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- चांदनी के भ्रम में...
बौद्धिक तर्क और सियासी घमासान में अंतर यह है कि जब विवेकहीनता से फैसले होने लगें, तो सदियों की गलतियां चंद मिनटों में होती हैं। देश की बात छोड़े हिमाचल में सरकारों के फैसलों में अर्थहीन लक्ष्य, वोट की खातिर बिकते रहे हैं और पश्चाताप करती युवा पीढि़यां अपनी क्षमता पर दंश झेलती-झेलती बूढ़ी हो जाती हैं। ऐसा ही एक फैसला अतीत में आया जब सरकारी नौकरी के लिए आयु की सीमा पैंतालीस वर्ष कर दी गई। वोट की दृष्टि से यह उपाय सुखद हो सकता है, लेकिन नौकरी पाने की आशा में कितने युवा बूढ़े हो गए, इसका कोई उल्लेख नहीं। यह नौकरी अप्रत्यक्ष रूप से जब वोट को खुजाने लगी तो कई लोग शामिल कर लिए गए। बिना योग्यता की प्रमाणिकता परखते हुए परत दर परत हर सत्ता ने जो मजाक किया, वह आज कर्मचारी विसंगतियों का पिटारा बन गया। कमोबेश हर सरकार अपनी आर्थिक क्षमता से कहीं अधिक कर्मचारियों को रिझाती रही है, लेकिन हर बार यह वर्ग प्रोत्साहनों की ऊष्मा में विरोध पैदा करता है तो इसके मायने समझने होंगे। आश्चर्य यह कि हिमाचल के राजनीतिक स्वार्थ प्रदेश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। इस दृष्टि से हर सत्ता के पांचवें साल की शरारतें अपनी ही सरकारों के मिशन रिपीट को बर्बाद कर देती हैं। पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक म्यान में कुछ बड़े खास तौर पर कांगड़ा जैसे जिले को रख पाना कुछ नेताओं की आंख में नहीं सुहा रहा है।
divyahimachal