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बिहार से जुड़े रविशंकर प्रसाद, शाहनवाज को दिल्ली दरबार में तलब किया गया है और बैकचैनल चर्चा जारी है।
बिहार में सियासी संकट नहीं, भरोसे का संकट है। तेजी से बदलते घटनाक्रम से सियासी अटकलें लग रही हैं कि नीतीश कुमार अब गठबंधन नहीं बल्कि महागठबंधन का हिस्सा हो सकते हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद राजनीति में छोटा भाई बन चुके नीतीश अब बड़े भाई (भाजपा) को सत्ता का वनवास दिलाकर फिर से अपना कद बढ़ाने को आतुर हैं और मौजूदा गणित भी नीतीश के पक्ष में दिख रहा है लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। दरअसल, यह भरोसे का संकट है।
गठबंधन में भरोसे का संकट
नीतीश कुमार के लिए गठबंधन और महागठबंधन दोनों तरफ से भरोसे का संकट है। विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग मॉडल के चलते आखिरी चुनाव की बात करने वाले नीतीश अपनी पार्टी जदयू को मजबूती प्रदान करने को आतुर हैं। इस मंसूबे में उनके सिपहसालार आरसीपी सिंह ने पहले भरोसा तोड़ दिया है।
आरसीपी की जदयू या बिहार की राजनीति में नीतीश के मुकाबले पकड़ नहीं है लेकिन देर-सबेर महाराष्ट्र के शिंदे की तरह गुल खिलाने का अंदेशा नीतीश को जरूर है। नीतीश को अहसास है कि भाजपा ने उनका कद और छोटा करने के लिए आरसीपी को आगे किया है।
चर्चा तो यह भी है कि लोकसभा चुनाव से पहले आरपीसी को नीतीश के स्वजातीय बड़े नेता के तौर पर उभारने के लिए भाजपा का रथ तक तैयार हो चुका था और इसकी भी नीतीश को समय रहते भनक लग गई। गठबंधन में बड़ा भाई होने के बावजूद भाजपा ने भले छोटे भाई को सीएम बना दिया लेकिन राज्यपाल और स्पीकर के जरिए नीतीश पर नकेल कसी गई। नीतीश को मौजूदा राज्यपाल और स्पीकर नापसंद हैं। वह बदलाव चाहते हैं। इसी तरह, नीतीश मोदी मंत्रिमंडल में अब ज्यादा बर्थ चाहते हैं।
आरसीपी के राज्यसभा से हटने के बाद जदयू कोटे का मंत्री पद खाली है, सो अलग। जदयू अध्यक्ष ललन सिंह का मोदी मंत्रिमंडल में शामिल न होने वाला बयान इसी दर्द को झलकाता है। विधानसभा चुनाव में दूध से जले नीतीश लोकसभा चुनाव में छांछ फूंक कर पीना चाहते हैं।
उन्हें अहसास है कि लोकसभा चुनाव में सीटों की बात हो या मोदी मंत्रिमंडल में बर्थ, हमेशा आरएसी सीट पर ही संतोष क्यों? अब नीतीश ताजा घटनाक्रम से भाजपा पर न केवल पूरी तरह से दबाव बना चुके हैं बल्कि बढ़त बना रखी है। ऐसे में राज्यपाल, स्पीकर, केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह और लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटों को लेकर बिगड़ती बात फिर बन सकती है। इसकी संभावना इसलिए प्रबल है कि भाजपा भले नीतीश को छेड़ रही हो लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा नीतीश को छोड़ना भी नहीं चाहेगी।
भाजपा को नफा-नुकसान का अहसास है। यही वजह है कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा ने अपने हाल के बिहार दौरे में पार्टी नेताओं को समझा दिया था कि वे नीतीश के साथ मिलकर काम करें। अब जब घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है, तब भी भाजपा नेताओं को स्पष्ट निर्देश है कि वे बयानबाजी से बचें। बिहार से जुड़े रविशंकर प्रसाद, शाहनवाज को दिल्ली दरबार में तलब किया गया है और बैकचैनल चर्चा जारी है।
सोर्स: अमर उजाला
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