सम्पादकीय

दुराग्रह की सियासत

Subhi
30 July 2022 5:45 AM GMT
दुराग्रह की सियासत
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तमिलनाडु में शतरंज ओलंपियाड में शामिल होने को लेकर पाकिस्तान ने जिस तरह की हरकत की है, उससे हैरान होने की जरूरत इसलिए नहीं है कि उसे ऐसा करने के लिए किसी तर्क की जरूरत महसूस नहीं होती है।

Written by जनसत्ता: तमिलनाडु में शतरंज ओलंपियाड में शामिल होने को लेकर पाकिस्तान ने जिस तरह की हरकत की है, उससे हैरान होने की जरूरत इसलिए नहीं है कि उसे ऐसा करने के लिए किसी तर्क की जरूरत महसूस नहीं होती है। चूंकि पाकिस्तान को अपने ऐसे ही दुराग्रहों से भरी प्रतिक्रियाएं देने की आदत रही है, इसलिए कभी वह अपनी फितरत के मुताबिक तो कई बार बहुत सोच-समझ कर ऐसा रुख अख्तियार कर लेता है, जिसमें सामान्य नैतिकताओं का खयाल रखना भी जरूरी नहीं समझा जाता।

दरअसल, तमिलनाडु के मामल्लापुरम में गुरुवार को शुरू हुए चौवालीसवें ओलंपियाड में इस बार ओपन वर्ग में एक सौ अठासी टीमें और महिला वर्ग में एक सौ बासठ टीमें हिस्सा ले रही हैं। इसमें पाकिस्तान की टीम भी शामिल थी और इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने भारत आ भी चुकी थी। लेकिन आखिरी वक्त में पाकिस्तान ने इस ओलंपियाड से हटने की घोषणा कर दी। ऐसे फैसले के लिए उसकी ओर से कथित शिकायत यह पेश की गई कि इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट का रिले मशाल कश्मीर से निकालने के बहाने भारत इस आयोजन का राजनीतिकरण कर रहा है।

सवाल है कि भारत शतरंज ओलंपियाड के रिले मशाल को अपने संप्रभु क्षेत्र के किसी भी हिस्से से गुजरने का रास्ता बनाता है, तो इससे किसी भी अन्य देश को क्यों दिक्कत होनी चाहिए। मगर बीते कई दशकों के अनुभव के बाद पाकिस्तान के संदर्भ में अब यह प्रश्न बेमानी-सा लगने लगा है। पाकिस्तान चूंकि भारत के प्रति आमतौर पर हर समय एक खास तरह के दुराग्रह से भरा रहता है, इसलिए बेवजह के किसी बहाने भी कोई विवाद खड़ा करना उसके स्वभाव में घुल गया है।

मगर इस क्रम में अब उसने यह खयाल रखना भी शायद छोड़ दिया है कि उसकी ऐसी हरकतों के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे कैसे देखा जाएगा। पाकिस्तान के शतरंज ओलंपियाड से हटने की घोषणा के बाद भारत ने तो लाजिमी तौर पर उसकी सख्त निंदा की और कहा कि वह बिना वजह के खेलों के आयोजन का राजनीतिकरण कर रहा है, मगर पाकिस्तान के फैसले के प्रति इस प्रतियोगिता में शामिल होने वाले अन्य देशों के भीतर कैसी राय बनी होगी, इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि पाकिस्तान को इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ की ओर से आमंत्रित किया गया था।

यह छिपा नहीं है कि पाकिस्तान की ओर से मौके-बेमौके अंतरराष्ट्रीय पटल पर कश्मीर का सवाल उठाने के बावजूद समूची दुनिया कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानती है। इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं है, क्योंकि यही तथ्य है। मगर यह समझना मुश्किल है कि इस हकीकत को पचाना पाकिस्तान के लिए मुश्किल क्यों रहा है। जबकि अपने इस रवैए की वजह से अक्सर उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फजीहत झेलनी पड़ती है। यों पड़ोसी देश होने के नाते भारत की हमेशा यही कोशिश रहती है कि पाकिस्तान किसी निराधार मुद्दे को लेकर परेशानी नहीं खड़ी करे। भारत अपनी ओर से उसकी विचित्र हरकतों की अनदेखी करता है।

मगर आतंकवादी संगठनों को प्रश्रय देने से लेकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नाहक किसी मुद्दे पर विवाद खड़ा कर वह भारत को असुविधा में डालने की कोशिश हमेशा करता रहता है। मुख्यधारा की राजनीतिक और रणनीतिक चुनौतियों के बरक्स खेलों की दुनिया को दो देशों या पक्षों के बीच संबंधों को बेहतर बनाने का भी जरिया माना जाता है। आपसी तनाव के बावजूद अलग-अलग खेलों में भारत और पाकिस्तान की टीमें हिस्सा लेती रही हैं। इससे रिश्तों में सहजता आ पाने की उम्मीद कायम रहती है। लेकिन अगर खेलों में हिस्सा लेने का भी राजनीतिकरण किया जाने लगे तो वैश्विक परिदृश्य में इसे कैसे देखा जाएगा?


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