सम्पादकीय

देश को नीचा दिखाने वाली सियासत: बड़े संकट के समय सरकारी इंतजाम कम पड़ जाने की आड़ में क्या देश को करेंगे बदनाम

Gulabi
29 April 2021 6:35 AM GMT
देश को नीचा दिखाने वाली सियासत: बड़े संकट के समय सरकारी इंतजाम कम पड़ जाने की आड़ में क्या देश को करेंगे बदनाम
x
मुंशी प्रेमचंद ने अपने उपन्यास गोदान में लिखा है कि

प्रदीप सिंह: मुंशी प्रेमचंद ने अपने उपन्यास गोदान में लिखा है कि सुख के दिन आएं तो लड़ लेना, दुख तो साथ रोने से ही कटता है। दुर्भाग्य से अपने देश में एक ऐसा वर्ग है, जो इस विचार से सहमत नहीं। वह सुख के दिन आने पर रोता है और दुख में लड़ता है। दुख की आहट मात्र से उसका मन मयूर नाचने लगता है। कोरोना की दूसरी लहर का संकट उसके लिए अवसर लेकर आया है। उसका एक ही ध्येय है देश जाए भाड़ में, लेकिन मोदी को गिराने का अवसर नहीं जाना चाहिए। तो अब नई टूलकिट आ गई है। देश और देश के बाहर के मोदी विरोधी अहर्निश सेवा में लगे हैं। अमेरिका में भारत के श्मशान घाटों की फोटो पहले पन्ने पर छप रही हैं। समां ऐसा बांधा जा रहा है जैसे भारत में जिंदा कम और मुर्दों की संख्या ज्यादा है।


भारत में प्रति दस लाख आबादी पर मृत्यु दर सबसे कम
जरा कुछ तथ्यों पर गौर कीजिए। अमेरिका की आबादी 33 करोड़ के करीब है। भारत की आबादी 135 करोड़ से ज्यादा है। भारत विकासशील देश है। अमेरिका विकसित और सबसे अमीर देश है। भारत आज भी गांवों में बसता है। अमेरिका पूरी तरह शहरीकृत देश है। दोनों देशों के संसाधनों और स्वास्थ्य सेवाओं की कोई तुलना भी बेमानी होगी, लेकिन उस अमेरिका में कोरोना से पांच लाख 86 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। भारत, जिसे गर्त में जाता बताया जा रहा है, वहां यह आंकड़ा दो लाख अब पहुंचा है। अमेरिका, ब्राजील और रूस जैसे देशों के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में प्रति दस लाख आबादी पर मृत्यु दर सबसे कम है। अंतरराष्ट्रीय औसत 395 और भारत में 133 का है। अमेरिका में यह आंकड़ा 1754 है। ये सब बताने का यह मकसद कतई नहीं कि हमारे यहां सब ठीक है और चिंता की कोई बात नहीं।
कोरोना की दूसरी लहर के सामने इलाज के सारे प्रबंध नाकाफी साबित हुए

गत 16 अप्रैल के बाद कोरोना की दूसरी लहर सुनामी की तरह आई। उसके सामने इलाज के सारे प्रबंध नाकाफी साबित हुए। दूसरे किसी भी देश में इतनी तेजी से इतने कम समय में संक्रमण नहीं बढ़ा। दो-तीन तरह की चूक हुई हैं। सितंबर के बाद जब कोरोना के केस बहुत कम हो गए तो हम गाफिल हो गए। मान लिया कोरोना चला गया। जनवरी आते-आते तमाम विशेषज्ञ कहने लगे कि भारत हर्ड इम्युनिटी की तरफ बढ़ रहा है। पहली लहर के समय केंद्र सरकार की इसे लेकर आलोचना हुई कि उसने सब कुछ केंद्रीकृत कर दिया है। राज्यों के हाथ बांध दिए हैं। केंद्र ने जनवरी के बाद मुख्यमंत्रियों को राज्य की जरूरत और स्थिति के अनुसार फैसले लेने की छूट दे दी। केंद्र ने 162 ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए राज्यों को पैसा दे दिया, पर राज्यों ने ध्यान नहीं दिया और न ही बड़े निजी अस्पतालों ने। जिन अस्पतालों ने पहली लहर में खूब कमाया था, उन्होंने भी समय रहते ऑक्सीजन प्लांट लगवाने की आवश्यकता नहीं समझी। इस वक्त ऑक्सीजन के लिए सबसे ज्यादा हाहाकार निजी अस्पतालों में ही है।
बड़े संकट के समय सरकारों के इंतजाम कम पड़ जाते हैं पर सियासत करना उचित नहीं
किसी भी बड़े संकट के समय सरकारों के इंतजाम हमेशा कम पड़ जाते हैं। इसके लिए उनकी आलोचना में हर्ज नहीं है, पर क्या इसकी आड़ में देश को बदनाम भी करेंगे? लेफ्ट-लिबरल गैंग किस स्तर पर सक्रिय है, इसके लिए एक छोटा सा उदाहरण शायद काफी होगा। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर पैट कमिंस और ब्रेट ली ने पीएम केयर्स फंड में पैसा दिया। उन्होंने कहा कि वे भारत से प्यार करते हैं। उनके ऐसा करते ही उनके खिलाफ अभियान शुरू हो गया। बाकायदा ट्वीट करके उनसे यहां तक कहा गया कि इसमें पैसा मत डालिए। इससे तो भाजपा का चुनाव अभियान चलता है। आप कल्पना कर सकते हैं कि क्या किसी और देश में सरकार का बड़े से बड़ा विरोधी भी ऐसी बात कह सकता है?
मोदी सरकार की विदेश नीति का नतीजा, अमेरिका समेत तमाम देश भारत की मदद के लिए तत्पर

