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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। याद रखना चाहिए कि इस राज्य में उग्रवाद के चरम उठान के दिनों में भी ये पार्टियां न केवल चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी रहकर राज्य में सरकार चलाती रही हैं बल्कि इनके सैकड़ों नेता-कार्यकर्ता आतंकी हमलों में मारे गए हैं और अलग-अलग समय में ये केंद्र सरकार का भी हिस्सा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन दलों के प्रमुख नेता कश्मीर को लेकर भारत के पक्ष का समर्थन करते रहे हैं।
गुपकार गठबंधन के नेता।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर की स्थानीय राजनीतिक पार्टियों पर तीखा हमला बोलते कहा कि कांग्रेस और गुपकार गैंग जम्मू-कश्मीर को फिर से आतंक और उत्पात के दौर में ले जाना चाहते हैं। गुपकार गैंग से गृहमंत्री का मतलब उन पार्टियों से है जो गुपकार डिक्लेरेशन का हिस्सा हैं। नैशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस और सीपीआईएम ने मिलकर पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) नाम का एक राजनीतिक मोर्चा बनाया है जो एक इकाई के रूप में राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ रहा है। कांग्रेस का इनके साथ घोषित तौर पर कोई समझौता नहीं है, लेकिन स्थानीय स्तर पर सीटों का तालमेल होने की चर्चा है।
चूंकि गुपकार डिक्लेरेशन से प्रतिबद्धता जताने वाला यह संगठन राज्य में अनुच्छेद 370 बहाल किए जाने की मांग करता है और फारूख अब्दुल्ला तथा महबूबा मुफ्ती के कुछ तीखे बयानों पर विवाद भी हो चुका है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी का उन पर खास तौर पर हमलावर होना स्वाभाविक है। लेकिन यहां मामला देश के गृहमंत्री के बयान का है। जम्मू-कश्मीर में प्रभाव रखने वाली मुख्यधारा की पार्टियों के एक मोर्चे को गैंग या अपराधियों के गिरोह के रूप में संबोधित करना उचित नहीं कहा जा सकता।
याद रखना चाहिए कि इस राज्य में उग्रवाद के चरम उठान के दिनों में भी ये पार्टियां न केवल चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी रहकर राज्य में सरकार चलाती रही हैं बल्कि इनके सैकड़ों नेता-कार्यकर्ता आतंकी हमलों में मारे गए हैं और अलग-अलग समय में ये केंद्र सरकार का भी हिस्सा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन दलों के प्रमुख नेता कश्मीर को लेकर भारत के पक्ष का समर्थन करते रहे हैं। आज भी ये स्थानीय चुनावों में पूरी शिद्दत से शामिल हो रहे हैं, चुनाव बहिष्कार की बात नहीं कर रहे। अगर ये दल राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग पर अड़े हुए हैं तो उनकी इस मांग से सहमत होना जरूरी नहीं है, लेकिन इसके साथ ही हमें यह याद रखना चाहिए कि भारत का संविधान और यहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था उन्हें शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने की इजाजत देती है।
आखिर अनुच्छेद 370 के लागू रहते हुए भी जम्मू-कश्मीर लंबे समय तक इस देश का अभिन्न अंग रहा है। सरकार और भारतीय जनता पार्टी यह कहती रही है कि अनुच्छेद 370 के तहत विशेष प्रावधान खत्म करने का फैसला राज्य की जनता के हित में किया गया है। चुनाव वह उपयुक्त मौका है जब पार्टी के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को इस फैसले की खूबियां समझा सकते हैं और उन्हें समझाना चाहिए। इसके बजाय जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक संगठनों को आपराधिक गिरोह करार देने वाले सरकारी बयान इन्हें चुनाव प्रक्रिया से बाहर धकेलने का काम करेंगे। ऐसा हुआ तो उन तत्वों को मजबूती मिलेगी जो राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को हाशिये पर डालकर लोगों को आतंकी रास्ते की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं।