सम्पादकीय

नोटों की बारिश से शर्मसार राजनीति

Rani Sahu
2 Aug 2022 7:00 PM GMT
नोटों की बारिश से शर्मसार राजनीति
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पश्चिम बंगाल राजनीतिक भष्टाचार के जरिए हासिल किए गए नोटों की बरामदगी से पूरे देश में चर्चा में है

पश्चिम बंगाल राजनीतिक भष्टाचार के जरिए हासिल किए गए नोटों की बरामदगी से पूरे देश में चर्चा में है। यह देश के उन राज्यों में से एक है जहां अच्छी-खासी आबादी को भूख मिटाने की चिंता रहती है। इस राज्य के शिक्षा मंत्री जो ठीक तरीके से चल भी नहीं सकते, उनकी एक करीबी महिला मित्र के घर से अब तक करीब 50 करोड़ रुपए बरामद किए जा चुके हैं। सुना जा रहा है कि एक गरीब राज्य के लिए यह एक विरोधाभासी अनुभव है। पश्चिम बंगाल में आज भी हज़ारों लोग पेट की भूख मिटाने के लिए अपनी बेटियों को बेचने पर मजबूर हैं। प्रदेश के कई जिलों में गरीबी के कारण देह व्यापार का धंधा चल रहा है और उस गरीब राज्य में मंत्री की करीबी से करोड़ों रुपए निकल रहे हैं। यूनिसेफ के अनुसार पश्चिम बंगाल भारत का चौथा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, जिसकी आबादी 91.3 मिलियन है, जिसका पांचवां हिस्सा गरीब है। पश्चिम बंगाल देश के आठ सबसे गरीब राज्यों में से एक है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर जैसे सामाजिक संकेतकों में बहुत पीछे है । महिला शोषण में भी यह राज्य पीछे नहीं है। जानकारी के अनुसार बंगाल के कई इलाके देह व्यापार के लिए मशहूर हैं। कोलकाता का सोनागाछी तो एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। अंग्रेजों के शासन काल से इस इलाके में देह व्यापार का धंधा चल रहा है। गरीबी से मजबूर महिलाएं यहां रोजगार की तलाश में आती हैं और यहां कुछ दलाल उन्हें देह व्यापार के धंधे में डाल देते हैं।

