इसकी उत्पादकता बहुत ज्यादा है और इसकी खेती अलग-अलग क्षेत्रों और विभिन्न परिस्थितियों में की जा सकती है।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजंसी के अनुसार, लुयुआन-502 से होने वाली पैदावार चीन में उगाए जाने वाले मानक गेहूं की किस्मों की तुलना में ग्यारह प्रतिशत अधिक है। इसमें सूखे को बर्दाश्त करने और आम कीटों से लड़ने की शक्ति गेहूं की अन्य किस्मों की तुलना में ज्यादा होती है। ऐसे में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए इस तरह के खेती संबंधी प्रयोग मील का पत्थर साबित हो सकते हैं और अंतरिक्ष में खाद्य संकट की समस्या का भी समाधान दे सकते हैं।


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