सम्पादकीय

पुलिस की दोषी परीक्षा

Rani Sahu
6 May 2022 7:13 PM GMT
पुलिस की दोषी परीक्षा
x
पुलिस भर्ती का पटाक्षेप फिर से बेरोजगारों को मायूसी दे गया और एक लंबी प्रक्रिया इस कद्र दुर्घटनाग्रस्त हुई

अंततः पुलिस भर्ती का पटाक्षेप फिर से बेरोजगारों को मायूसी दे गया और एक लंबी प्रक्रिया इस कद्र दुर्घटनाग्रस्त हुई कि अब फिर से लिखित परीक्षा करवाई जाएगी। पेपर लीक होने का मामला फिर उन्हीं कंदराओं में उलझा हुआ मिला, जहां ऐसी भर्तियां अपने पैमाने साबित नहीं कर पातीं। पेपर चुराए गए, लाखों के बिके और कुछ के भाग्य चमका गए। आश्चर्य यह कि दसवीं की योग्यता से आगे निकल कर कुछ छात्र पुलिस भर्ती की मैरिट में आ गए, तो मामला संगीन है और शर्मसार करता है। बहरहाल परीक्षा रद्द हो गई, लेकिन पूरी प्रक्रिया ने कई उम्मीदवारों की महत्त्वाकांक्षा को सूली पर चढ़ा दिया। परीक्षा में बैठे 74 हजार अभ्यर्थियों में सभी दोषी नहीं होंगे, लेकिन एक दोषी परीक्षा ने अधिकांश की ईमानदारी का भी सिर झुका दिया। गनीमत यह कि परीक्षा अपने पाप से बच गई, वरना भर्ती होने वालों में कितने युवा ऐसी खरीद फरोख्त करके नौकरी हथियाने के षड्यंत्र के सूत्रधार बन चुके होते। हर बार कालिख की कब्र पर मर्यादा का शव दफनाते किस्से, आखिर हिमाचल की करवटों में क्यों बेलगाम हो रहे हैं। आश्चर्य यह कि जिस पुलिस की बुनियाद पर हम कानून-व्यवस्था में नो टॉलरेंस का ढिंढोरा पीटते हैं, उसके भीतर प्रवेश करने की नीयत में खोट इस कद्र बेखौफ हो गया। अगर पेपर लीक हुए, तो जाहिर तौर पर यह पुलिस फाइल की चोरी या उसकी छाती पर चढ़कर सीनाजोरी हुई है।

हैरानी तो यह कि जिस प्रदेश में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग काफी हद तक विश्वसनीयता के साथ, परीक्षाओं के जरिए चयन पद्धतियों को ईमानदारी से साबित कर रहा हो, वहां विभागीय अधिकार में क्यों ऐसे मजाक उड़ाए जाते हैं। भर्ती चयन की परीक्षाओं के नाम पर कुछ विभागों को छूट मिलने से ही यह अंदेशा बढ़ जाता है और यह अतीत के सबक भी हैं कि किस तरह खंडित परीक्षाओं ने ईमानदारी के मोती तोड़े हैं। पुलिस भर्ती की प्रक्रिया अगर रद्द हो गई, तो अब इस पाप को धोने का प्रायश्चित भी करना होगा यानी सारे तामझाम को गंगा स्नान कराते हुए, अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की दक्षता के तहत इसकी विश्वसनीयता साबित करनी होगी। इस विषय पर राजनीति करने का हक हासिल करके विपक्ष हो हल्ला मचा सकता है और यह विरोध नैतिकता के नए आधार पर सरकार से प्रश्न भी कर सकता है, लेकिन इस सत्य को ठुकराया नहीं जा सकता कि सरकारी नौकरी की दरख्वास्त पर हर बार कीचड़ गिरा है। ऐेसे में सरकार द्वारा अधीनस्थ सेवा आयोग के तहत नौकरियांे की अहर्ता को पूर्णतः लिखित परीक्षा आधारित करके कई भ्रम तोड़े हैं यानी सौ प्रतिशत परीक्षा ही काबिलीयत को कबूल करेगी।
इस तरह परीक्षाओं पर केंद्रित चयन का दबाव बढ़ सकता है और इसे पारदर्शी बनाने के लिए नए सिरे से सारे सुर खंगालने पड़ेंगे। परीक्षा पद्धति को निष्पक्ष, स्वतंत्र व पारदर्शी बनाने के लिए डिजिटल दखल बढ़ाना पड़ेगा। जिन परीक्षाओं में करीब एक लाख अभ्यर्थी बैठ रहे हों, वहां परीक्षा केंद्रों की फेहरिस्त में स्थल चयन की भी निष्पक्षता चाहिए। प्रदेश भर में अब यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि कहां और कितने परीक्षा केंद्र बनाए जाएं। कम से कम जिला मुख्यालयों में स्थायी रूप से ऐसे परीक्षा केंद्र विकसित करने चाहिएं, जो कंप्यूट्रीकृत परीक्षाओं का संचालन कर सकें। ये परीक्षा केंद्र कम से कम पांच हजार की क्षमता में कंप्यूट्रीकृत परीक्षाओं का आयोजन करें, तो कई सुराख भर जाएंगे। प्रदेश स्तरीय ऐसे परीक्षा केंद्र सीधे अधीनस्थ या लोक सेवा आयोग के परीक्षा तंत्र से जुड़ें और ऐन परीक्षा के समय ही परीक्षार्थी को प्रश्न पत्र मिले, तो उचित सावधानी का यह तरीका कारगर सिद्ध होगा। पुलिस, वन या विद्युत विभाग की भर्ती परीक्षाओं को केवल विभागीय बना कर नहीं परखा जा सकता, अतः राज्य लोक व अधीनस्थ सेवा आयोगों के अधीन ही तमाम चयन प्रक्रिया चलाई जाए। बहरहाल पुलिस भर्ती में आया गतिरोध न्याय मांग रहा है। प्रदेश के हजारों अभिभावक, अभ्यर्थी तथा शिक्षार्थी यह उम्मीद करते हैं कि सरकारी नौकरी के नाम पर हिमाचल की चयन प्रक्रियाएं सौ फीसदी गारंटी के साथ पारदर्शी साबित हों।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचलीl

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story