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कोरोना के बाद की वैश्विक अर्थव्यवस्था: दुनिया में वस्तुओं के उत्पादन का होगा राष्ट्रीयकरण, सूचना का बढ़ेगा वैश्वीकरण
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| भूपेंद्र सिंह |अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आइएमएफ द्वारा प्रकाशित फाइनेंस एंड डेवलपमेंट पत्रिका में यूरेशिया ग्रुप के प्रमुख इयान ब्रेमर का कहना है कि कोरोना संकट के बाद वैश्वीकरण की मुहिम को झटका लगेगा। कोरोना के बाद दुनिया में वैश्वीकरण के बजाय राष्ट्रीयकरण अधिक होगा। इसे उन्होंने 'डी ग्लोबलाइजेशन' की संज्ञा दी है। अब तक विचार था कि छोटी बचत के लिए भी एक देश से दूसरे देश माल को ले जाना लाभप्रद होता है। कोरोना संकट ने ऐसे व्यापार को कठिन बना दिया है। यदि किसी देश में संकट पैदा हो गया और उस देश से माल की आपूर्ति बंद हो गई तो खरीदने वाले देश को कच्चा माल मिलना बंद हो जाता है। जैसे भारत के दवा उद्योग द्वारा चीन से कच्चा माल खरीदा जाता है। इस कच्चे माल को भारत के उद्यमी स्वयं भी बना सकते हैं, लेकिन चीन से खरीदना उन्हें सस्ता पड़ता है। ब्रेमर का कहना है कि आने वाले समय में उद्यमी अपने देश में ही कच्चा माल बनाना पसंद करेंगे, जिससे उनका धंधा दूसरे देश के संकट के कारण बाधित न हो। इसके विपरीत विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ प्रमुख ओकोंजो इवेला ने कहा है कि कोरोना के समय विश्व व्यापार में जो अवरोध उत्पन्न हो गए हैं, उन्हें दूर कर विश्व व्यापार को पुन: पटरी पर लाना चाहिए। उनका उद्देश्य ही वैश्विक व्यापार को बढ़ाना है। इसके बरक्स ब्रेमर का यह कहना ज्यादा सही लगता है कि उत्पादन का राष्ट्रीयकरण बढ़ेगा। आइएमएफ की इसी पत्रिका में ही मैकेंजी ग्लोबल के प्रमुख जेम्स मनीइका ने कहा है कि माल के उत्पादन का राष्ट्रीयकरण होगा, जबकि सूचना का वैश्वीकरण और तेजी से होगा। यदि किसी देश में कोरोना संक्रमण बढ़ जाता है तो उससे माल की आवाजाही में अवरोध पैदा हो सकता है, लेकिन डाटा का व्यापार सुचारु रूप से चलता रहेगा। उनका यह आकलन सही प्रतीत होता है।
माल के उत्पादन का राष्ट्रीयकरण, आनलाइन शिक्षा, डाक्टर से आनलाइन परामर्श
भविष्य में माल के उत्पादन का राष्ट्रीयकरण होगा, जबकि आनलाइन शिक्षा, डाक्टर से आनलाइन परामर्श, साफ्टवेयर जैसी सेवाओं का विश्व व्यापार बढ़ेगा। इस पृष्ठभूमि में भारत सरकार को 400 अरब डालर की वस्तुओं के निर्यात के अपने लक्ष्य पर पुर्निवचार करना चाहिए। यदि वैश्विक स्तर पर माल के व्यापार का राष्ट्रीयकरण होने की संभावना है तो हमें निर्यात केंद्रित बनने की तरफ बढ़ने से बचना चाहिए। यह सही है कि हालिया दौर में हमारे निर्यात कोरोना पूर्व स्तर पर आ गए हैं, लेकिन इसमें भारी वृद्धि की संभावनाएं नहीं दिखतीं। भारत के पास शिक्षित लोगों की भारी उपलब्धता है। माल के उत्पादन में उन्हें रोजगार उपलब्ध कराना कठिन होता जाएगा, क्योंकि कोरोना संक्रमण के कारण आटोमेटिक मशीनों का उपयोग बढ़ेगा। कई उद्योगों ने अपने श्रमिकों के लिए फैक्ट्रियों में ही रहने और भोजन की व्यवस्था की है। श्रम का मूल्य लगातार बढ़ रहा है। इसलिए यदि भारत सरकार के मंतव्य के अनुसार निर्यात बढ़ भी जाएं तो भी उससे नागरिकों को पर्याप्त रूप से रोजगार मिलना कठिन ही रहेगा। इसके विपरीत युवाओं को सेवाओं के निर्यात में उन्मुख करना कहीं ज्यादा आसान है। इससे सेवाओं का निर्यात भी बढ़ेगा और कोरोना का खतरा भी टलेगा। ऐसे में सरकार को वर्तमान डब्ल्यूटीओ संधि को निरस्त कर नई संधि के लिए वैश्विक मुहिम चलानी चाहिए।
