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किसान आंदोलन अब किसान आंदोलन कतई नहीं रहा है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। किसान आंदोलन अब किसान आंदोलन कतई नहीं रहा है. पिछले दो महीनों से आंदोलन के नाम पर जो हजारों लोग सड़क पर तंबू डाल कर बैठे हैं उससे एक बात तो साफ है कि आंदोलनकारियों में किसान कम और राजनीति से प्रेरित लोग ज्यादा हैं. खास कर वह जो अपने को किसान नेता कहलाना पसंद करते हैं. जो मासूम किसान धरने पर बैठे हैं, वे उसी तरह बरगलाए गए लोग हैं जैसे शाहीनबाग में धरना पर बैठे लोग एक तोते की तरह रटे-रटाए दोहे पढ़ रहे थे.
जैसे शाहीनबाग में ज्यादातर आंदोलनकारियों को यह नहीं पता था कि CAA क्या है, बस उन्हें डरा दिया गया था कि अगर यह कानून वापस नहीं होगा तो सभी गैर हिंदू को देश से निकाल दिया जाएगा. ठीक उसी तरह दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों को यह पाठ पढ़ा दिया गया है कि अगर किसान कानून वापस नहीं लिया जाएगा तो उनकी जमीन बड़े उद्योगपतियों को दी जाएगी और वे अपनी ही जमीन पर मजदूर बन जाएंगे.
आंदोलन में नेता
दिल्ली की सीमा पर एक तरफ पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान डटें हैं और दूसरी तरफ हरियाणा और पंजाब के लोग. और नेता वही लोग हैं जिनकी राजनीतिक लालसा बाकी है. लोकसभा या विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और जनता द्वारा रिजेक्ट भी हो चुके हैं. राकेश टिकैत और नरेश टिकैत महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं. टिकैत का पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक रूतबा होता था. बड़े किसान नेता थे पर राजनीति से कोसों दूर रहे. उनके बेटों ने उनका नाम भुनाने की कोशिश की. चुनाव लड़े पर सफलता हासिल नहीं हुई. उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव अगले वर्ष होने वाला है और उन्हें लगता है कि किसान आंदोलन शायद उनके लिए राजनीति में सफलता की कुंजी हो सकती है.
दूसरी तरफ हरियाणा के तथाकथित किसान नेता गुरुनाम सिंह चढूनी हैं. चढूनी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा सभी को पता है. खुद विधानसभा चुनाव लड़ और हार चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर उनकी पत्नी कुरुक्षेत्र से चुनाव लड़ीं और हार चुकी हैं. आरोप है कि चढूनी को पैसे और कांग्रेस पार्टी का टिकट ऑफर किया गया है. पंजाब में भी अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाला है. यही अवसर था कि किसानों को मोदी के नाम पर डरा कर कांग्रेस पार्टी पंजाब में अपनी जीत सुनिश्चित करती.
कांग्रेस की राजनीति
यहां तक तो बात ठीक थी, पर जैसे-जैसे आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है, अब किसानों के आकाओं का धैर्य कम होता जा रहा है. अब किसान आंदोलन पर कांग्रेस के 'डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट' की छाप साफ दिख रही है. दो-तीन दिन पहले जिस तरह से एक नकाबपोश को कैमरे के सामने लाकर कहलवाया गया कि उसे हरियाणा पुलिस ने गोलियां चलाने की सुपारी दी है, यह नाटकीय और हास्यास्पद था. और अब खबर है कि पंजाब के एक किसान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन को एक चिट्ठी लिखी है जिसमें उनसे आग्रह किया गया है कि वे अपने बेटे को समझाएं और कृषि कानून वापस लेने को कहें, क्योंकि पीएम मोदी सिर्फ अपनी मां की ही सुनेंगे.
सभी को पता है कि पीएम मोदी ने अपने परिवार का त्याग लंबे समय पहले ही कर दिया था. चाहे जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे या अब देश के प्रधानमंत्री. कभी ऐसा आरोप नहीं लगा कि पीएम मोदी के परिवार के किसी सदस्य या रिश्तेदार को इसका फायदा मिला है. अब उनकी मां को किसान आंदोलन में घसीटने की साजिश और उस प्राइवेट चिट्ठी को मीडिया में लीक करना, कांग्रेस के डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट का ही काम हो सकता है.
राहुल गांधी की ताजपोशी
चढूनी को पैसे और पार्टी का टिकट देने का आरोप भी कांग्रेस पार्टी पर ही लगा था. कांग्रेस की भरपूर कोशिश रहेगी कि अप्रैल-मई तक जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न हो जाएगा, किसान आंदोलन चलता रहे, ताकि उन्हें इसका राजनीतिक लाभ मिल सके. क्या और कोई कारण हो सकता है कि क्यों कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जून तक टाल दिया गया है? कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि किसान आंदोलन के दम पर उनका प्रदर्शन बेहतर होगा और राहुल गांधी की ताजपोशी पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी. साफ है कि यह आंदोलन राजनीति से प्रेरित है और अब यह आंदोलन किसान आंदोलन न हो कर 'मोदी हटाओ आंदोलन' बनता जा रहा है.
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