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- 'एथनिक क्लींजिंग' का...

कश्मीर घाटी ऐसे किरदारों, ऐसे सियासतदानों से कलंकित है, जिसमें कोई कश्मीरियत से भले प्रधानमंत्री बना हो लेकिन कुल मिलाकर वह धोखेबाज प्रमाणित हुआ। जिसे भारत का गृह मंत्री बनने का मौका मिला उसके हाथ भी जन सफाए-संहार याकि 'एथनिक क्लींजिंग' के खून से रंगे हुए। शेख अब्दुल्ला, मुफ्ती मोहम्मद सईद (कर्ण सिंह और गांधी-नेहरू दरबार में कश्मीर की रीति-नीति बनवाने वाले चेहरे भी इसी श्रेणी के) और उनके वशंज अब्दुल्ला-मुफ्ती परिवार के चेहरों, मिजाज में भले ऊपरी फर्क दिखे लेकिन दोनों परिवारों की तासीर में अवसरवाद, सुविधा और सत्ता भूख में धर्म, उग्रवाद व अलगाव का खेला एक से अंदाज का है। नेहरू के आइडिया ऑफ इंडिया के गांधी-नेहरू-इंदिरा हों या हिंदू आइडिया ऑफ इंडिया के वाजपेयी, नरेंद्र मोदी सभी का भरपूर उपयोग तो जमायत-जेकेएलएफ, आईएसआई याकि उग्रवादियों-लड़ाकों का इस्तेमाल भी बेहिचक। इस सत्य की एक पुख्ता-घातक अवधि 1982 से 1989 के सात साल हैं। मतलब 19 जनवरी 1990 के जातीय सफाए-संहार की तारीख के पूर्व की बैकग्राउंड, हिंदुओं को भगाने से पहले का प्री-प्लान!
