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सम्पादकीय
मुफ्तखोरी की राजनीति, देशहित पर भारी न पड़ जाए ऐसी महत्वाकांक्षाएं
Gulabi Jagat
6 Sep 2022 4:29 PM GMT
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विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने जिस तरह यह घोषणा की कि 2024 में केंद्र में गैर-भाजपा सरकार बनने पर देश भर के किसानों को मुफ्त बिजली और पानी दिया जाएगा, वह इसलिए अप्रत्याशित है, क्योंकि अभी विपक्षी एकता का रूप-स्वरूप ही स्पष्ट नहीं। समझना कठिन है कि उन्होंने यह घोषणा किस अधिकार से की? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि अभी किसी विपक्षी दल ने ऐसा कुछ नहीं कहा है कि भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने और भावी सरकार की रीति-नीति तय करने की जिम्मेदारी केसीआर को सौंप दी गई है।
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि उन्होंने केंद्र में गैर भाजपा सरकार बनने की सूरत में किसानों को मुफ्त बिजली-पानी देने की घोषणा खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल करने के इरादे से की है। उनकी इस घोषणा से विपक्षी दलों के उन नेताओं का चकित होना स्वाभाविक है, जो अपने-अपने स्तर पर भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।
यह कोशिश करने वालों में नया नाम जुड़ा है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का। भाजपा से नाता तोड़कर महागठबंधन का साथ पकड़ने के बाद से नीतीश कुमार भले ही यह कह रहे हों कि उनमें न तो प्रधानमंत्री बनने की इच्छा है और न ही वह इस पद के दावेदार हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनके सहयोगी और समर्थक लगातार उन्हें इस पद के लिए सुयोग्य प्रत्याशी बता रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह मेक इंडिया नंबर वन अभियान का श्रीगणेश किया, वह भी यही इंगित कर रहा है कि वह पीएम पद के लिए अपनी दावेदारी आगे बढ़ा रहे हैं। भले ही पिछले कुछ दिनों से ममता बनर्जी विपक्षी एका को लेकर मुखर न हों, लेकिन यह एक तथ्य है कि वह भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश कर चुकी हैं।
इन सब नेताओं की सक्रियता के बीच प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेता न जाने कब से राहुल गांधी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने में लगे हुए हैं। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य भी अपनी राजनीतिक महत्ता बढ़ाना और चुनावी लाभ हासिल करना ही है। भले ही राहुल गांधी अध्यक्ष पद का चुनाव न लड़ें, लेकिन इसमें कोई संशय नहीं कि कांग्रेस की ओर से पीएम पद के वही दावेदार होंगे। राजनीति में शीर्ष पद तक पहुंचने की महत्वाकांक्षा रखना कोई बुरी बात नहीं, लेकिन उसकी पूर्ति के लिए आर्थिक नियमों की अनदेखी कर मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना ठीक नहीं। इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat
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