सम्पादकीय

सियासत बनाम शुचिता

Subhi
21 Sep 2022 5:39 AM GMT
सियासत बनाम शुचिता
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कांग्रेस के ’भारत जोड़ो अभियान’ के विरुद्ध भाजपा अपने पूर्व के घोषित कांग्रेस मुक्त भारत के अश्वमेध यज्ञ की आंशिक सफलता से मंत्रमुग्ध हो कांग्रेस सहित विपक्ष को उसकी सीमा दिखाने के लिए आक्रामकता से जुट गई है।

Written by जनसत्ता; कांग्रेस के 'भारत जोड़ो अभियान' के विरुद्ध भाजपा अपने पूर्व के घोषित कांग्रेस मुक्त भारत के अश्वमेध यज्ञ की आंशिक सफलता से मंत्रमुग्ध हो कांग्रेस सहित विपक्ष को उसकी सीमा दिखाने के लिए आक्रामकता से जुट गई है। हाल ही में गोवा कांग्रेस के 11 में से 8 विधायकों को भाजपा ने अपने पाले में करके एक साथ कई प्रश्न खड़ा किया है। सही है कि बिना अपनी अचेतन अंतरात्मा की पुकार और सहमति के कोई भी नेता दल बदल नहीं करता, मगर सामने खड़ा दल जब अदृश्य प्रलोभन और उपहार की सुसज्जित थाली लिए उसके नूतन घर प्रवेश या वापसी पर मंगल आरती उतारने को करबद्ध रहते हैं तो सवाल लाजिमी है कि भाजपा भाव-विभोर होकर राजनीतिक शुचिता का हृदयग्राही प्रवचन क्यों देती है।

हालांकि इस तरह का खेल पहली बार नहीं हुआ है, बल्कि दल बदल के दलदल में ही जब अनवरत रूप में कृत्रिम कमल खिलेंगे तो फिर जनता-जनार्दन के आगे वोट की याचना की जरूरत ही क्या है।हाल में मणिपुर और अरुणाचल में जदयू के छह और हिमाचल के दो कांग्रेसी विधायकों को तोड़ने में भाजपा सफल रही है। इस वर्ष उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के पूर्व सपा और कांग्रेस के कुल दो विधायक भी भाजपा के शरणागत हुए थे।

आंकड़ों की गवाही यह भी है कि मार्च 2020 में मध्यप्रदेश के 22 कांग्रेसी विधायकों के त्याग पत्र के जरिए तत्कालीन कमलनाथ की सरकार गिराने की चाल चली गई थी। राष्ट्रपति चुनाव के पूर्व मध्यप्रदेश में बसपा, सपा और निर्दलीय के कुल तीन विधायकों को भाजपा में शामिल किया गया था। गुजरात में वर्ष 2020 में राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के कुल आठ विधायकों ने इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था। इसके कारण राज्यसभा की दो सीटों का सपना देख रही कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर ही विजय प्राप्त हो सकी, जबकि भाजपा के तीनों उम्मीदवार जीत गए। इस साल मई में गुजरात के आदिवासी कांग्रेस विधायक अश्विन कोतवाल भी भाजपा के खेमे में चले गए।

कभी किसी सांसद ने दल-बदल कर घर वापसी की जब बात कही थी, तो हास-परिहास में दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आज जब सांसद घर वापसी की बात कर रहे हैं तो क्या वे कल तक ससुराल में थे! 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद का शपथ लेने के बाद संसद के केंद्रीय कक्ष में राजनैतिक शुचिता का लंबा व्याख्यान देकर स्वस्थ परंपरा को सियासी धरा पर उतारने का सांवेगिक संकल्प किया था।

जब भाजपा अन्य राजनीतिक दलों से भिन्न शुद्ध आचरण और मर्यादा से अपने को श्रेष्ठ मानती है तो कथनी और करनी में विडंबना के जो बादल घनीभूत हो रहे हैं, वे चिंताजनक भी हैं और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत भी।रेडिमेड विधायकों और सांसदों को अपने दल में शामिल करने से भाजपा उन मतदाताओं को क्या जवाब दे सकेगी जिसने भाजपा के विरुद्ध जाकर अपने दूसरे दल के उम्मीदवारों को अपना बहुमूल्य मत प्रदान किया था जो बाद में भाजपा के अनुयायी हो गए।भाजपा के प्रति विपक्षियों का निजी अहम, अहंकार और ईर्ष्या विरोध एक कारण तो है, लेकिन 'विपक्ष तोड़ो' के भाजपा अभियान ने विपक्षियों को और मुखर और मर्माहत कर दिया है।

बुनियादी सवाल यह है कि राजनीति की गंगा को स्वच्छ करने के बजाय जब उसमें गंदगी और डाली जाएगी तो कालांतर में क्या स्थिति होगी, यह उनसे पूछना और जानना जरूरी है जो सबसे ज्यादा राजनीति में शुचिता का पाठ पढ़ाते तो जरूर हैं, लेकिन खुद आचरण से कोसों दूर हैं।


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