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- भ्रष्टाचार पर सियासत
Written by जनसत्ता: नेशनल हेराल्ड मामले में जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ हो रही थी, तब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उसे केंद्र के इशारे पर कार्रवाई करार देते हुए दिल्ली की सड़कों पर प्रदर्शन किया था। उसके चलते कई दिन तक दिल्ली पुलिस और उन रास्तों से गुजरने वालों को परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
अब वही तरीका आम आदमी पार्टी ने अख्तियार कर लिया। नई आबकारी नीति बनाने और शराब की दुकानों के लाइसेंस देने में अनियमितता के आरोप में जब केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआइ ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को पूछताछ के लिए तलब किया तो आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। उपराज्यपाल ने इस मामले में जांच के आदेश दिए, तभी से आम आदमी पार्टी के नेता इसे भाजपा की बदले की कार्रवाई बताते रहे हैं। वे दावा करते रहे हैं कि सीबीआइ के छापों में मनीष सिसोदिया के घर और उनके गांव में कुछ भी नहीं मिला। अब वह किन्हीं अपरिचित लोगों के यहां छापे मार कर उन्हें मनीष सिसोदिया के करीबी बता कर बेवजह परेशान करने की कोशिश कर रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री तो हर सार्वजनिक मंच से घोषणा करते रहे कि मनीष सिसोदिया को केंद्र सरकार गिरफ्तार करना चाहती है, वह गिरफ्तार कर ही लेगी। दो दिन पहले उन्होंने यहां तक कह दिया कि मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन आज के भगत सिंह हैं। वे शहादत को तैयार हैं। जब सीबीआइ ने मनीष सिसोदिया को पूछताछ का नोटिस भेजा तो उन्होंने ट्वीट करके कहा कि उन्हें सीबीआइ ने बुलाया है और वे उसके सवालों का जवाब देने जाएंगे। फिर सोमवार को वे बाकायदा 'रोड-शो' करते हुए राजघाट गए और गांधी समाधि पर शीश नवाने के बाद सीबीआइ कार्यालय गए।
उनके साथ कार्यकर्ताओं-समर्थकों का हुजूम भी गया। उन पर लगातार मीडिया की नजर बनी रही। दिन भर उनसे पूछताछ को लेकर खबरें चलती रहीं। यह कितना अजीब है कि कोई जनप्रतिनिधि अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप को इस तरह महिमामंडित करे। अगर वे सचमुच पाक-साफ हैं और सीबीआइ को उनके घर से कुछ नहीं मिला है, तो फिर डर किस बात का। उन्हें जनता के सामने खुद को साफ-सुथरा, ईमानदार साबित करने के बजाय सीबीआइ का सामना करने की कोशिश करनी चाहिए।
विपक्षी दलों के इस आरोप को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए कर रही है। मगर पहले की सरकारों पर भी यही आरोप लगते रहे हैं। यूपीए सरकार के समय तो सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआइ को पिंजरे का तोता तक कह दिया था। मगर इस तरह किसी को सड़क पर समांतर अदालत लगाने का अधिकार नहीं मिल जाता।
सीबीआइ को अपनी जांच में सिसोदिया से पूछताछ का आधार हाथ लगा होगा, तभी उसने नोटिस भेजा। हो सकता है, सीबीआइ का वह आधार गलत हो, मगर उसे साबित करने के लिए उसके सवालों का सामना तो करना पड़ेगा। आम आदमी पार्टी खुद दो राज्यों में सत्ता में है, उस पर भी विपक्षी दल इसी तरह के पक्षपातपूर्ण व्यवहार के आरोप लगाते हैं। लोकतंत्र में राजनीति करने का हक सबको है, मगर उसकी प्रक्रियाओं को अपने ढंग से तोड़-मरोड़ कर अपने पक्ष में करने का हक किसी को नहीं है।