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- पोस्टर बदल गया
शहर का सबसे बड़ा पोस्टर इसी स्थान पर लगता है, बल्कि कई बार शहर इसी पोस्टर के आगे इतना झुक जाता है जैसे रेंग रहा हो। पोस्टरों के आगे हम भारतीय जितना रेंग रहे हैं, उसे देखते हुए पोस्टर का महत्त्व अब देश से भी बड़ा होने लगा है। यानी अब केवल पोस्टर ही बता पाता है कि जनता के लिए देश क्या कर रहा है। वह वर्षों से शहर के सबसे ऊंचे पोस्टर के ठीक नीचे बैठता है। पोस्टर बदल जाते हैं, लेकिन उसका जीवन वैसे का वैसा ही रहता है। पोस्टर उसे पृष्ठभूमि देता है और इस तरह वह हर सरकार के कारनामों के साथ जुड़ा रहता है। बड़े से बड़े संदेश उसकी पृष्ठभूमि से जुड़ते हैं और कई बार उसे यकीन हो जाता है कि देश को समझने के लिए बस एक न एक पोस्टर चाहिए। एक दिन सुबह उसने देखा कि कोई पोस्टर पर खड़े व्यक्तित्व के मुंह पर कालिख पोत गया है। वह सोचने लगा कि पोस्टर पर अगर बड़ा दिखना आसान है, तो उसके ऊपर कालिख पोतना और भी सरल है। पहली बार वह पोस्टर पर देश के सबसे बड़े नेता का चेहरा देखकर डर गया था। सारे नारे कालिख में छिप गए थे। अचानक वहां पुलिस पहुंच गई और उससे पूछताछ होने लगी, 'कब से यहां हो?' यह सुनते ही जैसे उसे राष्ट्रीयता का पदक मिल गया हो, इसलिए कह दिया, 'बहुत पहले से, पोस्टर लगने की शुरुआत उसके यहां बैठे-बैठे ही हुई है।