सम्पादकीय

सियासत के आत्मघाती दृश्य

Rani Sahu
3 May 2022 7:10 PM GMT
सियासत के आत्मघाती दृश्य
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हिमाचल कांग्रेस कार्यकारिणी का सफेदपोश चेहरा सामने है

हिमाचल कांग्रेस कार्यकारिणी का सफेदपोश चेहरा सामने है, तो मेहनत, मकसद व मंजिल के सफर पर मनोबल का प्रदर्शन भी शुरू होने जा रहा है। ऊना के प्रवेश द्वार पर लगातार जश्र को लांघते कुछ नेता और तोरण द्वारों पर मंगलगीत समारोहों का जोश मुखातिब है। यह दीगर है कि शिमला में सम्मान समारोह की ताकत का अंदाजा लगाया जा रहा है और पार्टी को भीतरी तहों में फंसे मलाल का भी अंदेशा हो रहा है। जाहिर तौर पर हिमाचल का राजनीतिक सूचकांक कई पहलुओं पर गौर कर रहा है और इनमें 'आप की करवटों के नक्श और नैन पहचानने की कोशिश में भाजपा और कांग्रेस के नेता खुद को भरोसा नहीं दिला पा रहे हैं। राजनीति को आगे बढऩा है, लेकिन सियासी अनुशासन को नहीं, इसलिए बिना किसी सांगठनिक परंपरा, विचारधारा या कार्यक्रम के मोर्चे पर आई आम आदमी पार्टी के छक्कू में हिमाचल की राजनीति अपने छल छनने और छंटाई के बाद सामने आने लगी है। प्रदेश में तीन परिदृश्य एक साथ चल रहे हैं।

'आप का परिदृश्य पूरे राजनीतिक भेद को उच्चारित कर रहा है, तो भाजपा के परिदृश्य में सत्ता वापसी का तापमान बढ़ रहा है। रही कांग्रेस तो इसके कई परिदृश्य बन रहे हैं। कार्यकारिणी के गठन की सबसे पहले शहनाइयां बजीं, तो अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के साथ कुनबा हो लिया, लेकिन दूसरे ही पल नेता प्रतिपक्ष का संसार ऐसे जागा कि एक साथ मुकेश अग्रिहोत्री, सुखविंद्र सुक्खू व राजिंद्र राणा की ताजपोशी की ताकत समझ आने लगी। कांग्रेस की पगड़ी के ऊपर कई तुर्रे हैं, तो कशमकश कहीं, तुर्रम खां बनने की भी तो रहेगी। खैर कांग्रेस के भीतर अभी भी कुछ उदास कोनों का परिदृश्य है और यह आत्मघाती हो सकता है। इस परिदृश्य में वे नेता हैं, जो अतीत की सुर्खियों, आज के दुर्योग और भविष्य की आशंका से डर रहे हैं। ये वही नेता हैं जिनके एक हाथ में 'आप और दूसरे में भाजपा का निमंत्रण पत्र है। ऐसे में कांग्रेस को अपने तीसरे परिदृश्य के असमंजस को मिटाने के लिए एड़ी-चोटी का प्रयास करना पड़ेगा, वरना प्रमुख मीडिया और सोशल मीडिया पहले ही ऐसी परिस्थितियों में फंसे कांग्रेसी नेताओं की अशांति के चित्रण में खुफियागिरी कर चुका है। भाजपा के आंगन में जो अंगूर लगे हैं, वे खट्टे होते हुए भी अच्छे लगते हैं और हालिया चुनावों में कांग्रेस का इतिहास इसी वजह से अपने नेताओं, जीत के समीकरणों और नागरिक विश्वास को खोता हुआ दिखाई दिया है। चार राज्यों को जीतकर लौटी भाजपा के इंद्रजाल में इतना करिश्मा तो है कि कांग्रेस को कुछ नेताओं के गुम होने की खबर आ सकती है। खतरा भी यही है कि अगर पहाड़ की कुछ टोलें (बड़े पत्थर) खिसक गए, तो संभावनाओं की पहाडिय़ां धीरे-धीरे धड़ाम हो सकती हैं।
आश्चर्य यह कि सरकार विरोधी लहरों पर सवार होकर भाजपा को घेरने के बजाय कुछ कांगेसी नेताओं ने हाल ही में भाजपा की जीवन घुट्टी पीने की कोशिश की है। नेताओं का स्वार्थ सत्ता है, लेकिन सत्ता इस बार डरा रही है। इस बार न तो सीधा अंकगणित होगा और न ही नेताओं के इर्द-गिर्द पुराने समीकरण बचेंगे। अगर कुछ कांगे्रसी नेता भाजपा की 'जीवन घुट्टी पर आश्रित होना चाहते हंै, तो वह भविष्य के पिंजरे में खुद को सीमित कर लेंगे और जनता की नजरों में भी गिर जाएंगे। चुनाव की परीक्षा में भले ही भाजपा का ग्रॉफ और चुनावी संसाधन ऊंचे हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी का आगमन 'नेताओं से उनका अहंकार, परिवारवाद, जातिवाद व एकाधिकार छीन सकता है। राजनीति में ताजगी भरने के लिए 'आप के मुकाबले भाजपा और कांगे्रस की विनेबिलिटी पर कई प्रश्र उभरेंगे। इस संदर्भ में भाजपा अपने प्रत्याशी बदलकर या कांग्रेसी नेताओं को छीनकर भरपाई कर सकती है, लेकिन कांग्रेस की रणनीति फिलहाल अस्पष्ट है। हो सकता है अगले कुछ दिनों में कांग्रेस का कुनबा अपने खोए हुए विश्वास को वापस एकजुटता की राह पर ला सके और मुद्दों की बारात लेकर 'आप और भाजपा को सुरक्षात्मक कर दे, लेकिन इससे पहले दूसरी पार्टियों के द्वार पर खड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं को सीने से लगाना होगा। किसी भी सियासी परिकल्पना को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि हिमाचल भी शेष देश की तरह चलेगा, यहां बदलते राजनीतिक परिदृश्य में आम मतदाता और सशक्त होने का परिचय देना चाहेगा।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली

Rani Sahu

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