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- पुलिस कमजोर या मुकदमों...
संजीव चौहान। जिक्र बीते साल फरवरी महीने में देश की राजधानी दिल्ली के उत्तर पूर्वी जिले में हुए सांप्रदायिक दंगों (Delhi Riots) का हो या फिर इस साल के शुरुआती महीने में (26 जनवरी 2021 को) हथियारबंद पुलिस व अर्ध-सैनिक बलों की मौजूदगी में, किसान ट्रैक्टर रैली की आड़ में दिल्ली की सड़कों पर हुए तांडव की बात. बीते साल हुए सांप्रदायिक दंगों में 53 बेकसूर अकाल मौत की भेंट चढ़ गये. सैकड़ों घायल महीनों अस्पतालों में पड़े जिंदगी की भीख मांगते रहे. उसके बाद शुरु हुआ दिल्ली पुलिस (Delhi Police) द्वारा उन दंगों के मामलों में आरोपियों की धर-पकड़ का सिलसिला. जिस तेज गति से उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले के थानों में, स्पेशल सेल, क्राइम ब्रांच में मुकदमों (FIR) को दर्ज किया जा रहा था. उससे कहीं ज्यादा तूफानी गति से दिल्ली पुलिस की टीमें दंगे के संभावित वांछितों को घेरकर उन्हीं कानूनी शिकंजे में लेने को बेताब थीं. सैकड़ों आरोपी गिरफ्तार भी कर लिये गये. कोर्ट में मुकदमेबाजी शुरु हुई. उसके बाद इन दोनो ही मामले में गिरफ्तार संदिग्धों को जेल से जमानत पर निकालने के वक्त, निचली अदालतों व हाईकोर्ट द्वारा की जाने वाली तल्ख टिप्पणियों का दौर शुरु हुआ.