- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- गरीबी का जाल
Written by जनसत्ता: हाल ही में आई विश्व बैंक पालिसी रिसर्च के वर्किंग पेपर के अनुसार भारत में चरम गरीबी में 2011 की तुलना में 2019 में 12.3 फीसद की कमी आई है। यह पेपर ऐसे समय में सामने आया है, जब कई रिपोर्टों में इस बात का जिक्र किया गया है कि भारत में अमीरों और गरीबों के बीच जो खाई है, वह लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन आजादी के इतने सालों बाद भी आखिर क्या कारण है, जिससे भारत में गरीबी अब भी कायम है।
चाहे वे गलत सरकारी नीतियां हों, सामाजिक परिस्थितियां या फिर बढ़ती महंगाई या बढ़ती जनसंख्या आदि। एक आम आदमी के लिए गरीबी एक अभिशाप से कम नहीं होती है। गरीबी उस समस्या को कहते हैं, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं- रोटी, कपड़ा और मकान को पूरा करने में असमर्थ होता है। उस व्यक्ति को गरीब या गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है, जिसके आय का स्तर निम्न होने पर वह अपनी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है।
भारत में गरीबी एक मूलभूत आर्थिक और सामाजिक समस्या है। भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है। आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत की गिनती विकासशील देशों में होती है। आर्थिक नियोजन की दीर्घावधि के बावजूद भारत को गरीबी की समस्या से निजात नहीं मिल रही है, तो जाहिर है हमें और बेहतर करने की जरूरत है।
देश में चारों ओर बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने आम जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। आम नागरिक बढ़ती महंगाई से परेशान है, पर देश में चारों ओर जो माहौल परिलक्षित हो रहा है, उससे आम नागरिक का कोसों कोई सरोकार नजर नहीं आता। सरकार जनता की बुनियादी समस्याओं पर ध्यान दे, रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए, वह बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाएस इससे आम नागरिक सुकून से जिंदगी गुजार सके।