- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- Politics of Freebies :...
डा. सुधीर सिंह।
मुफ्तखोरी की राजनीति को लेकर तमाम चिंता जताए जाने के बाद भी राजनीतिक दल कोई सबक सीखते नहीं दिख रहे हैैं। आगामी विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक दल लोकलुभावन घोषणाएं करने में जुट गए हैैं। यह तब है, जब हाल में पांच राज्यों के चुनावों में इसी तरह की घोषणाओं को लेकर विभिन्न स्तरों पर चिंता प्रकट की जा चुकी है और श्रीलंका के हश्र से भी सबक सीखने की बात बार-बार कही जा रही है। यह सही है कि कोरोना कालखंड में केंद्र सरकार ने भी देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया, लेकिन इसकी आवश्यकता को महामारी एवं गरीबी के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। इसी तरह गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए मोदी सरकार की ओर से आवास, शौचालय, स्वच्छ जल आदि जो सुविधाएं मुफ्त उपलब्ध कराई जा रहीं, उसकी जरूरत को भी सही संदर्भ में समझा जाना चाहिए। इन दिनों विभिन्न दलों में चुनाव जीतने के लिए मुफ्त सुविधाएं और वस्तुएं देने की होड़ हानिकारक साबित हो रही है। यह समझा जाना चाहिए कि यह खतरनाक होड़ गरीबी का उन्मूलन करने के बजाय उसे बढ़ावा देने का काम कर रही है।