सम्पादकीय

प्रदूषण वाला लॉकडाउन

Rani Sahu
14 Nov 2021 6:41 PM GMT
प्रदूषण वाला लॉकडाउन
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देश की राजधानी दिल्ली में दमघोंटू प्रदूषण के मद्देनजर लॉकडाउन की नौबत आ गई है

देश की राजधानी दिल्ली में दमघोंटू प्रदूषण के मद्देनजर लॉकडाउन की नौबत आ गई है। हालांकि अर्द्धराज्य दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने तत्काल प्रभाव से सरकारी दफ्तरों, स्कूलों, कॉलेज, शैक्षिक संस्थानों को बंद करने का फैसला लिया है। सरकारी कर्मचारी और अफसर (आपात सेवाओं को छोड़ कर) घर से ही काम करेंगे। बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन ही होगी। सभी निर्माण-कार्य, ईंट भट्ठे, डीजल जेनसेट और भट्ठियां, गार्ड्स को हीटर जलाने पर रोक लगा दी गई है। हालांकि परिवहन, बाज़ार, मॉल्स, अस्पताल आदि यथावत रहेंगे। राजधानी की सड़कों पर लाखों वाहन हररोज़ चलते हैं। क्या उनसे प्रदूषण का ज़हर नहीं फैलता रहेगा? पराली जलाने से 30-40 फीसदी प्रदूषण होता है। उस पर सर्वोच्च न्यायालय का सुझाव है कि केंद्र सरकार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली की सरकारों के साथ बैठक कर कोई नीति तय करे, लेकिन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एन.वी.रमण ने यह सवाल किया है कि कमोबेश दिल्ली में दो दिन का पूर्ण लॉकडाउन क्यों नहीं लगाया जा सकता? मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस पर गंभीरता से विचार करने की बात कही है। दिल्ली सरकार सोमवार को सुप्रीम अदालत के सामने अपना पक्ष रखेगी।

यदि पराली के अलावा वाहनांे, उद्योगों, खुली धूल आदि से उपजे प्रदूषण की जानलेवा हवाओं को नियंत्रित करना है, तो लॉकडाउन ही फिलहाल एक विकल्प लगता है। दीपावली के बाद 10 दिन गुज़र चुके हैं, लेकिन राजधानी के ज्यादातर हिस्सों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 400 से ऊपर है। कुछ हिस्सों और नोएडा, गुरुग्राम आदि एनसीआर के इलाकों में एक्यूआई 500 से अधिक रहा है। यह गंभीर ही नहीं, आपात स्थिति है। दिल्ली-एनसीआर की हवा बीते शनिवार को दुनिया में सबसे खराब आंकी गई। आकलन किए जा रहे हैं कि फिलहाल 25 दिनों तक पूरी तरह राहत के आसार नहीं हैं। हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि घर में भी मास्क पहनना पड़ रहा है। प्रदूषण पर एक बार फिर सर्वोच्च अदालत बेहद सख्त हुई है। हर साल सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने लगता है और सांस घुटने लगती है। यह सिलसिला जारी रहा है। अदालत ने 'गैस चैंबर' वाली टिप्पणियां भी की हैं, लेकिन कोई स्थायी समाधान सरकारें नहीं दे पाई हैं। सुप्रीम अदालत ने अब यह भी जानना चाहा है कि पराली के लिए जिन मशीनों को खरीदा गया था, वे किसानों को मुफ़्त में ही मुहैया क्यों नहीं कराई गईं? गरीब, कर्ज़दार किसान ऐसी महंगी मशीनें कैसे खरीद सकते हैं? राजधानी में जो स्मॉग टॉवर स्थापित किए गए थे, वे प्रदूषण पर लगाम क्यों नहीं लगा सके? किसान और पराली के बहाने बनाना एक फैशन बन गया है। पराली के अलावा 70 फीसदी प्रदूषण के बुनियादी कारक क्या हैं? क्या सरकारों ने उन्हें नियंत्रित करने का कोई कार्यक्रम बनाया है?
दिल्ली वालों को प्रदूषण, महामारी, डेंगू की तिहरी मार झेलनी पड़ रही है और दिल्ली सरकार ने बच्चों के स्कूल-कॉलेज खोल दिए हैं! सरकार इतनी संवेदनहीन कैसे हो सकती है? प्रदूषण का खौफनाक रूप अभी छठ पूजा की शुरुआत में ही यमुना नदी में दिखाई दिया। सफेद झाग प्रदूषण और रासायनिक कचरे का ही नजीता थे, जबकि यमुना की सफाई पर करीब 3000 करोड़ रुपए फूंके जा चुके हैं। वह पैसा भी आम करदाता का ही था। डॉक्टर बार-बार आगाह कर रहे हैं कि हवा की गुणवत्ता इतनी खराब होती जा रही है कि डॉक्टर भी घुटन महसूस कर रहे हैं। आम आदमी विभिन्न बीमारियों का शिकार होगा, तो उसकी परिणति क्या होगी? दोषारोपण सिर्फ केजरीवाल सरकार पर ही नहीं है। वह तो विकलांग सरकार है। निर्णय और आपदा प्रबंधन, अंततः, उपराज्यपाल के अधीन हैं, जो केंद्र सरकार का ही हिस्सा हैं, लिहाजा व्यापक संदर्भों में केंद्र सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है। राजनीतिक नेतृत्व और सम्पन्न वर्ग के घर और कार्यालय में हवा को साफ करने वाले उपकरण लगे हैं, लेकिन जनादेश के लिए तो आम आदमी के बीच ही आना होगा। विडंबना है कि पर्यावरण और प्रदूषण किसी भी राज्य में, आज तक, चुनावी मुद्दा नहीं बना। यह जनता की भी नालायकी है। बहरहाल तीन दिन या सप्ताह भर के लिए बंद करने या रोक लगाने से समस्या का हल नहीं निकलेगा। सरकार को महत्त्वपूर्ण निर्णय करने होंगे और उनके तहत बंदोबस्त भी करने पड़ेंगे।

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