सम्पादकीय

राजनीति: गुजरात मॉडल और विकास की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी जातिवाद-आरक्षण की सियासत में क्यों उलझे

Gulabi
10 Aug 2021 2:55 PM GMT
राजनीति: गुजरात मॉडल और विकास की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी जातिवाद-आरक्षण की सियासत में क्यों उलझे
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की थी

अमित शर्मा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की थी, तो वे देश के 125 करोड़ हिन्दुस्तानियों की बात किया करते थे। वे गुजरात मॉडल की तरह देश के उद्योगों का विकास करने और हर युवा को रोजगार दिलाने की बात किया करते थे। लेकिन विपक्ष मानता है कि अब वही प्रधानमंत्री जातिवाद और आरक्षण की राजनीति करते नजर आ रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि पीएम नरेंद्र मोदी के विकास के दावे की असलियत खुलकर सामने आ गई है। उद्योग क्षेत्र के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है तो करोड़ों युवा बेरोजगार होकर सड़कों पर घूम रहे हैं। यही कारण है कि अब युवाओं को आरक्षण का झुनझुना थमाकर चुनाव में जीत हासिल करने का रास्ता तैयार किया जा रहा है।

यूपी-बिहार की राजनीति में जातिवाद को कड़वी सच्चाई बताया जाता है। कहा जाता है कि यहां जीतना है तो जातिवाद का सहारा लेना ही पड़ेगा। जब 2014 में नरेंद्र मोदी ने विकास और रोजगार की बात कही, और यूपी-बिहार के हर वर्ग से उन्हें जबर्दस्त समर्थन मिला, लेकिन भाजपा नेताओं ने दावा किया है कि अब यूपी-बिहार जातिवाद से आगे देखना चाहता है। वह विकास और रोजगार की बात करना चाहता है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा जातिवाद को बढ़ावा देते हुए दिखाई पड़ रहे हैं, विभिन्न वर्गों को आरक्षण की कैटेगरी का लाभ देने की वकालत करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं तो उनके विकास के दावे पर सवाल उठने लगे हैं। विपक्ष का दावा है कि भाजपा के विकास के दावे की कलई उतर चुकी है और वह बिलकुल खोखला साबित हुआ है। भाजपा को समझ में आ चुका है कि विकास के नाम पर अब राजनीति नहीं की जा सकती। यही कारण है कि अब अपनी जीत के लिए भाजपा जातिवाद और आरक्षण का दांव खेल रही है।

'बेरोजगारों को आरक्षण का झुनझुना थमा रहे हैं पीएम'
कांग्रेस नेता ऋतु चौधरी ने अमर उजाला से कहा कि प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत में यूपी-बिहार के साथ-साथ पूरे देश के युवाओं को हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का सपना दिखाया था, उद्योगों के विकास की बात कही थी। लेकिन पूरे देश के युवाओं ने देखा कि सरकार अपने सात साल के कार्यकाल में उन्हें 10 लाख नौकरियां देने में भी असफल साबित हुई है। उसके औद्योगिक विकास की असलियत खुलकर सामने आ गई है और लाखों कंपनियां ठप हो चुकी हैं और बेरोजगार युवा सड़कों पर आ गये हैं।
उन्होंने कहा कि अब सरकार को इस बात का डर सता रहा है कि युवाओं की नाराजगी उसे उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के चुनावों में भारी पड़ सकती है यही कारण है कि अब युवाओं को आरक्षण का झुनझुना थमाया जा रहा है, जिससे वे सरकार का विरोध न करें। उन्होंने कहा कि सरकार की यह चाल युवा खूब समझ रहे हैं और सरकार की कोई कोशिश काम नहीं आएगी।
गुजरात मॉडल ही लागू कर रहे हैं प्रधानमंत्री
राष्ट्रीय जनता दल के नेता डॉक्टर नवल किशोर ने कहा कि सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असली गुजरात मॉडल को ही लागू कर रहे हैं, और लोगों को समझना चाहिए कि असली गुजरात मॉडल क्या था? उन्होंने कहा कि गुजरात विकास मॉडल का ढिंढोरा तो खूब पीटा गया था, लेकिन असलियत यह है कि गुजरात अभी भी पिछड़ा हुआ है। गुजरात मॉडल की कलई पिछले सात साल में पूरी तरह खुल गई है। प्रधानमंत्री उसी गुजरात मॉडल को पूरे देश में लागू कर सबको पिछड़ा बनाना चाहते हैं और पूरा देश इसे देख रहा है।
डॉ. नवल किशोर ने कहा कि गुजरात मॉडल में सांप्रदायिक हिंसा थी। आज पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम और जातिवाद को जिस तरह आगे बढ़ाया जा रहा है, उससे यही लगता है कि वे अपने असली गुजरात मॉडल को लागू करना चाहते हैं। लोगों को समझना चाहिए कि असली गुजरात मॉडल किसे कहते हैं।
भाजपा ने किया बचाव
भाजपा नेता खेमचंद शर्मा ने सरकार के निर्णय का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और उनकी पार्टी देश के समग्र विकास को अपना लक्ष्य मानती है। इसके लिए एक तरफ तो देश को विकास के रास्ते पर आगे लाने की कोशिश की जा रही है तो वहीं, समाज के दबे-पिछड़े वर्गों को आरक्षण देकर उनका भी विकास करने का काम किया जा रहा है। इससे समाज के सभी वर्गों को एक साथ आगे बढ़ने का अवसर मिल सकेगा और देश का संपूर्ण विकास हो सकेगा।
खेमचंद शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार ने ओबीसी/एससीएसटी वर्गों के साथ-साथ जनरल कैटेगरी के पिछड़े वर्गों को आगे लाने के लिए 10 फीसदी का आरक्षण भी दिया है। इससे यही साबित होता है कि सरकार देश के विकास में समाज के हर वर्ग की हिस्सेदारी सुनिश्चित करना चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम को समाज के सभी वर्गों का विकास करने की दृष्टि से देखा जाना चाहिए, इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
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