सम्पादकीय

संसद में माफी की सियासत

Rani Sahu
1 Dec 2021 6:47 PM GMT
संसद में माफी की सियासत
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अब सियासत और टकराव का संदर्भ बदल गया है

अब सियासत और टकराव का संदर्भ बदल गया है। संसद के शीतकालीन सत्र के आगाज़ पर ही हमने मॉनसून सत्र के दौरान विपक्ष की हरकतों और हुड़दंग का विश्लेषण किया था। सत्ता और विपक्ष नियमों की अलग-अलग व्याख्याएं कर रहे हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू के कुछ अतिरिक्त विशेषाधिकार हैं, जिनके तहत उन्होंने विपक्ष के 12 सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित किया है। यह कोई अभूतपूर्व और अप्रत्याशित दंड नहीं है। 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लोकसभा स्पीकर से आग्रह कर विपक्ष के 64 सांसदों को निलंबित कराया था। कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान स्पीकर मीरा कुमार ने विपक्ष के 18 सांसदों को निलंबित किया था। मौजूदा मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल, 2014-19, में स्पीकर सुमित्रा महाजन ने विपक्ष के 45 सांसदों को निलंबित किया था। यह कोई परंपरा नहीं है, लेकिन हंगामे और गलत व्यवहार के मद्देनजर विशेष परिस्थितियों में दिया जाने वाला विशेष दंड है।

उच्च सदन राज्यसभा में एक साथ 12 विपक्षी सांसदों का निलंबन अभी तक की सबसे बड़ी दंडात्मक कार्रवाई है। सभापति ने मॉनसून सत्र के अंतिम दिन सदन में हुड़दंग मचाने के दुर्व्यवहार के मद्देनजर अब शीतकालीन सत्र में सजा सुनाते हुए कांग्रेस, तृणमूल, शिवसेना और वामदलों के 12 सांसदों को सदन से बाहर कर दिया है। सभापति ने निलंबन वापस नहीं लेने की भी घोषणा की है, लेकिन सदन के नेता एवं उद्योग-वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने, बीच का रास्ता निकालते हुए, विपक्ष से पेशकश की है कि यदि निलंबित सांसद राज्यसभा से ही नहीं, बल्कि देश से माफी मांग लेंगे, तो सरकार सभापति से अनुरोध कर सकती है कि सांसदों का निलंबन वापस ले लिया जाए। इस पर तपाक से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने सवाल किया-किस बात की माफी? क्या संसद में देश की जनता की आवाज़ उठाने की माफी मांगी जाए? राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी साफ कहा कि माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता। और इसी के साथ विपक्षी सांसदों ने सदन से बहिर्गमन कर अपना विरोध जताया। इसी के साथ दोनों पक्षों के बीच टकराव के आसार और भी पुख्ता हो गए हैं।
सवाल है कि अब क्या शीत सत्र की परिणति भी मॉनसूून सत्र जैसी होगी? अभी तो संसद सत्र के दो दिन ही बीते हैं। बेशक बिल तो सरकार और उसके समर्थक, सहयोगी दल आपस में ध्वनि मत से पारित करा लेंगे, लेकिन जिन मुद्दों पर व्यापक चर्चा की दरकार है और जो राष्ट्रीय महत्त्व के विषय हैं, उनका क्या होगा? यदि संसद में बहस नहीं होगी, तो क्या सड़कों पर विमर्श होगा, तो फिर संसद की कार्यवाही और संरचना पर अरबों रुपए क्यों फूंके जाएं? बीते मॉनसून सत्र पर करीब 2.16 अरब रुपए पानी में बहा दिए गए। क्या यह पैसा दान या भिक्षा में आया था? देश के करदाताओं का पैसा है यह। आज 2010 के शीतकालीन सत्र की याद भी ताज़ा हो रही है, जब यूपीए सरकार के दौरान 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर विपक्ष ने संसद बाधित की थी। तब लोकसभा में मात्र 6 फीसदी और राज्यसभा में सिर्फ 2 फीसदी ही काम हो पाया था। तब भी ऐसा हुड़दंग देखने को नहीं आया था। मॉनसून सत्र में राज्यसभा में महिला सांसदों ने ही महिला सुरक्षा कर्मियों के साथ जो शारीरिक और हिंसक बर्ताव किया था, फांसी के फंदे बनाकर दूसरे के गले में डालने की कोशिशें की गई थीं, कांग्रेस के सांसद अखिलेश प्रताप सिंह ने वीडियो बनाकर यू-ट्यूब पर डाल दिया था, सदन का शीशे वाला दरवाजा तोड़ दिया गया था और एलईडी तोड़ने की कोशिश की गई थी। यह उत्पात किसी राष्ट्रीय मुद्दे पर नहीं मचाया गया था। हमारा तो यह सुझाव है कि उस हुड़दंग के तमाम चित्र सार्वजनिक कर देश को दिखा दिए जाएं, ताकि सब कुछ स्पष्ट हो जाए कि हमारे जन-प्रतिनिधि संसद में किसलिए भेजे जाते हैं। यदि विवादास्पद कृषि कानूनों पर प्रधानमंत्री मोदी माफी मांग सकते हैं, तो संसद के भीतर उत्पात मचाने वाले सांसद क्यों नहीं?

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