मोदी सरकार की सात सालों की विदेश नीति और संकट के समय दूसरे देशों की मदद का नतीजा है कि आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और रूस सहित तमाम देश भारत की मदद के लिए तत्पर हैं। इन लोगों से यह भी बर्दाश्त नहीं हो रहा। कहा जा रहा है कि अमेरिका तो इसलिए तैयार हुआ कि चीन और रूस ने मदद का प्रस्ताव दिया। भारतीय वैक्सीन के लिए कच्चा माल देने का आदेश बाइडन प्रशासन ने इसलिए दिया कि पहली लहर के समय भारत ने अमेरिका को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन सहित दूसरी तमाम दवाइयां मुहैया करवाई थीं। अमेरिकी प्रशासन ने इसे स्वीकार किया। अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों का प्रभाव और अमेरिकी संसद के बहुत सारे सदस्यों के दबाव ने भी काम किया, पर यह सब मानने से मोदी पर हमला कमजोर पड़ता। इसलिए डिनायल मोड में चले जाओ और चीन की प्रशंसा करो।
भारत ने चीन से कम समय में दो-दो वैक्सीन बना लीं

चीन तमाम संसाधन और वायरस के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी होने के बावजूद एक कायदे की वैक्सीन नहीं बना पाया। भारत ने उससे कम समय में दो-दो वैक्सीन बना लीं। एक अपनी और एक अंतरराष्ट्रीय मदद से। वैक्सीन आई तो कहा कि यह भाजपाई वैक्सीन है। लोगों के मन में संदेह पैदा कर दिया। नतीजतन टीकाकरण का अभियान धीमा हो गया। इसके लिए भी सरकार को जिम्मेदार ठहरा दिया गया।
टीकाकरण पर राजनीति

टीकाकरण शुरू होते ही हल्ला मचाया कि सबको वैक्सीन दो। मकसद सबको सुरक्षित करना बिल्कुल नहीं था। सबको मालूम है कि वैक्सीन उत्पादन में समय लगेगा। ये लोग चाहते थे कि सरकार पर दबाव बनाओ कि सबके लिए एक साथ टीकाकरण हो। टीकाकरण केंद्रों पर अफरातफरी मचे। अब जब सरकार 18 साल से ऊपर वालों के लिए एक मई से टीकाकरण शुरू कर रही है तो कांग्रेस शासित और कुछ अन्य राज्य कह रहे हैं कि हम तो नहीं शुरू कर पाएंगे। क्यों? क्योंकि वैक्सीन कंपनी कह रही है कि 15 मई से पहले टीका नहीं दे पाएंगे। केंद्र और दूसरे राज्यों ने पहले ऑर्डर दिया, ये अब जागे हैं।
टीकाकरण के खिलाफ अभियान का मकसद लोगों के मन में डर पैदा करना

टीकाकरण के खिलाफ यह जो अभियान चल रहा है, उसका मकसद जो संक्रमित नहीं हैं, उनके मन में डर पैदा करना है। यह अभियान चलाने वालों को अपने आत्मसम्मान की चिंता तो नहीं ही है। उन्हें देश और समाज के आत्मसम्मान की भी चिंता नहीं है। ऐसे लोग इस दंभ में जीते हैं कि सिर्फ वे ही सब समझते हैं। हरिशंकर परसाई कहते हैं कि यह अहसास आदमी को नासमझ बना देता है। अब ये नासमझ हैं या नासमझी की ओट में एजेंडा चलाने वाले, आप ही तय कीजिए।
Next Story