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- प्रदूषण के पटाखे
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पटाखों में बारूद का इस्तेमाल किया जाता है। हम सब जानते हैं कि इसके कारण हमारा वातावरण प्रदूषित होता है। जाहिर है, बारूद से युक्त अस्त्र-शस्त्र के इस्तेमाल भारत में बहुत बाद में किए गए थे। इसके पूर्व निश्चित ही दीपावली के अवसर पर बारूद युक्त पटाखे प्रयुक्त नहीं होते होंगे। सवाल उठता है कि क्या दीपावली का त्योहार बिना पटाखे के नहीं मनाए जा सकते हैं? क्या इसके लिए प्रतिबंधों का इंतजार करना जरूरी है? अगर धर्म में किसी प्रकार की परिस्थितिजन्य विकृतियां प्रवेश कर गई हैं तो उसमें सुधार हमें स्वयं करने होंगे। वैसे भी इस त्योहार के मौके पर क्या हम इस तरह खुशियां मनाएंगे कि हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो जाए और फिर खुद हम ही जानलेवा बीमारी की चपेट में आ जाएं?
अक्सर ऐसा माना जाता है कि शरद ऋतु में मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है, क्योंकि यह मौसम उसके प्रजनन के लिए अनुकूल माना जाता है। पहले लोग तेल या घी के दिए जलाते थे। लेकिन महंगाई के कारण आसान तरीका लोगों द्वारा अपनाए जाने लगे। झालरों से प्रकाश बिखेरा जाने लगा, जिससे इन मच्छरों का प्रकोप और बढ़ जाता है। जबकि परंपरागत तरीके अपनाने से मच्छर मर जाते थे। दीपावली बाद चारों ओर स्वच्छता नजर आने लगती थी। आज दीपावली के बाद की पहली सुबह चहुं ओर गंदगी नजर आती है। यानी दीपावली के पूर्व की गई साफ-सफाई पर रात भर में पानी फेर दिए जाते हैं।
अपना गिरेबां
सऊदी महाराज सलमान-बिन-अब्दुल-अजीज आजकल विचित्र विचार जाहिर कर रहे हैं। शायद इसीलिए दुनिया को ईरान के प्रति सचेत कर रहे हैं। कह रहे हैं ईरान को रोको नहीं तो वह परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों को विकसित कर लेगा और क्षेत्र के देशों पर दबाव बढ़ा देगा। ये राजा साहब उस समय कहां थे जब 2015 से लागू ईरानी परमाणु समझौता को बिना किसी कारण के डोनाल्ड ट्रंप ने तोड़ने का ऐलान किया था? बिना उसके दोष के उस पर प्रतिबंध रूपी सजा थोप दी गई थी? मरता क्या नहीं करता!
अब जब ईरान की आर्थिक हालत अमेरिका के दादागिरी के चलते चरमरा गई है तो अब वह परमाणु तकनीक विकसित करने की राह पर चल पड़ा है। सऊदी अरब को पहले अपने गिरेबान में झांक कर खुद से प्रश्न करना चाहिए कि वह यमन में हूती विद्रोहियों के नाम पर कितने नागरिकों के कत्ल की वजह बन रहा है।
'जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड
अहम चुनाव
बिहार में चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और अब नई सरकार का गठन होना बाकी है। मौजूदा राजनीतिक संकेत बने रहे तो नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री पद संभालेंगे। लेकिन इन सबसे इतर इस बार का चुनाव कई मामलों में खास था। अब तक का यह सबसे दिलचस्प मुकाबला था। अमेरिका में चुनाव के नतीजों का दुनिया को जिस तरह इंतजार था, कुछ इसी तरह का मामला बिहार में देखा जा रहा था। भले ही तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री न बने हो या उनकी पार्टी की सरकार नहीं बनी हो, पर उन्होंने एक सशक्त प्रतिद्वंद्वी होने की बात सिद्ध कर दी।
नीतीश कुमार जीत जरूर चुके हैं, लेकिन उन पर अब पहले से भी ज्यादा दायित्व आ चुका है। अब उन्हें उन युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करना होगा जो उनसे नाराज हो चुके हैं। इस चुनाव में उन मतदाताओं का भी आभार व्यक्त करना चाहिए, जिन्होंने इस बार धार्मिक और जाति के समीकरणों से अलग उन मुद्दों पर वोट दिया, जिनकी जरूरत एक आम मतदाता को होती है। मुद्दों की बात की जाए तो रोजगार, स्वच्छ जल, शिक्षा, कानून व्यवस्था आदि वे आम मुद्दे थे, जिन पर सरकारें कुछ बोलने से बचती हैं।
'अनिमा कुमारी, पटना, बिहार