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- राजनीति : हिंदूवादी बन...
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अपने कार्यों के जरिये प्रदर्शित करना होगा, न कि केवल शब्दों के साथ।
पिछले हफ्ते मैं गोवा की चुनाव पूर्व राजनीतिक स्थिति जानने के लिए वहां गया था। वहां मेरी प्रख्यात बुद्धिजीवियों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के समूह से बातचीत हुई। इस विषय पर बात करते हुए कि पूरे भारत में कांग्रेस को कैसे पुनर्जीवित किया जाए, ताकि वह 2024 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सत्ता से बेदखल करने के लिए भाजपा विरोधी गठबंधन का मजबूत सहारा बन सके, मैंने कहा कि 'कांग्रेस को हिंदू समाज का दिल और दिमाग जीतने की जरूरत है, जो कि भारतीय समाज में बहुसंख्यक है।
उसे हिंदू विरोधी और मुस्लिम समर्थक पार्टी होने की अपनी छवि का मुकाबला करने और उसे खत्म करने की जरूरत है। भाजपा और बाकी संघ परिवार के प्रचार तंत्र द्वारा बनाई गई इस छवि ने कांग्रेस को बुरी तरह आहत किया है।' ऐसा भारत के हजारों लोगों का मानना है, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो वर्षों से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं के बीच इस पर फिर से विचार करने के बहुत से अच्छे कारण मौजूद हैं। वर्ष 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से संघ परिवार ने व्यवस्थित ढंग से और सफलतापूर्वक धर्मनिरपेक्षता को एक हिंदू विरोधी अवधारणा के रूप में ब्रांडेड किया है, जो कांग्रेस पार्टी की मूल धारणा है।
वह भारतीय संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता (समाजवाद के साथ) को हटाना चाहता है। इसके अलावा, इसका प्रचार तंत्र चालाकी से हिंदुत्व की अपनी विचारधारा को भारतीय राष्ट्रवाद से जोड़ देता है, जो राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए हिंदू धर्म का घोर दुरुपयोग है। जो भी इसके हिंदुत्व का विरोध करता है, उसे भारत विरोधी के रूप में पेश किया जाता है और इसलिए राष्ट्र विरोधी भी। दुख की बात है कि हिंदू समुदाय का एक बड़ा और मुखर तबका इस दुष्प्रचार का शिकार हो गया है। यह वर्ष 2014 और 2019 में कांग्रेस की हार का एक प्रमुख कारण है।
कांग्रेस नेतृत्व ने आखिरकार कुछ आत्म-सुधारात्मक कदम उठाए हैं। विगत 12 दिसंबर को जयपुर में एक रैली में पार्टी के पूर्व (और संभवत: भावी) अध्यक्ष राहुल गांधी के एक महत्वपूर्ण भाषण से यह स्पष्ट होता है। हिंदुओं और हिंदुत्ववादियों के बीच अंतर बताते हुए उन्होंने कहा कि वह एक हिंदू हैं, जो हिंदुत्व का विरोध करते हैं। उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि एक सच्चा हिंदू दूसरे सभी धर्मों का सम्मान करता है, जबकि हिंदुत्व अपने अनुयायियों को नफरत करना सिखाता है और दूसरों के प्रति हिंसक बनाता है।
सच्चा हिंदू 'सत्याग्रह' में विश्वास करता है, जबकि हिंदुत्ववादी 'सत्ताग्रह' में विश्वास करता है। 'भारत में आज जो हिंदुत्व-वादी राज है, वह हिंदुओं का राज नहीं है। हमें हिंदुत्व-वादी राज को हटाना है, और हिंदुओं का राज स्थापित करना है।' राहुल के बयान निश्चित रूप से हिंदू धर्म और धर्मनिरपेक्षता के विषय पर कांग्रेस पार्टी के रुख पर राष्ट्रीय विमर्श को बदल देंगे। दरअसल, कांग्रेस को अपने विरोधियों के दुष्प्रचार का खंडन करने में इतनी देर नहीं लगानी चाहिए थी।
