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![कोरोना पर सियासत से देश को दिक्कत, आपदा के वक़्त भी राजनीतिक दलों में क्यों नहीं दिखता आपसी सामंजस्य कोरोना पर सियासत से देश को दिक्कत, आपदा के वक़्त भी राजनीतिक दलों में क्यों नहीं दिखता आपसी सामंजस्य](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/04/05/1005807-fee.webp)
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कोरोनावायरस (Coronavirus) को लेकर देश में अजब हाल है, सब को पता है कि
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोर्स-कार्तिकेय शर्मा। कोरोनावायरस (Coronavirus) को लेकर देश में अजब हाल है, सब को पता है कि कोरोना की दूसरी लहर कितनी प्रभावी है लेकिन फिर भी राज्य और केंद्र स्तर पर इसको लेकर ना केवल तालमेल ख़राब है, बल्कि इस युद्ध में सभी अलग-अलग लड़ते दिख रहे हैं, नाकि एकजुट होकर. इसका एक बड़ा कारण है और वो यह कि कोई भी दल ऐसा फैसला नहीं लेना चाहता जो जनता को नापसंद हो. यानि कड़े फैसले लेने में सबको हिचकिचाहट हो रही है. 2020 याद कीजिए, प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन लगाने का कड़ा फैसला लिया था. सभी विपक्षी दलों ने इसका स्वागत किया था. सभी का मानना था कि लॉकडाउन ज़रूरी है.
लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया पक्ष और विपक्ष अलग होने लगे. पहले विपक्ष ने कहा कि लॉकडाउन लगाने का फैसला राज्य सरकारों के पास होना चाहिए और दिल्ली से बैठ कर सभी फैसले नहीं लिए जा सकते हैं. दूसरा आरोप लगा की लॉकडाउन की आड़ में सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर दी है. ठीक इसके बीच में कामकाजी लोगों का पलायन दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों से हुआ. सरकार पर आख़री आरोप लगा की वो बड़े फैसले बिना किसी विचार विमर्श के करती है. नतीजा ये हुआ कि धीरे-धीरे सारे अधिकार राज्यों को दिए गए.
राजनीतिक सभाओं में नहीं रखा ज्यादा कोरोना नियमों का ध्यान
इस वक़्त देश में कोरोना की दूसरी बड़ी लहर चल रही है और अजीब बात है की सब इस पर मौन हैं. वैसे बीजेपी ने पलायन की राजनीति पर बिहार की जीत से रोक तो लगा दी, लेकिन कुछ मुद्दों पर खामोश हो गयी. जैसे सब बात करते हैं 2 गज की दूरी की लेकिन राजनीतिक सभाओं में कोई किसी की बात नहीं मनाता. नेता खुद मास्क नहीं लगा रहे हैं. मतदान केंद्र में तो दो गज की दूरी है. लेकिन रोड शो में एक इंच की दूरी नहीं दिखती है. शादियों में लोगों के आने पर पाबंदी है. यह भी तय किया जा चुका है कि श्मशान घाट में कितने लोग जाएं, लेकिन राजनीतिक बैठकों के लिए कोई भी रोक टोक नहीं है.
कोरोना के खिलाफ सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आना होगा
सबसे अजीब बात है कि जब देश पूरा एक था, तब पूरे यूरोप और अमेरिका में भी समन्वय नहीं था. लोग वैक्सीन तक नहीं लगा रहे थे. लॉकडाउन के खिलाफ धरना प्रदर्शन हो रहा था. लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. हालांकि यहां राजनीतिक दल विपदा के समय एक दूसरे के करीब नहीं आ सके. देश में एकता राष्ट्रीय खतरे के वक़्त बढ़ जाती है, सब दल अपने मतभेद छोड़ कर देश के लिए काम करते हैं लेकिन कोरोना के वक़्त भारत में ऐसा नहीं हो पाया है. यहां आपदा के वक़्त दलों में मतभेद हैं और विश्वास की बेहद कमी है. वक़्त के इस छोर पर सभी दलों को अपने मतभेद एक तरफ रख कर कोरोना को हराने के लिए काम करना चाहिए. यही सच्ची श्रद्धांजली होगी कोरोना योद्धाओं को.
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