सम्पादकीय

पत्रकारिता के विश्वविद्यालय थे प्रभाष जोशी !

Rani Sahu
18 July 2022 5:49 PM GMT
पत्रकारिता के विश्वविद्यालय थे प्रभाष जोशी !
x
प्रखर जुझारु पत्रकार प्रभाष जोशी का जन्म 15 जुलाई 1936 को म.प्र. के सिहोर जिला के आष्टा ग्राम में हुआ था। पत्रकारिता का करियर इन्दौर में ‘नई दुनिया’ से शुरू किया

प्रखर जुझारु पत्रकार प्रभाष जोशी का जन्म 15 जुलाई 1936 को म.प्र. के सिहोर जिला के आष्टा ग्राम में हुआ था। पत्रकारिता का करियर इन्दौर में 'नई दुनिया' से शुरू किया। अपने समय के प्रख्यात पत्रकार राजेन्द्र माथुर के सानिध्य में पत्रकारिता के नये आयाम स्थापित किए और हिन्दी पत्रकारिता को नई दिशा दी। रामनाथ गोयनका के इंडियन एक्सप्रेस समूह से जुड़ने के बाद 17 नवंबर 1983 को 'जनसत्ता' शुरु करने के बाद प्रभाष जी ने गोयनका जी द्वारा मिली स्वायत्ता का भरपूर सदुपयोग करते हुए हिन्दी पत्रकारिता के स्तर को उठाया भी, बढ़ाया भी।

गांधी, विनोबा, जे.पी. के संस्कारों को हिन्दी पत्रकारिता में समाहित करने के साथ-साथ अखबार को नया कलेवर और भाषा को नया तेवर दिया। समाचारों की भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्दों की नई बर्तनी बताई। मेरा विचार है कि यदि जोशी जी पत्रकारिता में न आते तो बड़े साहित्यकार व समाज सुधारक होते। 'आगे अंधी गली है', 'लुटियन के टीले का भूगोल', 'धन्न नर मदा मैया हो', 'जीने के बहाने' और 'हिन्दू होने का धर्म' जैसी पुस्तकें पत्रकारिता का विश्व-विद्यालय हैं। जो पत्रकारिता में पदापर्ण करने के इच्छुक हैं उन्हें प्रभाष जी को पढ़ना-समझना चाहिए। जो दुकानदारी के लिए आ रहे हैं, उनके लिए तो हजार रास्ते खुले हैं।
चौथे स्तम्भ की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बड़े मीडिया हाउसों और श्रृंखलाबद्ध अखबारों में 'पेड न्यूज' के चलने वाले पाखंड को नंगा कर 'पेड न्यूज' के विरुद्ध जो देशव्यापी मुहिम जोशी जी ने चलाई उससे मीडिया माफियाओं की जड़ें हिल गईं। भारत सरकार तथा भारतीय प्रेस परिषद तक प्रभाष जी की बात गूंजी। दुर्भाग्य ही था कि आज बड़े मीडिया हाउस प्रभाष जी के उस संदेश और प्रभाष जी को भूल चुके हैं। लोकतंत्र, सेक्युलरिज्म और राष्ट्रवाद के
झंडे उठाने वाले भी 'पेड न्यूज' के प्रपंच को बिसरा चुके हैं क्योंकि इनसे इन सभी का धंधा-पानी चल ही नहीं रहा, दौड़ रहा है।
गंवई, कस्बाई और कथित छोटे पत्रकार की कोई आवाज नहीं। 'पेड न्यूज' के धंधेबाज इन्हें ब्लैकमेलर बताते हैं। ध्येयनिष्ठ, ईमानदार पत्रकार मीडिया माफियाओं के बंधुवा मजदूर बनने पर विवश हैं। कोई नया रामनाथ गोयनका और प्रभाष जोशी पैदा हो तो बात बने। गोपाल सिंह नेपाली ने गीत गाया था- 'मेरा धन है आज़ाद कलम', जोशी जी ने इसे नई लय और तरंग दी। जन्मदिन पर प्रणाम!
गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story