सम्पादकीय

हिंसा की राजनीति

Gulabi
11 Dec 2020 2:12 PM GMT
हिंसा की राजनीति
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पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा और खासतौर पर चुनावों के पहले या उसके दौरान इस तरह की घटनाएं कोई नई बात नहीं है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा और खासतौर पर चुनावों के पहले या उसके दौरान इस तरह की घटनाएं कोई नई बात नहीं है। लेकिन विडंबना है कि ऐसा लगातार चलते रहने और इस पर तीखे सवाल उठने के बावजूद वहां न तो सरकार की ओर से ऐसी ठोस कार्रवाई होती है, न राजनीतिक दलों को अपने कार्यकर्ताओं को ऐसा प्रशिक्षण देना जरूरी लगता है ताकि राजनीतिक गतिविधियों या चुनाव-प्रक्रिया के दौरान लोकतंत्र अपने मुकम्मल रूप में दिखाई पड़े।



आमतौर पर यही होता है कि जिस पार्टी का जिस इलाके में वर्चस्व होता है, उसमें किसी दूसरी पार्टी के नेता चुनाव प्रचार करने आते हैं तो वहां उन्हें कई बार हिंसक हमले का भी सामना कर पड़ता है। फिलहाल वहां अगले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सभी मुख्य पार्टियों ने अनौपचारिक तौर पर जनता के बीच समर्थन जुटाने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है। इस क्रम में गुरुवार को राज्य के दौरे के दूसरे दिन भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा डायमंड हार्बर इलाके में जा रहे थे, जहां रास्ते में कुछ लोगों ने उनके काफिले को काला झंडा दिखाने और रोकने की कोशिश की और पत्थरबाजी भी की। भाजपा ने इस हमले के लिए तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओंं पर आरोप लगाया है। गनीमत है कि सुरक्षा एजेंसियों ने नेताओं को सुरक्षित बाहर निकाल लिया।

अब इस घटना के बाद स्वाभाविक रूप से आरोप-प्रत्यारोप सामने आ रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस ने इन आरोपों को झूठा बताया है। पुलिस की ओर से इस मामले की जांच कराने की बात कही गई है। लेकिन सवाल है कि इस तरह की हिंसा की आशंकाओं के बावजूद पुलिस महकमा नेताओं की रैलियों के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के मोर्चे पर क्या करता रहता है? अगर पुलिस की मौजूदगी के बावजूद कुछ लोग पत्थरबाजी कर देते हैं या किसी अन्य तरीके से हिंसा करने की कोशिश करते हैं।

तो क्या इसका मतलब यह है कि अराजक तत्त्वों को काबू में रखना उसके वश में नहीं रह गया है? भाजपा की ओर से यह आरोप लगाया गया है कि उनके नेता के दौरे के कार्यक्रम के पूर्व घोषित होने के बावजूद पुलिस ने उनकी सुरक्षा-व्यवस्था के मामले में ढिलाई बरती। हैरानी की बात यह भी है कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को जेड स्तर की सुरक्षा व्यवस्था हासिल है और इसे सबसे उच्चतम सुरक्षा दीवार के रूप में देखा जाता है। इसके बावजूद अगर कुछ लोग भाजपा अध्यक्ष के वाहन पर पत्थरबाजी करने में सफल हो गए तो निश्चित रूप से इसे सुरक्षा व्यवस्था में एक बड़ी चूक के रूप में देखा जाना चाहिए।

यह किसी से छिपा नहीं है कि पश्चिम बंगाल में पंचायत या स्थानीय इकाइयों से लेकर विधानसभा या फिर लोकसभा चुनावों के दौरान हिंसा एक प्रत्यक्ष चरित्र के रूप में मौजूद रहा है। पिछले चार-पांच दशक इस बात के गवाह रहे हैं कि अलग-अलग पार्टियों के समर्थक अपने प्रभाव क्षेत्र में दूसरी पार्टियों के समर्थकों और नेताओं का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने के बजाय अक्सर हिंसा पर उतारू होते रहे हैं।

ताजा घटना में भाजपा के नेताओं पर हमला होने की खबर आई है, तो यह सिर्फ इस तरह के वाकयों की एक कड़ी भर है। सरकार को इस बात की भी फिक्र नहीं लगती है कि अगर उसके शासन के दौरान हिंसा और हमले ऐसी प्रवृत्ति खुल कर सामने आती है तो उसकी उपयोगिता और क्षमता को किस तरह आंका जाएगा! यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर यह प्रवृत्ति बनी रही तो समूची शासन पद्धति और राजनीतिक माहौल में लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर होगी और जाहिर है इसका खमियाजा सभी पार्टियों को भुगतना पड़ेगा।


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