सम्पादकीय

सत्ता और संघर्ष: मर्केल की राह पर हसीना?

Neha Dani
5 Oct 2021 3:38 AM GMT
सत्ता और संघर्ष: मर्केल की राह पर हसीना?
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उनके उत्तराधिकारी को, चाहे वे पार्टी से हों या कहीं और से, उनका पद छोड़ते ही दुर्जेय विरासत के साथ संघर्ष करना होगा।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना विगत 28 सितंबर को 75 वर्ष की हो गईं। हसीना जर्मनी की कार्यकारी चांसलर एंजेला मर्केल का अनुसरण कर रही हैं, जिन्होंने सोलह साल तक सत्ता में रहने के बाद पद छोड़ने का फैसला किया है। हसीना वर्ष 2009 से प्रधानमंत्री हैं और अगर 1996 से 2001 तक के उनके पांच वर्ष के प्रधानमंत्री काल को भी जोड़ लिया जाए, तो शीर्ष पद पर वह मर्केल से भी ज्यादा समय तक रही हैं।

सत्तारूढ़ अवामी लीग की महिला शाखा की संयुक्त सचिव शहनाज परवीन डॉली कहती हैं, 'ईश्वर की मर्जी से, हसीना अपने बचे हुए दो साल से अधिक का कार्यकाल पूरा करेंगी और अगले चुनाव में भी पार्टी को जीत दिलाएंगी।' डॉली कहती हैं कि 'वह एक ऐसी नेता हैं, जिनके लिए आप अपना जीवन बलिदान कर सकते हैं। वह अपने महान पिता की तरह प्रेरणादायक हैं।'
हसीना को अपने पिता की याद परेशान भी करती है और प्रेरित भी। उनका जन्म वर्ष 1947 में भारत विभाजन के एक महीने बाद हुआ था, जब उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान उर्दू लागू करने का विरोध करते हुए पूर्वी पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा के रूप में बांग्ला भाषा की मान्यता के लिए संघर्ष शुरू कर रहे थे। वह भाषा आंदोलन स्वतंत्रता संघर्ष में बदल गया, क्योंकि बंगालियों ने पूर्वी पाकिस्तान के समृद्ध संसाधनों के इस्लामाबाद द्वारा शोषण का विरोध किया।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान द्वारा किए गए नरसंहार में 30 लाख बंगाली मारे गए और सवा लाख महिलाओं की बेइज्जती की गई। हसीना के पिता को कैद कर लिया गया था, जबकि उनके भाई मुक्ति फौज में शामिल होने भारत चले गए थे। बांग्लादेश की आजादी के चार साल बाद सैन्य अधिकारियों के एक खूनी तख्तापलट में उनके पिता मुजीबुर रहमान सहित उनके पूरे परिवार का सफाया कर दिया गया था।
हसीना और बहन रेहाना बच गईं, क्योंकि हसीना जर्मनी में उनके पति के साथ थीं, जो परमाणु वैज्ञानिक थे और अध्ययन अवकाश पर थे। भारत में छह साल तक रहने के बाद हसीना 1981 में अवामी लीग को पुनः संगठित करने के लिए बांग्लादेश लौट गईं और लगातार सैन्य तानाशाहों-जनरल जिया उर रहमान एवं जनरल एच एम इरशाद से मुकाबला करती रहीं। जिया को तो उनके अधिकारियों ने ही मार डाला, पर बांग्लादेश में लोकतंत्र वापस लाने के लिए आंदोलन के जरिये हसीना ने उनके उत्तराधिकारी इरशाद के पतन की पटकथा लिख दी।
वह 1991 का चुनाव अपनी कट्टर प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया से हार गईं, लेकिन पांच साल बाद सत्ता में आईं। वह 'बेगमों की लड़ाई' में 2001 का चुनाव हार गईं और 21 अगस्त, 2004 को एक बड़े हमले से बच गईं। इस्लामी कट्टरपंथी समूह हरकत उल जिहाद अल इस्लामी (हुजी) द्वारा किए गए हमले में अवामी लीग के बीस से अधिक नेताओं और कार्यकर्ताओं की मौत हो गई।
