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- मौसम के साथ-साथ बढ़ती...
प्रदेश का यह चुनावी वर्ष है। इसलिए तपते मौसम के साथ-साथ राजनीतिक पारे का चढऩा भी लाजिमी है। रैलियों और रोड शो के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन का दौर आरंभ हो चुका है, परंतु फिल्मी अंदाज़ में तीसरे राजनीतिक विकल्प की धमाकेदार एंट्री से राज करने वाली या राज करने की उम्मीद लगाए बैठी दोनों पार्टियों भाजपा और कांग्रेस का सुख-चैन सब हवा हो चुका है। बारी-बारी राज करने वाली दशकों पुरानी पार्टियां नई नवेली पार्टी से इस कदर परेशान हैं कि इन पार्टियों के छोटे-बड़े नेताओं सहित आईटी सैल ने अपनी तोप का मुंह सीधा केजरीवाल की पार्टी की तरफ घुमा दिया है, बिना किसी आत्ममंथन के, कि आखिर आम आदमी पार्टी हिमाचल में अस्तित्व में आई तो कैसे, और सरकार और विपक्ष की किन कमजोरियों की वजह से आज तीसरा फ्रंट इतना हावी हो गया? केजरीवाल को न तो हिमाचल का भूगोल पता है, न ही वो यहां की स्थानीय समस्याओं से अवगत हैं। आम आदमी पार्टी के पास न संगठन है, न ही चिरपरिचित कोई नेता। दूसरी तरफ जनता भी नहीं जानती कि केजरीवाल की पार्टी की विचारधारा क्या है। फिर भी केजरीवाल के साथ भीड़ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।