सम्पादकीय

राजनीति : भाजपा की नई लाइफ लाइन, हिंदुत्व के वर्चस्व का ठौर-ठिकाना और शीर्ष नेतृत्व से नाराजगी

Neha Dani
10 Jun 2022 2:10 AM GMT
राजनीति : भाजपा की नई लाइफ लाइन, हिंदुत्व के वर्चस्व का ठौर-ठिकाना और शीर्ष नेतृत्व से नाराजगी
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भाजपा को कमजोर करने की जगह और भी मजबूत बनाने वाला दिखता है। यही भाजपा की नई लाइफ लाइन है!

इन दिनों मोदी विरोधी बहुत खुश हैं कि अब भाजपा गई! इस्लामी देशों के दबाव में भाजपा को अपने विवादित मीडिया प्रवक्ता व इनचार्ज को हटाना पड़ा! जो हिंदुत्ववादी विमर्श पिछले आठ साल से सबको रगड़ रहा था, उसे पहली बार मुंह की खानी पड़ी! उसकी सारी अकड़ निकल गई। उसे अपनी औकात मालूम पड़ गई! वह अब वैसा एजेंडा नहीं चला सकती, जो चलाती आई थी और इस तरह भाजपा अब गई कि अब गई। इस बात में दम है। जो भाजपा किसी की नहीं सुनती थी, उसे इस्लामी देशों के दबाव में अचानक घुटने टेकने पड़े।

