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पोप की ऐतिहासिक इराक यात्रा ने दुनिया को वही संदेश दिया, जो भारत सदियों से देता आ रहा है
पिछले दिनों पोप फ्रांसिस इराक की यात्रा करने वाले इतिहास के पहले पोप बने। वहां पहुंचकर उन्होंने इराक को 'सभ्यता का उद्गम' कहा। पोप की इस ऐतिहासिक यात्रा को विश्वभर में पश्चिम एशिया में विभिन्न समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के नजरिये और आशावाद की भावना से देखा गया। इराक के प्राचीन शहर ऊर में आयोजित एक महत्वपूर्ण सर्वधर्म बैठक में उन्होंने कहा कि 'शत्रुता, अतिवाद और हिंसा का जन्म किसी धार्मिक व्यक्ति में नहीं हो सकता, बल्कि ऐसा करने वाले धर्म के साथ विश्वासघात करते हैं।' पोप का यह संदेश विश्व के सभी धर्मों द्वारा दी गई शिक्षाओं का सार है। उनका संबोधन यह दर्शाता है कि धर्म जोड़ने का काम करता है, न कि तोड़ने का।
पोप ने कहा- आपसी भावना के साथ काम करने में न सिर्फ इराक, बल्कि संपूर्ण विश्व की भलाई है
दरअसल ऊर इराक का हजारों साल पुराना शहर है, जो हजरत इब्राहीम की जन्मस्थली के नाम से जाना जाता है। हजरत इब्राहीम को यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म के लोग आदर के साथ देखते हैं। इस यात्रा का एक और ऐतिहासिक क्षण पोप फ्रांसिस और अयातुल्ला अली अल सिस्तानी के बीच हुई मुलाकात थी। मालूम हो कि इसके लिए पोप बगदाद से नजफ एक विशेष विमान से गए थे। नजफ शहर एक मुख्य शिया धार्मिक केंद्र है। यहां दुनिया भर के शिया समाज के लोग जाते हैं। यहां मौजूद हजरत इमाम अली इब्न अबी तालिब की मजार इस शहर की महत्ता का एक बड़ा कारण है। अयातुल्ला सिस्तानी को विश्व के प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता है। वह इराक और शिया समाज की एक बड़ी हस्ती माने जाते हैं। पोप और अयातुल्ला के बीच आपसी योगदान के साथ-साथ विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच आपसी सहयोग और संवाद के महत्व पर चर्चा की गई। इस बैठक में पोप ने कहा कि आपसी भावना के साथ काम करने में न सिर्फ इराक, बल्कि संपूर्ण विश्व की भलाई है।
सर्वधर्म संवाद से मतभेदों को समाप्त किया जा सकता है
देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न धार्मिक नेताओं और सरकारों के बीच संवाद काफी बढ़े हैं। आज धर्म को शांतिपूर्ण व्यवस्था को बढ़ाने में एक बड़े सहयोगी के रूप में देखा जाता है। इसीलिए इन दिनों सर्वधर्म संवाद के माध्यम से मतभेदों को समाप्त करने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं। अगर आज इन प्रयासों में तेजी लाई जाए तो इसका भविष्य में फलदायी परिणाम अवश्य प्राप्त हो सकता है। संयुक्त अरब अमीरात फतवा परिषद के प्रमुख शेख अब्दुल्ला बिन बिया ने एक बार कहा था कि मानवता एक जहाज पर सवार है और इसे बचाना सभी का कर्तव्य है।
शांति के अभाव में कोई भी समाज या राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता
वास्तव में मानव इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा है, जहां लोगों ने अपने राष्ट्र और सभ्यता को एक-दूसरे के प्रति हिंसा और शत्रुता में फंसाकर नष्ट कर दिया। शांति मात्र एक शब्द नहीं है। इसके अभाव में कोई भी समाज या राष्ट्र तरक्की नहीं कर सकता। इसका असर समाज से लेकर देश की अर्थव्यवस्था या राष्ट्र से जुड़े प्रत्येक पहलू में देखा जा सकता है। इसलिए समाज में शांति बनाए रखने का दायित्व केवल सरकार का नहीं, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। याद रखें कि आपसी मतभेदों को स्वीकार करने और एक-दूसरे के प्रति आपसी सम्मान की भावना को अपनाने से शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की शुरुआत होती है। विभिन्नता को पनपने देना एक स्वस्थ समाज की कुंजी है। इसके विपरीत विभिन्नता को खतरे के रूप में देखने वाली मानसिकता अगर संपूर्ण समाज में फैल जाए तो उस समाज में रचनात्मकता और एकजुटता भी समाप्त होने लगती है। इसलिए यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि विभिन्नता वरदान है, कोई दोष नहीं। इसकी मौजूदगी किसी राष्ट्र को आगे बढ़ने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करती है।
विश्व में केवल भारत ही ऐसा देश है, जहां लोग बिना किसी भेदभाव के बरसों से साथ रह रहे हैं
आज विश्व में केवल भारत ही एक ऐसा देश है, जो इस संबंध में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करने की क्षमता रखता है। अपनी समृद्ध विरासत, संपन्न विविधता और सहिष्णुता की सहज भावना के साथ भारत दुनिया में आध्यात्मिक शक्ति के रूप में उभरकर सामने आ सकता है। भारत में प्रत्येक धर्म और संस्कृति के लोग बिना किसी भेदभाव के बरसों से साथ रहते आ रहे हैं। इसका बड़ा कारण यहां के लोगों की आपसी सामंजस्य की प्रवृत्ति है। इस प्रवृत्ति ने यहां के लोगों के मन में अपने धर्म को लेकर श्रेष्ठता का नहीं, बल्कि विनम्रता का भाव पैदा किया। इंसान शांति की एक सतत स्थिति में हमेशा रह सकता है, लेकिन टकराव और झगड़े की स्थिति में हमेशा रहना संभव नहीं। आज जब धार्मिक कारणों से पैदा हुई हिंसा और आतंकवाद की घटनाएं सुनने में आती हैं तो ऐसे में सभी समुदायों के धार्मिक गुरुओंं की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे सभी एक साथ आएं और सह अस्तित्व के संदेश को समाज के सामने रखें। धर्म में श्रेष्ठता के भाव को आज खत्म करने की आवश्यकता है।
पोप की ऐतिहासिक इराक यात्रा ने दुनिया को वही संदेश दिया, जो भारत सदियों से देता आ रहा है
जब तक किसी भी धर्म के मानने वाले लोगों में यह भाव रहेगा कि 'मेरा धर्म या मेरा विचार ही सर्वश्रेष्ठ है', तब तक विश्व में पूर्णत: शांतिपूर्ण समाज की कल्पना मुश्किल है। इस आधार पर जो लोग समाज या राष्ट्र की शांति भंग करने का प्रयास करते हैं, वे सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट पहुंचाते हैं। कोई भी सकारात्मक कार्य केवल शांति के माहौल में ही किया जा सकता है-चाहे वह व्यक्तिगत हो या सामाजिक। पोप की ऐतिहासिक इराक यात्रा-शांति, सहिष्णुता और भाईचारे के विचार की सार्वभौमिकता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने वही संदेश दिया, जो भारत के लोग और यहां की संस्कृति सदियों से देती आ रही है। इस खूबसूरत दुनिया को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है। हमारी आने वाली पीढ़ियों की क्षमता सही दिशा में उजागर हो, इसके लिए एक शांतिपूर्ण समाज की आवश्यकता है। ऐसे समाज को अस्तित्व में लाने के लिए हमें आज से ही प्रयास करने होंगे।
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