कांग्रेस कार्य समिति ने 16 जनवरी, 1999 को अपनी बैठक में सर्वसम्मति से यह कहते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था कि 'हिंदू धर्म भारत में धर्मनिरपेक्षता का सबसे प्रभावी गारंटर है।' सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के एक साल के भीतर यह ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया गया था। दुखद है कि अब इसे कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा भी भुला दिया गया है। वर्ष 1999 में सीडब्ल्यूसी द्वारा पारित प्रस्ताव पर कांग्रेस के प्रमुख प्रवक्ता विट्ठलराव गाडगिल का प्रभाव था।
जैसा कि रशीद किदवई की पुस्तक 24, अकबर रोड में उद्धृत किया गया है, एक बार उन्होंने कहा था कि 'मुसलमानों का वोट शेयर मात्र 18 फीसदी है। अगर वे सभी कांग्रेस को वोट दे दें, तो भी कांग्रेस सत्ता में नही आएगी। हम बाकी 82 फीसदी मतदाताओं की भावनाओं की अनदेखी नहीं कर सकते।' अच्छा होगा कि आज के कांग्रेसी नेता गाडगिल की बातों पर ध्यान दें। पार्टी के हिंदू जनाधार के लगातार क्षरण का एक प्रमुख कारण भाजपा नेताओं द्वारा यह दुष्प्रचार था कि कांग्रेस 'मुस्लिम तुष्टिकरण' की राजनीति में लिप्त थी और हिंदू भावनाओं की अनदेखी करके मुसलमानों को 'वोट बैंक' मान रही थी।
यह प्रचार केवल आंशिक रूप से ही सच था। लेकिन यह विशेष रूप से 1980 के दशक के उत्तरार्ध के बाद प्रभावी हो गया, जिसने भारतीय राजनीति पर एक निर्णायक प्रभाव डाला। देर से ही सही, कांग्रेस ने हिंदू मानस पर फिर से दावा करने का फैसला किया है। हालांकि हिंदू मानस में फिर से केंद्रीय स्थान हासिल करने के लिए कांग्रेस को और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सबसे पहले, उसे लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि उसका हिंदू-समर्थक झुकाव भाजपा द्वारा राजनीति के हिंदूकरण की प्रतिक्रिया या उसकी नकल नहीं है, बल्कि, उसके वैचारिक मंथन की वास्तविक अभिव्यक्ति है। दूसरा, उसे जोर देकर कहना चाहिए कि सर्वधर्म समभाव केवल हिंदुओं की जिम्मेदारी नहीं हो सकती।
धर्मनिरपेक्षता, सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता की रक्षा मुसलमानों और ईसाइयों का भी समान कर्तव्य है। हालांकि, हिंदुओं का मन जीतने के प्रयास में कांग्रेस को मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की वैध आकांक्षाओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। तीसरा, कांग्रेस को हिंदूवाद में सुधार का समर्थन करना चाहिए, ताकि समानता, सामाजिक न्याय तथा महिला सशक्तीकरण के सिद्धांतों को स्थापित किया जा सके, जो ओबीसी, एससी, एसटी और महिलाओं को गरिमा प्रदान करने के लिए बहुत जरूरी हैं।
चौथा, कांग्रेस को विकास के समाजवादी मार्ग में अपने विश्वास पर जोर देना चाहिए, जो आज के भारत में आर्थिक असमानताओं को कम करने और सभी समुदायों में गरीबी और अन्याय को दूर करने के लिए अनिवार्य है। इसके लिए उसे हिंदू धर्म के भीतर समाजवादी आदर्शों को उजागर करना चाहिए, जो स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी की शिक्षाओं में है। कुल मिलाकर, कांग्रेस को हिंदू धर्म की सर्वोत्तम परंपराओं में अपनी वैचारिक जड़ों को फिर से खोजना होगा, उन्हें प्रतिबद्धता, आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत के साथ पुनर्जीवित करना होगा, और अपने कार्यों के जरिये प्रदर्शित करना होगा, न कि केवल शब्दों के साथ।
Neha Dani
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