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ऐसे समय में, जब उत्तर भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश समेत पांच महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं
भास्कर साई
ऐसे समय में, जब उत्तर भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश समेत पांच महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है, दक्षिण भारत के दो शीर्ष नेता आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। हालांकि इन राज्यों के चुनाव परिणाम का दक्षिण की राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, पर हमें अखिल भारतीय राजनीति में दक्षिण के क्षत्रपों द्वारा किए जाने वाले प्रयास के असर को जानने के लिए ठहरकर देखने की जरूरत है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं द्रमुक अध्यक्ष एम. के. स्टालिन ने हाल ही में एक सामाजिक न्याय मोर्चा बनाने की योजना की घोषणा की और इसमें शामिल होने के लिए भाजपा को छोड़कर कांग्रेस सहित 65 राजनीतिक दलों को पत्र लिखा। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि स्टालिन सामाजिक न्याय मोर्चा क्यों बनाना चाहते हैं। हालांकि स्टालिन के इस कदम से राजनीतिक विश्लेषक हैरान नहीं हैं। जिस तरह से घटनाक्रम आगे बढ़ा है, उससे कहा जा सकता है कि स्टालिन केंद्रीय राजनीति में मजबूत पकड़ बनाना चाहते हैं। स्टालिन ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस बनाना चाहते हैं, जिसकी उन्होंने हाल ही में घोषणा की है। स्टालिन ने कहा कि इसका लक्ष्य सामाजिक न्याय पाने के साथ संघवाद की स्थापना भी है। 'सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने और सामाजिक न्याय आंदोलन के लिए संयुक्त राष्ट्रीय कार्यक्रम' पर एक राष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस फेडरेशन में सभी राज्यों के दलित वर्ग के नेताओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होगा।
उन्होंने घोषणा की कि जो लोग वास्तव में सामाजिक न्याय के बारे में चिंतित हैं, वे इसका हिस्सा बनेंगे। कई लोग इसे राष्ट्रीय राजनीति में खुद को लॉन्च करने के स्टालिन के पहले कदम के रूप में देखते हैं। उनकी आत्मकथा अनगलिल ओरुवन के विमोचन के अवसर पर सभी राज्यों के नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश को उनके दूसरे कदम के रूप में देखा जा रहा है। स्टालिन ने 28 फरवरी को अपनी आत्मकथा के विमोचन के लिए राहुल गांधी सहित विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया है। विभिन्न राज्यों के नेताओं की उपस्थिति में आत्मकथा का विमोचन स्वाभाविक रूप से पूरे देश का ध्यान आकर्षित करेगा। इस बीच, द्रमुक के राज्यसभा सांसद टीकेएस एलंगोवन ने कहा कि स्टालिन के प्रधानमंत्री बनने से देश समृद्ध होगा। उन्होंने कहा कि 'स्टालिन की राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी पहचान और प्रतिष्ठा है। उनमें प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं और जनता भी यही चाहती है।'
राजनीतिक विश्लेषक एलंगोवन की इस टिप्पणी को अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया की थाह लेने के उपाय के रूप में देखते हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक रामकृष्णन कहते हैं कि 'स्टालिन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर उभरना आसान होगा। लेकिन स्टालिन को आगे बढ़ने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि स्टालिन, एक नेता के रूप में, खुद को उत्तर भारत के लोगों के साथ कैसे जोड़ते हैं। इसके अलावा स्टालिन को अपने पिता की राजनीतिक सोच से अलग द्रमुक में दूसरी पंक्ति के नेताओं को तैयार करना होगा, ताकि तमिलनाडु में भी द्रमुक की पकड़ मजबूत बनी रहे। यदि वह राष्ट्रीय नेता बनने की चाहत में तमिलनाडु की उपेक्षा करते हैं, तो यह उन्हें बहुत महंगा पड़ेगा।'
राजनीतिक विश्लेषक उमेश सुब्रमण्यम कहते हैं कि 'स्टालिन की कोशिश महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक है। वी. पी. सिंह, राम विलास पासवान, शरद यादव, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव राजनीति में सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाले प्रमुख चेहरे रहे हैं। पर अब लगता है कि एक खालीपन है और स्टालिन सही कदमों से इसे भर सकते हैं। सबसे पहले उन्हें और उनकी पार्टी को अपनी हिंदी विरोधी छवि से मुक्त होना पड़ेगा।' गौरतलब है कि स्टालिन के सामाजिक न्याय मोर्चे के गठन के आह्वान के बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राकांपा नेता शरद पवार के साथ अलग-अलग बैठकें की हैं। इससे पहले केसीआर ने हाल ही में स्टालिन और देवगौड़ा से बात करके आग्रह किया था कि वे तीसरे मोर्चे को पुनर्जीवित करने की उनकी पहल को मजबूत करें। ठाकरे और पवार से मुलाकात के बाद केसीआर ने दावा किया कि तीसरा मोर्चा जल्द ही हकीकत बन जाएगा।
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी उन्हें तीसरे मोर्चे के गठन पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया है। अगर राज्यों के नेता गठबंधन कर लेते हैं, तो कयास लगाए जा रहे हैं कि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार बन सकती हैं। ध्यान दिया जाना चाहिए कि स्टालिन और ममता ने हाल ही में दिल्ली में गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों की
बैठक की मेजबानी करने की योजना बनाई थी। दूसरी तरफ द्रमुक की गठबंधन सहयोगी कांग्रेस भी घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है। महाराष्ट्र के कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले ने कहा कि 'भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के केसीआर के प्रयासों का स्वागत है। लेकिन कांग्रेस के बिना ऐसे प्रयास न तो पूरे होंगे और न ही सफल होंगे। सत्तारूढ़ भाजपा का एकमात्र विकल्प कांग्रेस है।'
इस बीच, महाराष्ट्र के भाजपा नेता देवेंद्र फड़णवीस ने कहा कि पहले भी तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयोग हुआ था, जो विफल रहा। राजनीतिक पर्यवेक्षक कीर्तिवर्मन कहते हैं कि फिलहाल स्टालिन राष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान नहीं देंगे। वह तर्क देते हैं कि 'द्रमुक दस वर्षों के बाद सत्ता में लौटी है। ऐसा बहुत कुछ है, जिस पर मुख्यमंत्री को ध्यान देने की जरूरत है। स्टालिन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने की सभी अटकलें अफवाह बनकर रह जाएंगी। अभी कांग्रेस और द्रमुक के बीच गठबंधन मजबूत है, और कांग्रेस के बिना तीसरे मोर्चे की कल्पना संभव नहीं लगती।'
गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में स्टालिन ने स्पष्ट किया था कि उनकी पार्टी तीसरे मोर्चे के पक्ष में नहीं है और वह कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए का हिस्सा बनी रहेगी। हालांकि उन्होंने तीसरे मोर्चे के गठन को पूरी तरह से खारिज नहीं किया था। स्टालिन पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने राहुल गांधी को यूपीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। जैसा कि कहा जाता है, राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है, इसलिए हमें आगे के घटनाक्रम का इंतजार करना होगा।
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