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इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि मुम्बई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह ने बहुत दूर की कौड़ी फैंकते हुए महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ तीन
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि मुम्बई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह ने बहुत दूर की कौड़ी फैंकते हुए महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ तीन दलों (कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस-शिवसेना) की सांझा सरकार में फूट डालने की मंशा से राष्ट्रवादी कांग्रेस के कोटे के गृहमन्त्री श्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाये थे उनकी विश्वसनीयता पर आसानी से यकीन नहीं किया जा सकता था क्योंकि ये आरोप तब लगाये गये जब श्री परमबीर सिंह को उनके पद से हटा कर होमगार्ड्स का महानिदेशक बना दिया गया। वैसे यह भी अजूबा है कि कोई पुलिस कमिश्नर किसी सहायक इंस्पैक्टर को इतनी छूट दे कि वह सीधे गृहमन्त्री से मिल कर उनके निर्देश ले।
विभागीय शिष्टाचार कहता है कि गृहमन्त्री अपने निर्देश केवल अपने विभाग के आला अफसरों को ही देते हैं। उसके बाद अफसरों का काम होता है कि वे प्राप्त निर्देशों का पालन अपने मातहतों से करायें। इसका मतलब यह भी निकलता है कि श्री परमबीर सिंह इतने लाचार पुलिस कमिश्नर थे कि वह अपने ही सब इंस्पैक्टर की कार्रवाइयों पर कोई नियन्त्रण नहीं कर सकते थे और उसकी सीधे गृहमन्त्री तक की पहुंच से प्रभावित थे। हालांकि परमबीर सिंह ने मुख्यमन्त्री उद्धव ठाकरे को लिखे खत में गृहमन्त्री श्री अनिल देशमुख पर जो गंभीर आरोप लगाये हैं उनकी सीबीआई जांच के लिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में भी याचिका दाखिल की है मगर यह पूरे मामले को राजनीति में और उलझाने की भी एक कड़ी हो सकती है क्योंकि जिस सहायक सब इंस्पैक्टर सचिन वझे से श्री देशमुख ने 100 करोड़ रुपए प्रतिमाह उगाहने की कथित रूप से बात कही वह स्वयं बहुत गंभीर आरोपों के चलते पुलिस सेवा से मुअत्तिल हो चुका है और उसका पिछला रिकार्ड बुरी तरह दागदार रहा है। वह मुख्यमन्त्री की पार्टी शिवसेना का कार्यकर्ता भी रहा है और पुलिस सेवा से इससे पूर्व 16 वर्ष तक मुअत्तिल भी रहा है।
शरद पंवार ने जिस तरह से दांव खेला है वह सियासत से लम्बरेज और सारे कांड में शुरू से आखिर तक सियासत का ही बोलबाला है। पूरा मामला किसी जासूसी उपन्यास की पटकथा जैसा लगता है जिसमें षड्यन्त्र के ऊपर षड्यन्त्र का वार होता रहता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस के सर्वेसर्वा शरद पंवार ने इस पेंच को पकड़ा है और साफ किया है कि परमबीर सिंह ने अपने आरोपों में जो यह कथा कही है कि देशमुख से सचिन वझे ने फरवरी महीने के मध्य में मुलाकात की, वह सत्य से परे हैं और फरवरी महीने के मध्य में इंस्पैक्टर सचिन वझे से उनकी मुलाकता का कोई तुक ही नहीं बैठता है क्योंकि 5 से 15 फरवरी तक देशमुख नागपुर के एक अस्पताल में कोरोना का इलाज करा रहे थे और इसके बाद दस दिनों तक अपने घर में एकान्तवास में थे। दूसरी तरफ यह हकीकत है कि उद्योगपति मुकेश अम्बानी के मुम्बई निवास में बम षड्यन्त्र के मामले में सचिन वझे को ही गिरफ्तार किया गया। उसे एनआईए ने गिरफ्तार किया क्योंकि इस कांड की जांच का काम केन्द्र सरकार ने एनआईए को सौंप दिया था जबकि पहले जांच का कार्य मुम्बई पुलिस ही कर रही थी और स्वयं इंस्पैक्टर सचिन वझे जांच दल के मुखिया के तौर पर काम कर रहा था। स्वयं में यह भी कम विस्मयकारी नहीं है कि जांच करने वाला व्यक्ति ही मुख्य संदिग्ध निकला। अभी सवाल इस मामले में चल रही राजनीति का उठता है।
महाराष्ट्र में भाजपा मुख्य विपक्षी दल है और यह गृहमन्त्री अनिल देशमुख के इस्तीफे की मांग कर रहा है। 24 मार्च को भाजपा का प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल होशियार सिंह कोशियारी से इस बाबत मुलाकात करने भी जा रहा है। जाहिर तौर पर भाजपा अपना विपक्षी धर्म निभा रही है। पूरे मामले में अभी तक मुख्यमन्त्री श्री उद्धव ठाकरे ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है जबकि संसद के चालू सत्र में इस विषय पर सोमवार को खासा हंगामा भी हुआ। इसका मतलब यह निकलता है कि शिवसेना फिलहाल बहुत सुरक्षित चालें चल रही है क्योंकि उसके जुबान खोलते ही बात शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच आमने-सामने की हो सकती है। इसी वजह से इस विवाद को सुलझाने की कमान वरिष्ठतम नेता शरद पंवार ने संभाल ली है और वह खुल कर अनिल देशमुख का बचाव तथ्यों के साथ कर रहे हैं। देखना केवल यह है कि महाराष्ट्र में तीनों दलों की मिलीजुली सरकार किस प्रकार से एक-दूसरे दल पर भरोसा रखते हुए आगे बढ़ती है और खुद को विपक्ष के हमले से बचाती है परन्तु मुख्य आरोप लगाने वाले परमबीर सिंह को इस बात का जवाब जरूर देना होगा कि अम्बानी निवास बम षड्यन्त्र को सुलझाने में उनकी क्या भूमिका रही और किस वजह से इसकी जांच का काम शुरू में उन्होंने पुलिस इंस्पैक्टर सचिन वझे को सौंपा था? क्या इस मामले में एनआईए परमबीर सिंह से भी पूछताछ करने का मन बना रही है क्योंकि अम्बानी निवास बम षड्यन्त्र में पेंच पर पेंच अभी भी खुल रहे हैं। परमबीर सिंह का सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जाना भी यही इंगित करता है कि कुछ तो 'पर्दादारी' है। कुछ भी हो मुम्बई देश की वाणिज्यिक राजधानी है।
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