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हिमाचल में चुनाव की परिभाषा बदलने के संकल्प में आगे बढ़ती हुई कांग्रेस पार्टी ने तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली आपूर्ति का दांव खेल दिया है
By: divyahimachal
हिमाचल में चुनाव की परिभाषा बदलने के संकल्प में आगे बढ़ती हुई कांग्रेस पार्टी ने तीन सौ यूनिट मुफ्त बिजली आपूर्ति का दांव खेल दिया है। इससे पूर्व वर्तमान भाजपा सरकार भी मुफ्त का मुर्ग-मुसल्लम चढ़ा कर बिजली के यूनिट कुर्बान चढ़ा चुकी है। दिल्ली से आया राजनीति का ऐसा आयातित सोच कहां तक चुनावी खेल बना या बिगाड़ सकता है, लेकिन यह तय है कि ऐसी बेहूदा घोषणाओं से राज्य की आत्मनिर्भरता के संकल्प अब कचरा हो जाएंगे। आश्चर्य यह कि अभी तो जनता ने मुफ्त की फरमाइशें शुरू भी नहीं कीं और जब यह बदरंग स्थिति चुनाव का पहलू बनेगी तो हर वोट पर आखिर कितनी चांदी चढ़ाओगे। मुफ्त की मांग अगर प्रचलन में आ गई, तो राज्य के चलने के अहम तत्त्व या तो आर्थिकी को बर्बाद कर देंगे या कर्ज बोझ में दब कर भी जय-पराजेय के भेद में सरकारें संसाधनों की नीलामी करेंगी। हिमाचल में आयातित राजनीति के कई आयाम पहले से स्थापित हो चुके हैं। मुख्यमंत्रियों ने खुद को कद्दावर दिखाने की होड़ में कई अनावश्यक शिक्षा-चिकित्सा संस्थान, कार्यालय, विभागीय विस्तार तथा जनता के लिए लाभकारी कार्यक्रमों की अतार्किक सहमति निरंतर बांटी है। इतना ही नहीं, राजनीति की धुरी और ध्रुवीकरण बदलने के लिए कुछ नेता निजी वोट बैंकों का संगठन बना चुके हैं और इसे बढ़ाते हुए हिमाचल के तथाकथित हितैषी बाहर से कमाई अकूत धनसंपदा के साथ 'लक्ष्मण की खड़ाऊं' पहन कर लौट आए हैं। यानी पांच साल तक सामाजिक देवता बनकर इतना इंतजाम कर लो कि यही टुकड़े, वोट में तबदील हो जाएंगे।
विनेविलीटी का यह फैक्टर कहीं अधिक खतरनाक इसलिए भी है, क्योंकि आगे चलकर यह हिमाचल का सियासी चरित्र बदल देगा। कुछ अरसा पहले प्रो. प्रेम कुमार धूमल के पदार्पण तक भी आलोच्य दृष्टि उन्हें पंजाब से जोड़ कर देखती थी, लेकिन अब तो मामला किसी एक विधानसभा क्षेत्र की सरेआम सौदागिरी का हो चला है। निर्दलीय उम्मीदवारों के सामाजिक अवतरण की सबसे बड़ी कार्यशाला सुजानपुर में पैदा हुई, तो राजिंद्र राणा के राजनीतिक करियर का उद्गम सारे रास्ते खोलते दिखाई दिया और अंतत: भाजपा के घोषित मुख्यमंत्री को दरकिनार करके लोगों ने सारे पैमाने बदल दिए। जाहिर है वोट प्रबंधन की कला में पारंपरिक समीकरण अब गच्चा खा रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में जोगिंद्रनगर व देहरा विधानसभा क्षेत्रों में निर्दलीय विधायकों को मिला प्रवेश, पुन: चांदी के सिक्कों की ऐसी कहानी है जहां मतदान की खनक पहचानी जा सकती है। आज यह दोनों विधायक भाजपा के हो गए, तो इस कारवां के निशान पूरी परंपरा को बदलेंगे यानी हिमाचल में वोट की खरीद का सामाजिक दायित्व देखा जा रहा है। वर्तमान दौर में भी टिकट पाने की धूल से दूर समाजसेवियों की धूम से अगर कुछ वर्तमान ओहदेदार चिंतित हैं, तो यहां राजनीति चांदी के वकऱ् पर लिखी जा रही है। बहरहाल हिमाचल जैसे शिक्षित समाज के सोच पर भी सियासी प्रश्रचिन्ह उभर रहा है। हम कायदे से सत्ता के कोरे कागजों पर हस्ताक्षर करते हुए ऐसे जनप्रतिनिधि पैदा कर रहे हैं, जो हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक तरक्की का एहसास नहीं है। नगर निगम चुनावों में ही देख लें कि हमने मेयर जैसे पद को म्यूजिकल चेयर बना कर खोखली राजनीतिक तासीर चुन ली। पंचायत से नगर निकायों की बिसात तक हम, यानी हिमाचली सिर्फ चांदी के वकऱ् पर लाभ लिखवाना चाह रहे हैं, तो यह पतन का रास्ता है जो आज 63 हजार करोड़ के ऋण में गुम है और आइंदा और गहन अंधेरा तय है।
Rani Sahu
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