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Written by जनसत्ता; महाराष्ट्र में कई दिनों की जद्दोजहद और दांवपेच के बाद गुरुवार को एकनाथ शिंदे ने राज्य के मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस तरह बीते कई दिनों से सत्ता के लिए चल रही खींचतान अपने निष्कर्ष पर पहुंच गई। हालांकि एक दिन पहले विधानसभा में शक्ति परीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद उद्धव ठाकरे ने जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, तभी यह तय हो गया था कि अब वे सत्ता बचाने की लड़ाई से बाहर निकल गए हैं।
उसके बाद शिवसेना के बागी विधायकों और उनका समर्थन करने वाली भाजपा के लिए मैदान साफ हो गया था। विधानसभा में शक्ति परीक्षण की नौबत नहीं आई और विधायकों की संख्याबल के आधार पर शिवसेना के बागी गुट और भाजपा की मिली-जुली सरकार बन गई। यानी सत्ता के लिए चली उठापटक और राजनीतिक रणनीतियों के लिहाज से एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों ने बाजी मार ली। हालांकि इस बीच उद्धव ठाकरे की ओर से कई स्तर पर दबाव बनाने की कोशिश की गई, मगर उतार-चढ़ाव के बाद आखिर उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए।
देश की राजनीति में पार्टी से बगावत करने और नए समीकरण बिठा कर सत्ता हासिल करने का यह कोई नया उदाहरण नहीं है, लेकिन मौजूदा परिदृश्य में इस घटना ने थोड़ा हैरान इसलिए किया कि महाराष्ट्र में पिछले करीब ढाई साल से महाविकास आघाडी गठबंधन के तहत शिवसेना के नेतृत्व में सरकार बिना किसी बाधा के सहजता से चल रही थी। हालांकि शुरू में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ शिवसेना के समझौते को लेकर यह आशंका जाहिर की गई थी कि यह बेमेल साथ कितने दिन चलेगा। मगर इन पार्टियों के बीच तालमेल कायम रहा।
एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों के साथ इसी मुद्दे को मुख्य सवाल बता कर बगावत की और इस गठबंधन को अस्वाभाविक करार दिया। अब खुद को हिंदुत्व और शिवसेना की असली विरासत का दावेदार बता कर एकनाथ शिंदे ने सत्ता हासिल करने की राजनीतिक लड़ाई तो जीत ली है, मगर भाजपा के सहयोग से बनी उनकी सरकार पर देश की नजर रहेगी। यों इस तालमेल को लेकर आम आकलन यही है कि चूंकि भाजपा और एकनाथ शिंदे का समूह विचारधारा की जमीन पर घोषित तौर पर एक साथ हैं, इसलिए इस गठबंधन को विधानसभा का बाकी वक्त पूरा कर लेने में कोई अड़चन शायद नहीं आए।
नई स्थितियों में अब वहां दल-बदल और राजनीतिक नैतिकता आदि के सवाल पृष्ठभूमि में चले जाएंगे और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बनी नई सरकार की परीक्षा शासन की कसौटी पर होगी। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास आघाडी की सरकार का कामकाज के नजरिए से प्रदर्शन काफी बेहतर और संतोषजनक माना जा रहा था। विकास के मोर्चे पर इस गठबंधन ने सहजता के साथ काम किया था और राज्य की जनता के बीच एक नई छवि अर्जित की थी। खासतौर पर कोरोना संक्रमण से जूझने के क्रम में उद्धव ठाकरे की सरकार की योजनाबद्ध कोशिशों की प्रशंसा हुई थी।
अब एकनाथ शिंदे के सामने यह चुनौती होगी कि वे भी खुद को एक परिपक्व शासक साबित करें। यह एक जरूरी पक्ष इसलिए भी रहेगा कि उन्होंने जिन सवालों को मुद्दा बना कर शिवसेना से अलग होने की घोषणा की थी, उनकी भावी गतिविधियों को उसी पैमाने पर देखा जाएगा। राजनीति में कभी भी उथल-पुथल और अनिश्चितता की आशंका बनी रहती है और इस बीच सरकारें बदलती रहती हैं। मगर किसी भी पार्टी की सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि वह जनता की अपेक्षाओं और विकास की कसौटी पर खुद को लोकतांत्रिक और समावेशी साबित करे।