सम्पादकीय

नीतीश कुमार-प्रशांत किशोर की मुलाकात के 'तीर' से 2024 के चुनावी निशाने की तैयारी?

Rani Sahu
20 Feb 2022 6:26 PM GMT
नीतीश कुमार-प्रशांत किशोर की मुलाकात के तीर से 2024 के चुनावी निशाने की तैयारी?
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चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुलाकात के राजनीतिक गलियारों में कई मतलब निकाले जा रहे हैं

नरेन्द्र भल्ला

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुलाकात के राजनीतिक गलियारों में कई मतलब निकाले जा रहे हैं. लेकिन इसका सबसे बड़ा और एकमात्र सियासी मकसद यही है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले बनने वाले विपक्षी महागठबंधन में शामिल होने के लिए नीतीश कुमार को किसी भी तरह से राजी किया जाए. फिलहाल नीतीश की पार्टी जदयू ,एनडीए का हिस्सा है लेकिन बिहार में उसकी ताकत को देखते हुए जदयू के महागठबंधन में आए बगैर 2024 में बीजेपी को हराने का मकसद पूरा कर पाना नामुमकिन है.
वैसे प्रशांत किशोर फिलहाल ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ जुड़े हैं लेकिन ऐसी बातें हवा में तैर रही हैं कि वहां उनका भविष्य कुछ साफ नहीं है, पर इन पर यकीन करना इसलिए मुश्किल है कि ममता के कहने पर ही प्रशांत ने नीतीश को तैयार करने की कवायद शुरु की है. दरअसल,एनडीए का हिस्सा होने की वजह से ममता फिलहाल सीधे नीतीश कुमार से कोई मुलाकात करने से बचना चाहती हैं क्योंकि ऐसा करना एक तो जल्दबाजी होगी और दूसरा महागठबंधन की सारी रणनीति ही चौपट हो जाएगी.
सूत्रों की मानें तो इसलिये प्रशांत किशोर को ये जिम्मेदारी दी गई क्योंकि नीतीश के साथ उनके रिश्ते अच्छे हैं और वे जदयू में रह भी चुके हैं. वैसे सच्चाई तो ये है कि प्रशांत किशोर 2024 के आम चुनावों के लिए एक नया समीकरण बनाना चाहते हैं और इस समीकरण की झंडाबरदार बनने की शुरुआत ममता बनर्जी ने की है. वे पिछले कुछ महीने में पांच राज्यों- झारखंड,तमिलनाडु,आंध्र प्रदेश,तेलंगाना और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों के अलावा एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से मुलाकात करके विपक्षी महागठबंधन का खाका तैयार कर चुकी हैं.
हालांकि कांग्रेस को ये मंजूर नहीं है कि 2024 के चुनाव में ममता को पीएम पद का चेहरा बनाया जाए. इसी मुद्दे पर दोनों के बीच मतभेद हैं और बोलचाल भी लगभग बंद है. नाराजगी इस हद तक है कि पिछले दिनों ममता बनर्जी जब दिल्ली आई थीं,तब भी उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाकात करना जरूरी नहीं समझा था. उल्टे, इस बारे में सवाल पूछने पर वे मीडिया पर भड़क उठीं थी कि क्या ये जरूरी है कि मैं जब भी दिल्ली आऊं तो उनसे मुलाकात ही करूं.
लेकिन सियासत की कड़वी हक़ीक़त ये भी है कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बगैर किसी भी तरह के महागठबंधन बनाने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएगा. इसलिये बड़ा सवाल ये है कि ममता और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरियों को नजदीक कौन लाएगा और लोकसभा के चुनाव-नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस भला ममता के नाम पर क्यों तैयार होगी. वह तो अपने यहां से ही किसी को पीएम पद का चेहरा बनाने पर ही अड़ी रहेगी और उसमें भी वह गांधी परिवार से बाहर कोई और नाम शायद ही आगे बढ़ाए.
लिहाज़ा,महत्वाकांक्षा के ये मतभेद ही महागठबंधन की बुनियाद का सबसे बड़ा रोड़ा बनेंगे. पांच प्रदेश के सीएम और शरद पवार भले ही ममता के नाम पर तैयार हो गए हैं और यदि शरद पवार कांग्रेस को समझाने का बीड़ा उठाते हैं, तो इसकी भी कोई गारंटी नहीं कि पार्टी उनकी बात मान ही जाएगी.
दरअसल, पिछले महीने ही प्रशांत किशोर ने एक न्यूज़ चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा था कि 2024 के चुनाव में बीजेपी को हराया जा सकता है, लेकिन उसके लिए एक बेहतर रणनीति बनानी होगी, जिसका ख़ाका भी समझाया था. उनके मुताबिक बीजेपी ने हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद और जनकल्याणकारी नीतियों का मजबूत नैरेटिव तैयार किया है और विपक्षी दलों को कम से कम इनमें से दो मोर्चों पर बीजेपी को पछाड़ना होगा. तब उन्होंने ये भी कहा था कि वो ऐसे विपक्षी मोर्चे को बनाने में मदद करना चाहते हैं, जो 2024 में बीजेपी को हरा सके.
अगर अगले महीने के विधानसभा चुनाव -जिसे सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है, यदि उसके नतीजे प्रतिकूल भी आते हैं तो भी ऐसा किया जा सकता है. प्रशांत किशोर ने एक बार फिर उन 200 लोकसभा सीटों का जिक्र किया, जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है. पिछले दो चुनावों में बीजेपी ने इनमें से 95 सीटें जीती हैं. विपक्ष अगर यहां अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए खुद को मजबूत बना ले, तो इन सीटों पर बड़ा उलटफेर करना संभव है.
जो भी पार्टी या नेता बीजेपी को हराना चाहता है, उसे कम से कम 5-10 साल की रणनीति तैयार करनी होगी. ये 5 महीनों में नहीं हो सकता. किशोर ने भी ये माना है कि कांग्रेस के बगैर बीजेपी को नहीं हराया जा सकता. कांग्रेस की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा था कि वह एक विचारधारा और राजनीतिक मौजूदगी की नुमाइंदगी करती है, उसके बिना एक प्रभावी विपक्ष संभव नहीं है. हालांकि इसका मतलब नहीं है कि ये मौजूदा नेतृत्व के तहत आज की कांग्रेस के जरिये होगा. बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस में व्यापक बदलाव जरूरी है.
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