सम्पादकीय

तालीबान के कब्जे का बाद: अफगानिस्तान का संकट और भारत

Gulabi
20 Dec 2021 5:53 AM GMT
तालीबान के कब्जे का बाद: अफगानिस्तान का संकट और भारत
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अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद वहां के अवाम को इस सर्दी के मौसम में पहले से बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हैं
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद वहां के अवाम को इस सर्दी के मौसम में पहले से बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हैं। पानी व खाद्य पदार्थों की भारी कमी के कारण देश का मानवीय संकट अधिक गंभीर होता जा रहा है। भुखमरी का सामना करने वाले अफगानियों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। अफगानिस्तान की कुल आबादी 3.9 करोड़ है, ताजा आंकड़ों के मुताबिक जिनमें से तीन करोड़ लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। दो महीने पहले ऐसे अफगानियों की संख्या लगभग 1.4 करोड़ थी। स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वालों को नए तालिबानी शासन से तालमेल बैठाने में कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ रहा है।
स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाली 2,000 से अधिक संस्थाएं बंद हो चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय सहायता देने वाली एजेसियों ने बताया है कि अगर इस मामले को युद्धस्तर पर न सुलझाया गया, तो साल के अंत तक लाखों छोटे बच्चों को खसरा और जानलेवा बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। यूनिसेफ के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के बच्चे तीव्र कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। देश की सुरक्षा व्यवस्था ने भी खतरनाक रूप ले लिया है। देश में हिंसा बराबर जारी है। देश की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह चरमरा गई है, जिससे उबरने के लिए तालिबान की कोई बड़ी योजना सामने नहीं आई है। उनकी कोशिश है कि अमेरिका उनकी जब्त की हुई दस अरब डॉलर की संपत्ति वापस लौटा दे। यह मामला हाल में अमेरिका के प्रतिनिधियों के साथ दोहा में दो दिन चली बैठक में उठाया गया, लेकिन बात बनी नहीं। अब तक भारत, पाकिस्तान, तुर्की व रूस ने ही अफगानिस्तान को मानवीय सहायता भेजी हैं। पर ये मदद बहुत कम है, जिससे सभी प्रांतों की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
अमेरिका भी कह चुका है कि अफगानिस्तान को मानवीय सहायता दी जाएगी, लेकिन यह सीधे तालिबान को न देकर अंतरराष्ट्रीय मदद बांटने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के जरिये दी जाएगी। उधर कुछ पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली मदद पर रोक लगा दी है। वे एक ऐसे शासन को मदद नहीं करना चाहते, जिसने लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी लगाई हुई है और देश में शरीया कानून लागू कर दिया है। भारत ने अफगानों के लिए, 1.5 टन चिकित्सा संबंधी सामान और पचास टन खाद्यान्न की आपूर्ति शुरू की है, जो तालिबान के कमान संभालने के बाद से और अधिक कुपोषण तथा भुखमरी का सामना कर रहे हैं। पहले तो पाकिस्तान अपने देश से होकर इस आपूर्ति के परिवहन के लिए मंजूरी ही नहीं दे रहा था, फिर जब तैयार हुआ, तो उसने कुछ कठिन शर्तें रख दी हैं। उसने कहा है कि भारतीय आपूर्ति सिर्फ अफगान ट्रकों के जरिये ही हो सकती है और आपूर्ति दिसंबर के आखिर तक पूरी हो जानी चाहिए। केवल पचास अफगान ट्रक ही अफगानिस्तान-पाकिस्तान की मुख्य सीमा चौकी तोरखम तक जा सकते हैं। सवाल उठता
है कि इतनी ज्यादा आपूर्ति मात्र दो हफ्तों में कैसे पूरी हो सकेगी।
यह सब तब हो रहा है, जब पाकिस्तान सारी दुनिया से अफगानियों को मानवीय सहायता देने की अपील कर रहा है और सारा श्रेय खुद लेना चाहता है। उसने अफगानिस्तान की मदद के लिए इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक बुलाई है। दुनिया जानती है कि पिछले 20 साल में भारत ने अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा विकास कार्य किया है, और अब भी उसे मानवीय सहायता देने की कोशिश कर रहा है। भारत चाहता है कि अलग-अलग देशों की ओर से दी जा रही मदद का दुरुपयोग न हो और देश फिर से आतंकवाद का अड्डा न बन जाए। भारत अफगानिस्तान में सर्वसमावेशी सरकार की कामना भी करता है। जब तक ऐसा नहीं होता, तालिबान की मौजूदा सरकार को कोई देश मान्यता नहीं देगा। तालिबान प्रशासन गरीब जनता को राहत देने में विफल साबित हुआ है। तालिबान को ये भी फैसला करना होगा कि अफगानिस्तान की आबादी के अधिकारों और जरूरत के अनुसार शासन करना है या तंग नजरी की बुनियाद पर।
अमर उजाला
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