वर्ष 1975 के तख्तापलट पर मिडनाइट मैसेकर नामक किताब के लेखक सुखरंजन दासगुप्ता कहते हैं, 'उनसे ज्यादा साहसी कोई नहीं हो सकता है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक पूरी तरह से धार्मिक बंगाली मुस्लिम गृहिणी उस देश में वापस लौटकर, जहां उसके पूरे परिवार का सफाया कर दिया गया था, अपने पिता की पार्टी को फिर से संगठित कर सैन्य शासन को खत्म करके सत्ता में आ सकती है और 2009 से लगातार बारह वर्षों तक शासन कर सकती है!'
शेख मुजीबुर रहमान और हसीना को भी अच्छी तरह जानने वाले दासगुप्ता कहते हैं, 'अपने पिता के सोनार बांग्ला के सपने को पूरा करने की भावना ने उन्हें असंभव जोखिम उठाने के लिए प्रेरित किया है।' अपने लंबे कार्यकाल में हसीना के पास दिखाने के लिए काफी कुछ है। पूर्व कनिष्ठ सूचना मंत्री और हसीना की बेहद करीबी तराना हलीम कहती हैं, 'उन्होंने बांग्लादेश के विकास के स्वर्णिम दशक का नेतृत्व किया, जब हमारी प्रति व्यक्ति आय भारत से अधिक हो गई, विदेशी मुद्रा भंडार से लेकर बिजली उत्पादन तक के सभी आर्थिक संकेतक कई गुना बढ़ गए।
उन्होंने इस्लामी कट्टरपंथ और आतंक को नियंत्रित किया, जिसने पाकिस्तान और अफगानिस्तान को बर्बाद कर दिया। देश ने उनके कार्यकाल में गरीबी उन्मूलन और सामाजिक समावेश, लैंगिक सशक्तीकरण, बेहतर शिक्षा और बहुत कुछ देखा है।' हलीम कहती हैं कि उन्होंने हमें राजनीतिक स्थिरता दी, जिसने विकास को गति दी। लेकिन शेख हसीना के विरोधी भी कम नहीं हैं, जो उन पर बांग्लादेश को 'पुलिस स्टेट' बनाने का आरोप लगाते हैं, जहां 'जबरन गायब होने' और 'गैर-न्यायिक मुकदमे' कई गुना बढ़ गए हैं। विपक्ष ने उन पर 2019 के चुनावों में धांधली का आरोप लगाया, जिसमें अवामी लीग गठबंधन ने 300 सीटों में से 283 सीटों पर जीत हासिल की थी।
विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए अवामी लीग के युवा नेता सूफी फारूक, जिन्होंने 'डिजिटल बांग्लादेश' अभियान में अहम भूमिका निभाई, कहते हैं, कृषि से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी और विनिर्माण तक मुझे एक ऐसा क्षेत्र दिखाइए, जहां बांग्लादेश ने हमारे शासन के दौरान बड़ी प्रगति नहीं की है। नमक प्रतिरोधी फसलों को शुरू करने से लेकर सॉफ्टवेयर निर्यात को बढ़ावा देने और विदेशी रेमिटेंस को बढ़ावा देने वाले श्रम निर्यात को सुव्यवस्थित करने तक हमने यह सब किया है। विपक्ष ने हमें बेदखल करने के लिए केवल पेट्रोल बम फेंके और सार्वजनिक परिवहन जलाए, लेकिन उन्हें मतपेटी में जवाब मिलता है।
स्वतंत्र बांग्लादेश इस वर्ष 50 वर्ष का हो गया और उसकी नेता 75 वर्ष की हो गईं हैं, तो उत्तराधिकार का प्रश्न उठना लाजिमी है। हसीना अपने परिवार में उत्तराधिकारी की तलाश करेंगी या पार्टी के वफादारों में से किसी एक को चुनेंगी, यह स्पष्ट नहीं है। दासगुप्ता कहते हैं, 'उनके उत्तराधिकारी को लेकर पार्टी में भी चर्चा नहीं होती है। अभी हसीना का कोई विकल्प नहीं है। वह बुजुर्ग हो रही हैं, लेकिन उनकी पार्टी और देश का काम अभी उनके बिना नहीं चल सकता।' अलबत्ता यह सवाल हसीना को जरूर परेशान करेगा, और उनके उत्तराधिकारी को, चाहे वे पार्टी से हों या कहीं और से, उनका पद छोड़ते ही दुर्जेय विरासत के साथ संघर्ष करना होगा।

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