सम्पादकीय

लोकप्रिय सम्मोहन की उलझन

Rani Sahu
12 Sep 2022 7:06 PM GMT
लोकप्रिय सम्मोहन की उलझन
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हिमाचल के प्रति आम आदमी पार्टी का सम्मोहन और प्रदेश का 'आप' के प्रति सम्मोहन, इस समय गहन पड़ताल के दौर से गुजर रहा है। सम्मोहन का कारवां निकला जरूर, लेकिन बना कितना, यह परीक्षण जारी है। जाहिर है अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति में अपने सम्मोहन की कला का जादू दिखा चुके हैं, लेकिन हिमाचल में भी यह चलेगा कहा नहीं जा सकता। आरंभिक तौर पर मोर्चा संभालते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को लेकर मंडी से कांगड़ा और हमीरपुर से शिमला तक की पैमाइश करते रहे, लेकिन अब अपने विकल्प के तौर पर मनीष ससोदिया को भेज रहे हैं। कुछ तो रणनीतिक फर्क आया कि हिमाचल में तिलिस्म छोड़ कर पार्टी गुजरात की उड़ान पकड़ रही है, लेकिन इसी घटनाक्रम के बीच एक बार फिर डा.राजन सुशांत 'आप' का दामन थाम रहे हैं। हालांकि उनका यह कदम न तो हैरान करता है और न ही इससे पार्टी कोई चमत्कार कर रही है, लेकिन अदला बदली की नुमाइश में आम आदमी पार्टी भी अपना दम खम दिखा रही है। सवाल यह कि नई राजनीति की सदा खोज में रहे राजन सुशांत के लिए 'आप' की मुंडेर उड़ारी भरने के लिए माफिक रहेगी या पिछले उपचुनाव की परिणति से आगे निकल कर यह कोई नया तीर मार पाएंगे। बेशक मुद्दे हमेशा सुशांत की जुबान पर चढक़र बोलते हैं और संघर्ष उनकी तासीर में है, लेकिन यहां सवाल 'आप' की तासीर का है। दिल्ली और पंजाब की तासीर से भिन्न हिमाचल की राजनीतिक हस्ती इतनी सहज नहीं कि एक नारे पर फिदा हो जाए, वरना जिस राजन सुशांत ने शाह नहर पर आंदोलन खड़ा करके परिवर्तन की लहर पैदा की या ओपीएस को एक साबुत मुद्दा बना दिया, वह आज पुन: 'आप' का सदका न करता। ऐसे में आप के सामने सुशांत और सुशांत के साथ 'आप' का भविष्य अपना नया परीक्षण कर रहा है।
पार्टी को हिमाचल में एक लोकप्रिय नेता की जरूरत है, लेकिन हिमाचल में लोकप्रियता के अपने संदर्भ भी बदलते रहते हैं। यहां न तो संघर्ष की राजनीति को पूर्ण जनसमर्थन मिला और न ही राजनीति नेताओं का मार्ग प्रशस्त करती है। यह दीगर है कि जातीय, वर्ग और परिवारवाद से निकले नेताओं का बार-बार आगमन होता रहा है। हम कर्मचारी व छात्र राजनीति को सशक्त होते देख सकते हैं, लेकिन लोकप्रियता के मानदंड पर स्थायी नेता नहीं मिल रहे। यहां सत्ता के संदूक से मिलता मुख्यमंत्री का पद ही लोकप्रियता का पदक है। यह रुतबा आज जयराम ठाकुर के पास है, अतीत में वीरभद्र सिंह व प्रेम कुमार धूमल अपने-अपने मुख्यमंत्रित्व से अर्जित ऊर्जा के कारण जनता के एक बड़े हिस्से के साथ जुड़ रहे। इसीलिए कांग्रेस के चुनावी अभियान में स्व. वीरभद्र सिंह का नाम लोकप्रियता की रिक्तता पूरी करता रहेगा और जहां भाजपा को कमी पेश आएगी प्रेम कुमार धूमल का नाम भरपाई करेगा। सुजानपुर में सरकार का जश्न वास्तव में धूमल के नाम पर लोकप्रियता के संवेग को आगे बढ़ाना रहा। निश्चित रूप से भाजपा का राजनीतिक निवेश जयराम ठाकुर को लोकप्रिय बनाने का सबसे बड़ा उपक्रम है, लेकिन अनुराग ठाकुर व जगत प्रकाश नड्डा की लोकप्रियता को भी आगामी चुनाव परखेगा। कांग्रेस की स्थिति अलग है। यह इसलिए कि वर्तमान सरकार के अधिकांश मंत्री जिस हद तक अलोकप्रिय हैं, उनके मुकाबले कांग्रेस के पास हर जिला में एक से बढ़ कर एक नेता इसलिए लोकप्रिय मान लिए जाएंगे, क्योंकि सरकार का विरोध कई भाजपा विधायकों को कमजोर मान चुका है। स्वयं भाजपा के रणनीतिकारों ने पच्चीस से तीस विधायकों के टिकट काटने का भय दिखाकर घोषित रूप से चुनावी अलोकप्रियता पैदा कर ली है और इसलिए विपक्ष को नकारात्मक वोटिंग पैटर्न का लाभ मिल सकता है। बहरहाल आम आदमी पार्टी अपनी आरंभिक लोकप्रियता को बरकरार रखने में शिथिल दिखाई दे रही है। ऐसे में ब्रांड आप, यानी केजरीवाल का परिदृश्य से नदारद होना महंगा साबित होगा। 'आप'को या तो स्थानीय नेताओं में लोकप्रियता खोजनी होगी, जिस तरह पंजाब में भगवंत मान की स्वीकार्यता रही या केजरीवाल का सम्मोहन साबित करना होगा।

By: Divyahimachal

Rani Sahu

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