सम्पादकीय

आबादी नहीं समस्या

Subhi
13 July 2022 3:29 AM GMT
आबादी नहीं समस्या
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विश्व जनसंख्या दिवस पर सोमवार को जारी यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड पॉप्युलेशन प्रॉस्पेक्ट्स 2022 में बताया गया है कि भारत अगले साल ही चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा।

नवभारत टाइम्स: विश्व जनसंख्या दिवस पर सोमवार को जारी यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड पॉप्युलेशन प्रॉस्पेक्ट्स (डब्लूपीपी) 2022 में बताया गया है कि भारत अगले साल ही चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। इस साल जहां चीन की आबादी 142 करोड़ है, वहीं भारत 141 करोड़ तक पहुंच गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2050 में भारत की आबादी 166 करोड़ के शीर्ष बिंदु पर पहुंचेगी, जबकि चीन की आबादी उस समय तक घटकर 131 करोड़ पर आ चुकी होगी। डब्लूपीपी के मुताबिक 1950 के बाद से पहली बार 2020 में दुनिया की आबादी में सालाना वृद्धि दर 1 फीसदी से नीचे गई। आसार यही हैं कि यह दर आगामी दशकों में और कम होगी। दुनिया की आबादी 2080 तक 10.4 अरब के शीर्ष बिंदु पर पहुंच जाएगी। जहां तक इस ट्रेंड को देखने के तरीके का सवाल है तो दोहराने की जरूरत नहीं कि जनसंख्या वृद्धि को एक समस्या के रूप में लेने की परिपाटी काफी पहले पुरानी पड़ चुकी है। अगर इसमें भी युवा आबादी अधिक हो तो उससे आर्थिक विकास दर को तेज करने में मदद मिलती है। भारत में बुजुर्गों के मुकाबले काम करने लायक लोगों की संख्या अधिक है। इसे डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी जनसांख्यिकीय लाभांश कहते हैं।

चीन और दक्षिण कोरिया जैसे पूर्वी एशियाई देशों की तरक्की का आधार इसी को माना जाता है। लेकिन काम करने लायक आबादी का बड़ा हिस्सा बेरोजगार हो, तो इसका मतलब है कि डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा नहीं उठाया जा रहा है। भारत के साथ यही हो रहा है। इसलिए हमें युवाओं के लिए रोजगार के अधिक मौके बनाने होंगे। डेमोग्राफिक डिविडेंड की बदौलत ही 1990 और 2000 के दशक में चीन की जीडीपी ग्रोथ लगातार 10 फीसदी के आसपास रही। अब चीन में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है। लेकिन भारत के पास लंबे समय तक यह मौका बना रहने वाला है। 2021 में भारत की करीब 64 फीसदी आबादी कामकाज के लायक थी। अगले 10 साल में यह बढ़कर लगभग 65 प्रतिशत हो जाएगी। भारत अभी युवा देश है। अगर हम 15 से 29 साल की उम्र वालों को नौजवान मानें, तो भारत में औसत उम्र 28 साल के करीब है। यह 2026 तक बढ़कर 30 और 2036 तक 35 साल हो जाएगी। वैसे, भारत में भी टोटल फर्टिलिटी रेट (यानी एक महिला के बच्चों की औसत संख्या) 2.1 के रिप्लेसमेंट रेट से नीचे है, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर इसमें जो असंतुलन है, वह एक चुनौती है। खासकर, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जहां टोटल फर्टिलिटी रेट राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। इस असंतुलन को दूर करना होगा। यह काम महिलाओं की शिक्षा में सुधार लाकर और उन्हें सशक्त कर किया जा सकता है।


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