सम्पादकीय

महासागरों में फैलता प्रदूषण बना चिंता का विषय

Subhi
19 Jun 2023 4:16 AM GMT
महासागरों में फैलता प्रदूषण बना चिंता का विषय
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हाल के वर्षों में महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है। अरबों टन प्लास्टिक का कचरा हर साल महासागरों में समा जाता है। आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह कचरा महासागरों में जस का तस पड़ा रहता है। अकेले हिंद महासागर में भारतीय उपमहाद्वीप से पहुंचने वाली भारी धातुओं और लवणीय प्रदूषण की मात्रा प्रतिवर्ष करोड़ों टन है।

महासागर हमारी पृथ्वी पर न सिर्फ जीवन के प्रतीक हैं, बल्कि पर्यावरण संतुलन में भी प्रमुख भूमिका अदा करते हैं। पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों से माना जाता है, जिनमें असीम जैव विविधता का भंडार समाया है। पृथ्वी का लगभग सत्तर प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है। पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग सत्तानबे प्रतिशत जल महासागरों में समाया हुआ है। महासागरों की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर पृथ्वी के सभी महासागरों को एक विशाल महासागर मान लिया जाए तो उसकी तुलना में पृथ्वी के सभी महाद्वीप एक छोटे द्वीप से प्रतीत होंगे।

हर साल आठ जून को दुनिया भर में विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। 1987 में ब्रंटलैंड की एक रिपोर्ट में टिप्पणी की गई थी की विश्व के जो महासागर हैं, उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसी रिपोर्ट से प्रेरित होकर कनाडा ने विश्व महासागर दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। 1992 में कनाडा के इंटरनेशनल सेंटर फार ओशन डेवलपमेंट ने इस दिवस को मानाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन पृथ्वी सम्मेलन में रखा था।

आठ जून 2009 को पहला विश्व महासागर दिवस मनाया गया। इसके बाद से हर साल आठ जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। हर साल विश्व महासागर दिवस के अवसर पर दुनिया भर में महासागर से जुड़े विषयों पर विभिन्न आयोजन किए जाते हैं, जो महासागर के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं के प्रति जागरूकता पैदा करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

आज जब विश्व की कुल जनसंख्या का तीस प्रतिशत तटीय क्षेत्रों में निवास करता है तो ऐसी स्थिति में महासागर उनके लिए खाद्य पदार्थों का प्रमुख स्रोत साबित हो सकते हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण होने के कारण महासागर अत्यंत उपयोगी हैं। पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व यहां उपस्थित वायुमंडल और महासागरों जैसे कुछ विशेष कारकों के कारण ही संभव हो पाया है। अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ ही महासागर अपने अंदर और आसपास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रों को पनाह देते हैं, जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु और वनस्पतियां पनपती हैं।

महासागर खाद्य पदार्थों का एक प्रमुख स्रोत होने के कारण हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद से महासागरों से पेट्रोलियम सहित अनेक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को निकाला जा रहा है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन सहित अनेक मौसमी घटनाओं को समझने के लिए समुद्रों का अध्ययन भी महत्त्वपूर्ण है।

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति महासागरों में ही हुई है। आज भी महासागर जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों को बनाए रखने में सहायक हैं। महासागर पृथ्वी के एक तिहाई से अधिक क्षेत्र में फैले हैं। इसलिए महासागरीय पारितंत्र में थोड़ा-सा परिवर्तन पृथ्वी के समूचे तंत्र को अव्यवस्थित करने का सामर्थ्य रखता है।

वर्तमान में मानवीय गतिविधियों का प्रभाव समुद्रों पर भी दिखाई देने लगा है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में दिनों-दिन प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। जहां तटीय क्षेत्र, विशेष कर नदियों के मुहानों पर सूर्य के प्रकाश की पर्याप्त उपलब्धता के कारण अधिक जैव-विविधता वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाते थे, वहीं अब इन क्षेत्रों के समुद्री जल में भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्त्वों के मिलने से वहां जीवन संकट में हैं। तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण और समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुंच पाता है, जिससे वहां जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैव-विविधता भी प्रभावित होती है।

हाल के वर्षों में महासागरों में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है। अरबों टन प्लास्टिक का कचरा हर साल महासागरों में समा जाता है। आसानी से विघटित नहीं होने के कारण यह कचरा महासागरों में जस का तस पड़ा रहता है। अकेले हिंद महासागर में भारतीय उपमहाद्वीप से पहुंचने वाली भारी धातुओं और लवणीय प्रदूषण की मात्रा प्रतिवर्ष करोड़ों टन है।

विषैले रसायनों के रोजाना मिलने से समद्री जैव विविधता भी प्रभावित होती है। लेकिन वायु और अन्य प्रकार प्रदूषण के बरक्स समुद्र के इस कदर प्रदूषित होते जाने को लेकर उसी अनुपात में चिंता नहीं दिखाई देती। जबकि विषैले रसायनों के कारण समुद्री वनस्पति की वृद्धि पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले परितंत्रों में महासागर की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम महासागरीय पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें। तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।

अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ ये समुद्र अपने अंदर और आसपास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रों को पनाह देते हैं, जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव और वनस्पतियां पनपती हैं। इसी प्रकार तटीय क्षेत्रों में स्थित मैंग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन समुद्र के अनेक जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हुए विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। महासागरों में पृथ्वी का सबसे विशालकाय जीव ह्वेल से लेकर सूक्ष्म जीव भी मिलते हैं। एक अनुमान के अनुसार केवल महासागर के अंदर करीब दस लाख जलीय जीवों की प्रजातियां उपस्थित हो सकती हैं।

गौरतलब है कि प्रशांत महासागर पृथ्वी पर सबसे बड़ा महासागर है।




credit : jansatta.com

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