उसका दंभ टूटा। इसीलिए आज भाजपा के निंदकों के डौले चौड़े हुए दिखते हैं। इस खुशी के कारण भी कम नहीं : सब जानते हैं कि इस घटना के बाद भाजपा में अंतर्कलह बढ़ी है। कई कार्यकर्ता कह रहे हैं कि नूपुर शर्मा को निकालकर भाजपा ने 'यूज ऐंड थ्रो' की नीति अपनाई है। इसके बाद कोई प्रवक्ता मीडिया में आकर उसके लिए क्यों अपनी जान लड़ाएगा? जरा-सा इधर-उधर होते ही पार्टी उसे निकालकर पल्ला झाड़ लेगी। वह अकेला रह जाएगा। भाजपा की एक नेता ने कहा भी कि पार्टी ने सही किया, लेकिन नूपुर को भेड़ियों के बीच फेंक दिया! इस घटना के बाद संघ के भीतर भी कम बेचैनी नहीं है।
संघ के कई कार्यकर्ता तो मोहन भागवत के उस बयान से ही नाराज नजर आते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि 'हर मस्जिद में शिवलिंग क्या खोजना?' ये क्या बात हुई? कल तक आप 'तीस हजार' या कि 'अड़तालीस हजार' मंदिरों के तोड़े जाने की बात बताते थे और उनकी वापसी की सोचते थे और संघ के प्रवक्ता इसे मीडिया में दोहराते थे, लेकिन आपने एक बयान से उन सबको 'झूठा' साबित कर दिया। अब वे क्या कहें? एक स्वामी जी तक ने इसे चुनौती दी। एक वीएचपी वाले तक ने उनके इस वक्तव्य को 'तुष्टीकरण' बताया।
जाहिर है, पहली बार संघ के प्रमुख से उसके अनेक सदस्यों की नाराजगी सामने आई, जो बताती है कि इन दिनों संघ की ऑफिशियल लाइन के प्रति भी गहरा क्षोभ है। संघ वाले सोचते थे कि भाजपा राजनीतिक जरूरत के हिसाब से आगे-पीछे कर सकती है, पर संघ ऐसा नहीं कर सकता। वह किसी बात पर आगे-पीछे नहीं होता और न हो सकता है। भाजपा से नाराजगी का तीसरा रूप वह है, जो आम हिंदू पब्लिक में दिख रहा है। पिछले सात-आठ साल से मीडिया में नित्य हो रहे हिंदुत्ववादी विमर्शों को अपने दिल की बात मानकर चलने वाली आम हिंदू जनता ने एक नया हिंदुत्ववादी 'पब्लिक स्फीअर' बनाया है।
वह भारत को 'हिंदू राष्ट्र' की तरह देखती है। वह हिंदुत्व के वर्चस्व में अपना वर्चस्व देखती है और हिंदुत्ववादी मुहावरे में सोचती है। महंगाई, बेरोजगारी की हजार तकलीफों के बावजूद वह भाजपा, प्रधानमंत्री और संघ को हर हाल में सही ठहराती है, वही आज क्षुब्ध होकर कह रही है कि भाजपा कायरों की पार्टी है, इससे कुछ नहीं हो सकता। पिछले आठ-दस दिनों में इस लेखक की कई लोगों से बातें हुईं। उन सबने भाजपा और उसके नेतृत्व को एक स्वर से रीढ़विहीन और अवसरवादी बताया और कहा कि जो भाजपा अपने बंदों की भी सगी न हुई, वह किसकी सगी होगी?
हम इसे वोट क्यों दें? वे भाजपा की नरम लाइन के मुकाबले और गरम लाइन को पसंद करने वाले नजर आए। इतना ही नहीं, भाजपा के इस तरह पीछे हटने का असर मीडिया के उस हिस्से पर भी पड़ा है, जो कल तक भाजपा के सुर में सुर मिलाता हुआ 'राष्ट्रवाद' की वकालत करता था, जो आए दिन 'हिंदुत्व बरक्स इस्लाम' कराता रहता था और इस तरह विभाजनकारी बहसों को तूल देता रहता था। इस मीडिया को भी आज पीछे हटता देखा जा सकता है। कई तो अब ऐसे 'डिस्क्लेमर' भी देने लगे हैं, जो कुछ पहले तक नहीं देते थे कि यहां व्यक्त विचारों से चैनल का कोई लेना-देना नहीं।
कहने की जरूरत नहीं कि एक घटना ने भाजपा को एकदम रक्षात्मक बना दिया है, लेकिन ऐसा नहीं कि भाजपा की 'नूपुर-नीति' के लेवाल न हों। बहुत से लोग भाजपा के इसे अल्पसंख्यकों के प्रति उसकी संवेदनशीलता की तरह भी देख रहे हैं, जिसका लाभ उसे 2024 में मिल सकता है। इसके बावजूद भाजपा के अंदर बढ़ती नाराजगी और उग्र लाइन लेने की मांग का पलड़ा भारी लगता है, जिसे भाजपा की गिरती साख पर खुश होने वाले नहीं पहचान रहे कि इसके असली मानी क्या हैं?
यहां से यह टिप्पणी उस नई स्थिति का विश्लेषण करने की ओेर मुड़ती है, जिसे भाजपा के 'तात्कालिक पराभव' पर खुश होते कथित सेक्यूलर दिमाग नहीं देख पा रहे। और यही भाजपा को एक और 'लाइफ लाइन' देती है, बल्कि उसे और भी मजबूत करने का सामान मुहैया करती है। कहने की जरूरत नहीं कि इस्लामी देशों का एक सुर में बोलना संघ/भाजपा की उस रणनीतिक लाइन को ही रेखांकित करता है, जो कहती रही है कि 'मुस्लिमों के लिए बोलने वाले सत्तावन इस्लामी देश हैं, वे दुनिया के दो अरब मुस्लिमों को एक राष्ट्र की तरह बोलने को कहते हैं, लेकिन हिंदुओं के लिए बोलने वाला कौन है?
इसलिए हिंदुओ! एक रहो, संगठित रहो यानी संघ/ भाजपा छतरी में रहो। मत भूलो कि तुम भी एक अरब हो।' इस तरह भाजपा की 'नूपुर नीति' से एक ओर भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है, तो दूसरी ओर 'पैन इस्लामिज्म' की चुनौती वाली उसकी लाइन भी पुष्ट हुई है और इसने 'हिंदू दृढ़ीकरण' की जरूरत को नए सिरे से रेखांकित किया है। हमारा मानना है कि इस चुनौती की समक्षता में संघ/भाजपा और भी ताकतवर बनकर उभरनी है।
उक्त स्थिति यह भी बता रही है कि अगर 'ग्लोबल हिंदू फोबिया' से हिंदू को बचना/बचाना है, तो उसे संघ/भाजपा को न केवल बचाना है, बल्कि उसे और कट्टर बनाना है। इसीलिए हमने कहा कि 'दो कदम पीछे' वाली भाजपा की लाइन पर उसके निंदकों को बहुत खुश होने की जरूरत नहीं, क्योंकि इस तात्कालिक चोट से भाजपा कुछ और तीखी और ताकतवर बनकर उभरनी है। 'पैन इस्लामिज्म' की चुनौती का ऐन सामने होना, संघ और भाजपा को कमजोर करने की जगह और भी मजबूत बनाने वाला दिखता है। यही भाजपा की नई लाइफ लाइन है!

सोर्स: अमर उजाला

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