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- सकारात्मक पहल
Written by जनसत्ता: सन 1991 के शुरुआती दिनों में सोवियत संघ के अंत के साथ ही एक नए दौर का आरंभ हुआ। इसे भूमंडलीकरण का दौर भी कहा जाता है। इस दौरान देशों के बीच विभिन्न आयामों के फासले कम हुए और दावा किया गया की आर्थिक व्यवस्थाओं में बदलाव और सांस्कृतिक पहलू का विस्तार होगा। हालांकि आज मंदी को मद्देनजर रखते हुए आर्थिक पहलू पर भूमंडलीकरण का कैसा असर पड़ा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है और सांस्कृतिक पहलू पर कैसा प्रभाव पड़ा, आज युवाओं को अपनी संस्कृति और इतिहास से अनजान होने की स्थिति देखकर इसको समझा जा सकता है।
इसके उपरांत अगर हम आर्थिक पहलू के मुकाबले सांस्कृतिक पहलू पर नजर डालें तो हमें पता चलता है कि सांस्कृतिक पहलू पर भूमंडलीकरण का ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ा है और धरोहर विलुप्त होने के कगार पर पहुंच जाना इसी बात का प्रमाण है। भारत जैसे देश इस बात को समझ रहे हैं और इस स्थिति से निपटने के लिए प्रयास भी कर रहे हैं।
ऐसा ही एक प्रयास हरियाणा सरकार ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मिलकर किया है। युवाओं के बीच लोक कलाओं के प्रति जागरूकता बढ़े और उन्हें संस्कृति की खूबसूरती का एहसास हो, इसी आशा के साथ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के युवा और सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग की ओर से राज्यस्तरीय सांस्कृतिक समारोह 'रत्नावली' का आयोजन हो रहा है। लोक कलाओं के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से यह एक अहम पहल हो सकती है।
महामारी और दूसरे अन्य कारणों से जो क्षति लोक कलाकारों को पहुंची है, उससे संभलने के मौके निकालने होंगे। हालांकि देखना यह होगा कि इस आयोजन के संकल्प कितने जमीन पर उतरते हैं और उसका हासिल क्या होता है और वह किस रूप में सामने आता है। यह किसी से छिपा नही हैं कि सांस्कृतिक सवालों की चिंता में जो कदम उठाए जाते हैं, वे कई बार एकांगी परिप्रेक्ष्य तक सीमित होकर रह जाते हैं।
जरूरत इस बात की है कि जिस समस्या को इंगित करके कोई पहल की जाती है, उसके नतीजों को ज्यादा से ज्यादा मानवीय बनाने की कोशिश हो। अगर आग्रहों या पूर्वाग्रहों के साथ कोई सांस्कृतिक पहलकदमी होगी तो उसके नतीजे भी उतने ही सीमित होंगे।