सम्पादकीय

चुनावों का सियासी कथन

Gulabi
1 Oct 2021 5:26 AM GMT
चुनावों का सियासी कथन
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उपचुनावों के गुण और गुणवत्ता के आकलन में आम जनता के सामने सियासी चरित्र की पड़ताल होगी

divyahimachal.


उपचुनावों के गुण और गुणवत्ता के आकलन में आम जनता के सामने सियासी चरित्र की पड़ताल होगी। राजनीतिक कथन के परिप्रेक्ष्य में चुनावी लहरों पर दौड़ती महत्त्वाकांक्षी किश्तियों का टकराव और लोकतांत्रिक परिदृश्य की मजबूरियों का शृंगार। हिमाचल में उपचुनावों की प्रदक्षिणा में टिकट पाने की होड़ और अलंकरण की भूमिका में दो प्रमुख दल। भाजपा अगले हफ्ते अपने उम्मीदवारों की गुणात्मक शक्ति का परिचय कराएगी, तो कांग्रेस भी अपने दहले पेश करेगी। आंतरिक सर्वेक्षणों की मुखालफत में उम्मीदवारों का चयन हमेशा टेढ़ी खीर की तरह है। प्रचार की नोक पर हिमाचल की अवसरवादिता का खेल और हर तुर्रमखान की असलियत का खोखलापन जाहिर होगा। आश्चर्य यह कि हम नागरिक समाज के रूप में जो सोचते हैं, उससे कहीं विपरीत अपने जनप्रतिनिधियों से प्राप्त करते हैं। यह दीगर है कि हिमाचल के विधायकों का करिश्मा उनके द्वारा अर्जित सत्ता की ऊष्मा तथा ट्रांसफरों के जरिए किया गया परोपकार है। पिछले चार साल की विधायकी के आगे शेष एक साल का समय कितना आगे जा सकता है, यह समझ से परे है।


यह दीगर है कि अब तक खिचड़ी में पक रही उम्मीदों का हिसाब लगाएं, तो राजनीतिक पार्टियों की जेब खाली है। हम पुनः परिवारवाद की उपज में सियासत की बागडोर देख सकते हैं या राजनीति में तिल धरने की जगह अब आम कार्यकर्ता के लिए नहीं है। क्या कांग्रेस के प्रयोग हिमाचल में भी किसी चरणजीत सिंह चन्नी जैसा उम्मीदवार ढूंढ लाएंगे या भाजपा की फेहरिस्त में पुनः कोई साधारण कद-काठी का राम स्वरूप निकल आएगा। सियासत के परिवार अपनी मिलकीयत में जो देख रहे हैं, क्या फिर वही शाम आएगी। गुण और गुणवत्ता के चौबारों के ठीक सामने मतदाता की कंगाली का आलम यही कि जब सामने परोसी गई राजनीतिक उम्मीदें ही बासी होंगी, तो चुनेंगे क्या। जब पंडित सुखराम के इर्द-गिर्द की कांग्रेस को समेटना मुश्किल हो या दादा से पोते तक के हिसाब में पार्टी उलझ जाए, तो किसी भी चुनाव का कथन बिगड़े बोल बन जाता है। जनता के समूहों में उपचुनावों की परिभाषा जातीय आधार भी देखेगी खासतौर पर मंडी संसदीय क्षेत्र में भाजपा के सामने फिर स्लेट साफ है, लेकिन आरंभिक झुकाव में राजपूत प्रत्याशियों की सूची के आगे पंडित समुदाय को सत्ता में कोई अभिभावक नहीं मिल रहा।

फतेहपुर, जुब्बल-कोटखाई व मंडी संसदीय सीट के आलोक में हिमाचल का शासक वर्ग स्पष्टता से जिन चेहरों को देख रहा है, वहां जातिवाद का एक खास स्तंभ ही दिखाई दे रहा है। अर्की विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की दावेदारी ठोंक रहे गोविंद राम शर्मा इस लिहाज से जातीय संतुलन पैदा कर सकते हैं, वरना हाथियों पर जातीय महारथी कई अन्य वर्गों की उपेक्षा ही करेंगे। राजनीति के मशवरे भी मुड़-मुड़ अपनों को ही रेवडि़यां बांटने जैसे होंगे या पिछले चुनावों के अंक गणित में हुआ जमा-घटाव देखा जाएगा। बहरहाल एक हफ्ते की पड़ताल में थाली सजेगी और देखा यह जाएगा कि राजनीति भी गोल-गोल घूम कर जलेबियां ही पका रही है। राजनीति में 'विनेविलिटी' का आधार जिस तरह भोथरा गया है, वहां किसी का भी हुक्का-पानी बदल सकता है। जनता के खाके में उसकी पसंद के उम्मीदवार आएंगे या वह राजनीति के खाकों में अपने लिए और खालीपन भर लेगी, इसका पता अगले हफ्ते ही चलेगा। यह दीगर है कि आगामी चुनावों की तैयारी में उम्मीदवारों की परख, मुद्दों की परत और सत्ता की खबर पता चल जाएगी। राजनीति के लिए अपने कथन सुधारने का अवसर है, लेकिन कांग्रेस के लिए अपने वचन सुधारने की गुंजाइश रहेगी। पंजाब में पार्टी का पतन जिस तरह उनके समर्थकों को निराश कर रहा है, कम से कम उस हालत में हिमाचल फिलहाल नहीं है। दूसरी ओर सत्ता के लिए अपने दौर का परीक्षण और लक्ष्यों की हिफाजत का समय शुरू हो चुका है।
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