सम्पादकीय

पापुलर फ्रंट आफ इंडिया

Admin2
12 Jun 2022 9:54 AM GMT
पापुलर फ्रंट आफ इंडिया
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क : प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पीएफआइ यानी पापुलर फ्रंट आफ इंडिया के खिलाफ ताजा कार्रवाई ने एक बार फिर इस बात को रेखांकित किया है कि देश में संवेदनशील मुद्दों पर चलने वाली गतिविधियों और उसके पीछे खड़ी ताकतों पर नजर रखने की जरूरत है। यह संभव है कि संदेह के घेरे में आए सभी लोग या समूह अवांछित या गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल नहीं हों, मगर सतर्कता के लिए कई बार समान नजरिया जरूरी होता है। यों भी, वक्त रहते सावधानी बरतना कई बार सरकारी तंत्र का दायित्व होता है।

इस लिहाज से देखें तो पीएफआइ के तैंतीस खातों पर जिस तरह ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने रोक लगाई है, उसके पीछे कोई ठोस आधार होगा, लेकिन फिलहाल यह कार्रवाई कानून की कसौटी पर रहेगी। पीएफआइ के जिन खातों पर रोक लगाई गई है, उनमें अड़सठ लाख रुपए से ज्यादा की रकम है। ईडी की जांच में यह पाया गया है कि इन खातों में 2009 से लेकर अब तक एक सौ दस करोड़ रुपए से ज्यादा जमा किए गए हैं।
जाहिर है, सामाजिक सरोकारों के लिए काम का दावा करने वाले किसी संगठन में अगर इतनी बड़ी रकम आ रही है और जिसके दुरुपयोग की आशंका है, तो उस पर नजर रखना प्रथम दृष्टया सरकार की जिम्मेदारी बनती है। पिछले कुछ सालों में लगातार देश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली कई अराजक या फिर हिंसक गतिविधियों में पीएफआइ का नाम आ रहा हो तो उसे निगरानी के दायरे में रखने को सतर्कता की कार्रवाई कहा जा सकता है।
हालांकि पीएफआइ ने ईडी की ओर से उसके बैंक खातों को अस्थायी तौर पर कुर्क किए जाने की आलोचना की और कहा कि 'विभाजनकारी नीतियों' के खिलाफ 'न झुकने वाला उसका रुख' ईडी की कार्रवाई की मुख्य वजह है, जिसके चलते उसे 'राजनीति से प्रेरित' मामलों में निशाना बनाया जा रहा है। लेकिन पीएफआइ को यह सोचने की जरूरत है कि कई गैरकानूनी, अराजक या हिंसक घटनाओं में किसी न किसी रूप में उसके संलिप्त होने या आर्थिक मदद करने के आरोप लगातार सामने आ रहे हैं तो क्या ये पूरी तरह से निराधार हैं! अगर ऐसा है भी तो यह आखिर कानूनी प्रक्रिया के जरिए साबित होगा।पिछले कुछ सालों के दौरान जहां दिल्ली में हुए दंगों में पीएफआइ की भूमिका पर सवाल उठे थे, वहीं इस पर सीएए विरोधी आंदोलन को शह देने और कई स्तरों पर देश विरोधी काम करने के भी आरोप लगे। कुछ समय पहले कर्नाटक में उठे हिजाब विवाद के पीछे भी इस संगठन का हाथ होने की बात कही गई। इसके अलावा, सरकारी एजंसियों की जांच में यह पाया गया था कि पीएफआइ कई खाड़ी देशों और चीन से भी धन जुटा रहा है। सवाल है कि अगर अलग-अलग जांच में कई अवांछित गतिविधियों में इस संगठन के संलिप्त होने के आरोप सामने आ रहे हैं तो ऐसा क्यों है! ईडी का ताजा कार्रवाई के पहले पिछले साल आयकर विभाग ने भी पीएफआइ के बैंक खातों में विदेशों से मिल रहे धन पर रोक लगा दी थी।
पीएफआइ खुद को मुसलमानों के अलावा देश में दलितों, आदिवासियों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ मोर्चा उठाने और न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा की पैरोकारी का दावा करता है। लेकिन ऐसा क्यों है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में कानून को ताक पर रख कर होने वाली अराजक और हिंसक गतिविधियों में भी इसकी संलिप्तता के आरोप सामने आते रहे हैं? देश और समाज के हक में काम करने वाले किसी भी संगठन के कामकाज में अगर पारदर्शिता होगी, तो उसके कानून के कठघरे में खड़ा होने की नौबत क्यों आएगी?

सोर्स-jansatta

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