सम्पादकीय

बेसिर तन

Rani Sahu
31 July 2022 7:07 PM GMT
बेसिर तन
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वह सिर के बिना, लेकिन तन पर टिका है

By: divyahimachal

वह सिर के बिना, लेकिन तन पर टिका है। दरअसल उसके अस्तित्व को इतनी बार तन से जुदा किया गया कि अब वह सिर का महत्त्व ही भूल गया है। वह एक शरीर मात्र है, जो चलता है या गाहे-बगाहे चलाया जाता है। उसे उठते-बैठते यह प्रश्न तकलीफ देता है कि अब 'सिर को तन से जुदा' करने का नारा देने वाले अपना सिर कैसे ऊंचा कर लेते हैं। उसने जब भी सिर ऊंचा करने की कोशिश की, उसकी जाति ने झुका दिया या उसे जितनी सरकारी सुविधाएं मिलीं, उनके लिए हर बार सिर झुकाना पड़ा। वह घोषित गरीब बनकर उठना चाहता है, इसीलिए भूख-प्यास में देश की नीतियों और कार्यक्रमों के साथ चलते हुए बड़ा वर्ग बनकर दिखाई देता है। ये तमाम कार्यक्रम उसे केवल अपने धड़ में यानी पेट के करीब ही महसूस होते हैं, इसलिए न गर्दन के खड़े होने और न ही टांग पर खड़े होने की उसे फुर्सत रहती है। वह सोचता है कि ये कौन लोग हैं, जिनके सिर को तन से अलग करने की प्रतियोगिता चल रही है, जबकि उसके परिप्रेक्ष्य में तो देश को भी सिर उठाए रखने में तन कमजोर पड़ चुका है। अक्सर लोग बाग सिर उठाए रखने के लिए अतिक्रमण करते हैं।
वैसे हमारा सिर खड़ा ही अतिक्रमण पर है। अपने आसपास देश की संपत्ति देख कर अतिक्रमण करो तो इस तरह आपकी अकड़ दिखाई देगी, वरना बीपीएल की जकड़ में तो देश का सारा राशन चला गया। दरअसल दलबदल करते विधायकों को गौर से देखें तो वे इसलिए लाभान्वित हो रहे होते हैं क्योंकि वे अपनी मर्जी के मुताबिक सिर को तन से जुदा कर लेते हैं, बल्कि अब तो दिमाग खुद कहने लगा है कि सिर को खुद ही अलग कर लो। मैं तो अपने विधायक से डरने लगा हूं। उसे देखने से पहले सोचना पड़ता है कि वह सिर के बिना या तन के साथ मिल रहा है। बिना किसी बात या राज के अगर जनप्रतिनिधि आपके पांव छू रहे हैं, तो बात आपके सिर तक जाएगी। आप अगर सिर के साथ जनप्रतिनिधियों को देखने की कोशिश करेंगे, तो खुद बेसिर पैर हो जाएंगे। और हम बेसिर पैर होते हैं, जब यह उम्मीद करते हैं कि सरकारें जो कह रही हैं, वही कर रही हैं। वे दिन गए जब सिर धड़ की बाजी लगाकर इनसान जीत जाता था, आज सिर खुद ही अलग नहीं किया तो कर दिया जाएगा। क्या सिर के साथ आप देश को अपने करीब खड़ा कर लेंगे।
Rani Sahu

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