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- पुलिस का चेहरा
पुलिस के कामकाज को लेकर लंबे समय से अंगुलियां उठती रही हैं। इसके बावजूद दूसरे प्रदेशों की अपेक्षा दिल्ली पुलिस का चेहरा काफी हद तक बेदाग माना जाता रहा है। उसके कामकाज की मिसाल दी जाती रही है। मगर पिछले कुछ सालों में उसने भी कई संवेदनशील मामलों में जिस तरह पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रहग्रस्त होकर कार्रवाइयां की, उससे उसकी साख को गहरा धक्का लगा है। पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की निष्पक्ष जांच करने और वास्तविक दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उसने कई निर्दोष लोगों को कानून के शिकंजे में जकड़ दिया। उन दंगों के पीछे की साजिश और उसमें संलिप्त लोगों की पहचान उसी से हो गई थी, जब नागरिकता कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलनों के विरोध में कुछ नेताओं ने जहरीले भाषण दिए और लोगों को उकसाने का प्रयास किया। मगर दिल्ली पुलिस ने उनकी तरफ नजर उठा कर भी नहीं देखा। अनेक निर्दोष लोगों को गिरफ्त में ले लिया। हालांकि उनमें से कई लोग अब निर्दोष साबित हो चुके हैं, पर अब भी कई मामलों में सुनवाई चल रही है। उन्हीं मामलों की सुनवाई करते हुए अदालतों ने न सिर्फ बार-बार दिल्ली पुलिस के कामकाज पर अंगुली उठाई, बल्कि उसे कड़े शब्दों में फटकार भी लगाई।