सम्पादकीय

महामारी में बढ़ी गरीबी

Subhi
18 Jan 2022 3:03 AM GMT
महामारी में बढ़ी गरीबी
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कोरोना महामारी के दौर में दुनिया भर में असमानता जबरदस्त तरीके से बढ़ी है। वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम में ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट जारी की गई। यह बताती है कि असमानता यूं तो पूरी दुनिया में बढ़ी है

कोरोना महामारी के दौर में दुनिया भर में असमानता जबरदस्त तरीके से बढ़ी है। वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम में ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट जारी की गई। यह बताती है कि असमानता यूं तो पूरी दुनिया में बढ़ी है, लेकिन भारत में स्थिति बहुत गंभीर है। यहां मार्च 2020 से नवंबर 2021 तक 4.6 करोड़ लोग एक्सट्रीम पॉवर्टी में चले गए। पूरी दुनिया में इस बीच जितने लोग गरीबी की दलदल में फंसे, यह संख्या उसकी आधी है।

मार्च 2020 से नवंबर 2021 के बीच देश के 84 फीसदी परिवारों की कमाई में कमी आई। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 15 फीसदी से ऊपर चली गई। लेकिन इसी दौर में देश के अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई, जबकि उनकी संपत्ति 23.1 लाख करोड़ से बढ़कर 53.2 लाख करोड़ तक जा पहुंची। इस दौर में भारत अरबपतियों की संख्या के मामले में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच गया। भारत में आज इतने अरबपति हैं, जितने फ्रांस, स्वीडन और स्विट्जरलैंड को मिलाकर भी नहीं हैं।

अंतर यह है कि वहां के अरबपति अपने चारों ओर अभाव, गरीबी और लाचारी से जूझते लोगों से उस तरह नहीं घिरे हैं, जैसे कि भारत के अरबपति घिरे हैं। सुपर रिच तबके और एक्सट्रीम पॉवर्टी में फंसे लोगों के बीच की चौड़ी होती यह खाई अन्य कमजोर तबकों को भी प्रभावित कर रही है। रिपोर्ट बताती है कि 2020 में महिलाओं की सामूहिक कमाई में 59.11 लाख करोड़ रुपये की कमी आई। कुछ समय पहले वैश्विक गैर-बराबरी रिपोर्ट आई थी।

उसमें भी बताया गया था कि देश की कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी हिस्सा सर्वाधिक अमीर 10 फीसदी और उसमें भी 22 फीसदी हिस्सा सुपर रिच के हिस्से जा रहा है। दूसरी तरफ, आबादी के निचले पायदान पर बैठे 50 फीसदी भारतीय राष्ट्रीय आय के सिर्फ 13 फीसदी में गुजारा करने को मजबूर हैं। 40 फीसदी मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग की भी स्थिति अच्छी नहीं है, जो कुल राष्ट्रीय आय के सिर्फ 30 फीसदी में गुजर-बसर कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि आर्थिक सुधारों के मौजूदा मॉडल में कोई गड़बड़ी है।

आखिर इन्हीं सुधारों ने शुरुआती दशकों में देश में बड़े पैमाने पर गरीबी घटाने में मदद की थी। इसलिए इसे सुधारना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो इसके गलत परिणाम सामने आएंगे। अव्वल तो इससे आर्थिक विकास पर बुरा असर पड़ेगा। ऐसा हो भी रहा है। अधिकांश आबादी की आय में मुनासिब बढ़ोतरी नहीं होने से डिमांड में कमी आ रही है। दूसरी बात यह है कि असमानता बढ़ने से सामाजिक अस्थिरता भी बढ़ती है। देश के नीति-निर्माताओं को इस मुश्किल का हल निकालना होगा। उन्हें आर्थिक सुधारों के मॉडल को ऐसा बनाना होगा, जिससे समाज के सभी वर्गों को आर्थिक तरक्की का फायदा मिले।


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