सम्पादकीय

पंजाब में रेल पटरियों पर राजनीति: कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों का रेल पटरियों पर कब्जा

Gulabi
8 Nov 2020 2:10 PM GMT
पंजाब में रेल पटरियों पर राजनीति: कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों का रेल पटरियों पर कब्जा
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किसानों को उकसाकर रेल पटरियों पर बैठाने वाली पंजाब सरकार रेलवे से सवाल कर रही है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भला इससे हास्यास्पद और क्या हो सकता है कि किसानों को उकसाकर रेल पटरियों पर बैठाने वाली पंजाब सरकार रेलवे से सवाल कर रही है कि उसके यहां यात्री ट्रेनें और मालगाड़ियां क्यों नहीं चल रही हैं? वह केवल यह विचित्र सवाल ही नहीं पूछ रही, बल्कि यह भी कह रही है कि हम यात्री ट्रेनों को सुरक्षा देने की स्थिति में नहीं हैं। इसी आधार पर वह रेलवे से मालगाड़ियां चलाने का आग्रह कर रही है। क्या इसका यही मतलब नहीं कि पंजाब सरकार जानबूझकर ऐसी स्थिति बनाए रखना चाहती है, जिससे राज्य में यात्री ट्रेनें न चल सकें? यह समझ से परे है कि पंजाब सरकार मालगाड़ियां चलाने लायक तो स्थितियां पैदा कर सकती है, लेकिन ऐसी नहीं कि उनके साथ यात्री ट्रेनें भी चल सकें।

क्या वह यह कहना चाहती है कि मालगाड़ियों वाले रेलमार्ग अलग हैं और यात्री ट्रेनों वाले अलग? यदि नहीं तो क्या वह किसानों को केवल मालगाड़ियां जाने देने के लिए राजी कर सकती है, लेकिन इसके लिए नहीं मना सकती कि वे यात्री ट्रेनों को भी चलने दें? क्या इसका सीधा अर्थ यह नहीं कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत पंजाब के किसान संगठन उसके ही इशारे पर रेल पटरियों पर बैठे हुए हैं?

पंजाब में जनविरोधी राजनीति का जैसा उदाहरण पेश किया जा रहा है, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। पंजाब सरकार एक ओर यह शिकायत कर रही है कि मालगाड़ियां न चलने से कोयले की आपूर्ति बाधित है और उसके चलते बिजली संयंत्रों के बंद होने की नौबत आ गई है और दूसरी ओर किसानों को रेल पटरियों से हटाने में तत्परता दिखाने के लिए तैयार नहीं। इससे खराब बात और कोई नहीं कि संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए कोई राज्य सरकार ही रेल मार्ग बाधित कराकर अपने लोगों को तंग करने का काम करे। यह सस्ती राजनीति का एक और उदाहरण है। यह उदाहरण तब पेश किया जा रहा है, जब सुप्रीम कोर्ट बार-बार कह चुका है कि धरना-प्रदर्शन के नाम पर रेल अथवा सड़क मार्ग बाधित करना गैर कानूनी और जनता के साथ अन्याय है।

अभी हाल में दिल्ली की नाक में दम करने वाले कुख्यात शाहीन बाग धरने को लेकर फैसला देते हुए भी उसने यही कहा था कि आंदोलन के नाम पर सार्वजनिक स्थलों पर काबिज नहीं हुआ जा सकता। पंजाब के विभिन्न किसान संगठन सितंबर से ही रेल पटरियों पर काबिज हैं? क्या राजनीतिक दलों के समर्थन के बगैर किसानों का रेल पटरियों पर बैठे रहना संभव है? सवाल यह भी है जिस राज्य के सबसे अधिक किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज बेचते हों, उन्हें गुमराह क्यों किया जा रहा है?

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