डब्ल्यूटीओ की वर्तमान संधि अप्रासंगिक
वर्तमान में जिन वस्तुओं के व्यापार का संकुचन हो रहा है, वे डब्ल्यूटीओ के दायरे में हैं और जिन सेवाओं का विस्तार होने की संभावना है, वे डब्ल्यूटीओ के दायरे से बाहर हैं। इसलिए सरकार को विश्व समुदाय के समक्ष कहना चाहिए कि डब्ल्यूटीओ की वर्तमान संधि अप्रासंगिक होती जा रही है। इसके स्थान पर सेवाओं के निर्यात की एक नई संधि की जानी चाहिए।
डब्ल्यूटीओ संधि के अंतर्गत प्रोडक्ट पेटेंट व्यवस्था को निरस्त करने की उठाएं मांग
डब्ल्यूटीओ संधि लागू होने से पहले भारत समेत कई देशों में प्रक्रिया यानी 'प्रोसेस' पेटेंट की व्यवस्था थी। आविष्कार करने वाले व्यक्ति को किसी माल या 'प्रोडक्ट' पर पेटेंट नहीं दिया जाता था। आविष्कार करने वाले को केवल उस विशेष प्रोसेस का पेटेंट दिया जाता था, जिससे उसने कोई नया प्रोडक्ट बनाया हो। जैसे फाइजर कंपनी ने कोविड का टीका बनाया। पूर्व के हमारे प्रोसेस पेटेंट के अंतर्गत भारत की कोई भी कंपनी किसी दूसरे प्रोसेस से ऐसा टीका बनाने के लिए स्वतंत्र थी, लेकिन डब्ल्यूटीओ संधि के अंतर्गत उस टीके पर ही पेटेंट दे दिया गया। यानी कोविड के ऐसे टीके को किसी दूसरे प्रोसेस से बनाने की छूट अन्य लोगों को नहीं रह गई। परिणामस्वरूप टीका उपलब्ध होने में देर हुई। इसकी कीमत मानवता को चुकानी पड़ी। इसलिए समय आ गया है कि हम डब्ल्यूटीओ संधि के अंतर्गत प्रोडक्ट पेटेंट व्यवस्था को निरस्त करने की मांग उठाएं। अपने देश में जिन दवाओं के उत्पादन का पिछली सदी के आठवें-नौवें दशक में जो विस्तार हुआ, वह प्रोसेस पेटेंट के कारण ही संभव हो सका था। दूसरी कंपनियों द्वारा खोजी गई दवाओं को भारतीय उद्यमियों ने दूसरे प्रोसेस से बनाकर विश्व बाजार में सस्ते में उपलब्ध कराया। इसलिए डब्ल्यूटीओ की मौजूदा व्यवस्था पर पुनर्विचार आवश्यक है।
सेवाओं के निर्यात में संभावनाएं
सेवाओं के निर्यात में बन रही संभावनाओं को भुनाने के लिए हमें विशेष प्रयास करने होंगे। अंग्रेजी और कंप्यूटर शिक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। अंग्रेजी के विरोध में तर्क दिया जाता है कि उससे हमारी संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी। मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूं। पहले सिंधु घाटी की भाषा थी, जिसे अभी तक पढ़ना संभव नहीं हो पाया। उसके बाद प्राकृत भाषा आई और फिर देवनागरी, लेकिन हमारी संस्कृति की निरंतरता बनी रही। इसके अतिरिक्त यदि हमें अपनी संस्कृति का वैश्वीकरण करना है तो अंग्रेजी अपनानी ही होगी। आज पश्चिमी देशों ने लैटिन भाषा को पकड़ नहीं रखा है। वे अंग्रेजी में आगे बढ़ गए और लैटिन में उपलब्ध संस्कृति को भी संजोये हुए हैं। इसलिए हमें प्रयास करना चाहिए कि अपनी संस्कृति को अंग्रेजी भाषा में सही रूप में प्रस्तुत करें, जिससे हम अंग्रेजी आधारित सेवाओं का भारी मात्रा में विस्तार कर सकें और साथ ही अपनी संस्कृति की रक्षा भी कर सकें। बेहतर हो कि सरकार 400 अरब डालर के माल निर्यात का लक्ष्य बनाने के स्थान पर 4,000 अरब डालर सेवाओं के निर्यात का लक्ष्य निर्धारित करे। कोरोना के बाद की वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए तैयारी अभी से करनी चाहिए।