इस राज्य के हालात इतने गंभीर हैं कि लोग अपना पेट भरने के लिए चूहों को मारकर खा लेते हैं। चूहे का मीट खाने से लोग गंभीर रोगों के शिकार भी हो जाते हैं। पार्थ चटर्जी वर्ष 1998 की पहली जनवरी को तृणमूल कांग्रेस की स्थापना के समय एंड्रयू यूल की अपनी भारी-भरकम पैकेज वाली नौकरी छोडक़र राजनीति में आए तो उन्होंने टिप्पणी की थी, 'मैं पैसे कमाने के लिए राजनीति में नहीं आया। अगर यही करना होता तो कॉर्पोरेट की इतनी बढिय़ा नौकरी क्यों छोड़ता?' अब उसी पार्थ की महिला मित्र अर्पिता चटर्जी के अलग-अलग फ्लैट से 50 करोड़ से ज्यादा की नकदी और पांच करोड़ से ज्यादा के आभूषण और विदेशी मुद्रा की बरामदगी ने यह सवाल खड़ा किया है कि पार्थ का असली चेहरा कौन सा है? पहले हजारों करोड़ का चिटफंड घोटाला और अब शिक्षा घोटाले में सीधे ममता सरकार में नंबर दो रहे शिक्षा मंत्री की गिरफ्तारी इस बात का सबूत है कि बीते एक दशक या उससे कुछ लंबे अरसे में बंगाल में राजनीति की तस्वीर कैसे बदली है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस घोटाले के खुलासे से यह बात साफ हो गई है कि राजनीति में भ्रष्टाचार का तौर तरीका पहले के मुकाबले कितना बदल गया है। सामाजिक आईना बताता है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार के खुले खेल ने लोकतंत्र को खोखला कर दिया है। आज भी भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन लोकतंत्र की आड़ में देश के कई हिस्सों में सावन के महीने में पानी की बरसात के साथ-साथ नोटों की बारिश होना इसकी सार्थकता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।
राजनीति धन-लोलुपता को उत्तेजित करने वाली पेशेवर गेम हो गई है। ऐसा क्यों हो रहा है, जिसके रुकने और स्खलित होने का कोई नाम नहीं है। विभिन्न तरह के राजनीतिक भ्रष्टाचार की बढ़ती स्थितियां समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह सब उस दौर में हो रहा है जब देश के अनेक राजनीतिक दल धीरे-धीरे अपनी साख खोते जा रहे हैं। इनका असली चेहरा छुप नहीं रहा है। याद रहे कि राजनीतिज्ञों की साख गिरेगी तो राजनीति की साख बचाना भी आसान नहीं होगा। देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार के बढ़ते किस्से बता रहे हैं कि आज हम जीवन नहीं, राजनीतिक मजबूरियां जी रहे हैं। आज राजनीति की सार्थकता तलाशना मुश्किल हो रहा है । क्या यह सच नहीं कि अनेक जगह राजनीतिक नेतृत्व अब व्यवसायी बन गया है। आज नेता शब्द एक गाली क्यों बन गया है, जबकि नेता तो पिता का पर्याय था। आज राजनीति में ईमानदारी को नहीं, उलटे सीधे त्रिकोण से प्राप्त सफलता एवं सत्ता प्राप्ति को एकमात्र राजनीतिक एवं मानवीय गुण माना जाता है। इन स्थितियों ने हमारे नैतिक प्रयासों एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के सामने एक सवालिया निशान लगा दिया है। सुनने में आ रहा है कि पश्चिम बंगाल में प्राप्त राशि अतीत में पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले की ही रकम है। ऐसे बेहिसाब धन की बरामदगी भ्रष्टाचार मुक्त शासन का वादा और दावा करने वालों पर बड़े सवाल खड़े करती है। आम आदमी की भी जिम्मेवारी बनती है कि वे रिश्वत मांगने वालों का विरोध करें।
जब कोई भी सरकारी काम बिना रुकावट के हो रहा है, तब जल्दबाजी व पहले काम करवाने के चक्कर में रिश्वत दे दी जाती है। बहुत कम लोग रिश्वत न देने के लिए संघर्ष करते हैं, अधिकतर लोग यही सोचते हैं कि पैसे देकर अपना काम करवाओ। पश्चिम बंगाल में नोटों का अंबार इसीलिए मिला क्योंकि लोग नेता और अफसर को पैसा देकर काम करवाने को तरजीह देते हैं। सोचना होगा कि पश्चिम बंगाल सरीखी रोकड़े की बारिश के लिए, क्या हम लोग भी कुछ हद तक जिम्मेवार नहीं हैं? देश में आसमान छूती राजनीतिक लूट के कई कारण हैं। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हर 5 वर्ष में लोकसभा के लिए चुनाव होते हैं। इसी तरह हर पांच वर्ष में राज्यों में विधानसभा के चुनाव होते हैं। चुनाव खर्च के लिए नेता भ्रष्टाचार अपनाते हैं। राजनीति में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। आज हर विभाग भ्रष्टाचार के जंजाल में फंसा हुआ है। जनता द्वारा चुने गए नेता भी कोई कम नहीं हैं। ये नेता भ्रष्टाचार को बढ़ावा देकर लोकतंत्र की जड़ें खोद रहे हैं। अपने चहेतों को क्लीन चिट देने के लिए कानूनों व नियमों में फेरबदल किए जाते हैं। इसके उपरांत भी यदि जनता मूकदर्शक है, तो हालात बिगड़ेंगे ही।
राजनीति और भ्रष्टाचार अपने देश ही नहीं, वरन् समूची दुनिया में एक-दूसरे का पर्याय बन चुके हैं। आज देश में बढ़ते भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण शीर्ष नेताओं का भ्रष्ट लोगों को संरक्षण देना भी है। बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार कभी भी किसी एक छुटभैया नेता के अकेले के बस की बात तो कतई नहीं है। चुनावों के बढ़ते खर्च के चलते पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व अपने नीचे के नेताओं के कुकृत्यों की अनदेखी करते हैं। वर्तमान समय में देश की राजनीति में भ्रष्टाचार जिस प्रकार से बढ़ रहा है, यह बेहद चिंताजनक है। भ्रष्ट और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग राजनीतिक दलों के टिकट लेने से लेकर चुनाव में वोट बटोरने तक पैसों का इस्तेमाल करने लगे हैं। छोटे चुनाव से लेकर बड़े चुनाव तक धन बल के आधार पर जीते जाते हैं। इसके कारण राजनीति में भ्रष्ट और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। इस प्रकार बढ़ते हुए भ्रष्टाचार के कारण राजनीति आम आदमी की पहुंच से दूर होती जा रही है। वर्तमान में पैसा ही किसी व्यक्ति के मान-सम्मान का प्रतीक हो गया है। राजनीति में हमारे समाज से ही लोग आते हैं। सभी को येन-केन-प्रकारेण सफलता चाहिए। स्कूलों में नैतिक शिक्षा पर जोर देना होगा। तभी उच्च स्तर के नेता देश को मिल सकेंगे। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए जनता का लामबंद होना भी जरूरी है।
डा. वरिंदर भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]

By: divyahimachal

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